अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 7/ मन्त्र 13
क्रोधो॑ वृ॒क्कौ म॒न्युरा॒ण्डौ प्र॒जा शेपः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठक्रोध॑: । वृ॒क्कौ । म॒न्यु: । आ॒ण्डौ । प्र॒ऽजा । शेप॑: ॥१२.१३॥
स्वर रहित मन्त्र
क्रोधो वृक्कौ मन्युराण्डौ प्रजा शेपः ॥
स्वर रहित पद पाठक्रोध: । वृक्कौ । मन्यु: । आण्डौ । प्रऽजा । शेप: ॥१२.१३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 7; मन्त्र » 13
विषय - मित्र से प्रजा तक
पदार्थ -
१.(मित्र: च वरुणः च) = मित्र और वरुण (अंसौ) = कन्धे हैं, (त्वष्टा च अर्यमा च) = त्वष्टा और अर्यमा (दोषणी) = भुजाओं के ऊपर के भाग हैं, (महादेवः बाहः) = महादेव बाहु हैं [अगली टाँगों का पिछला भाग], (इन्द्राणी) = विद्युत्-शक्ति (भसत्) = गुह्यभाग है, (वायुः पुच्छम्) = वायु पूंछ है, (पवमानः बाला:) = बहता हुआ वायु उसके बाल हैं। २. (ब्रह्म च क्षत्रं च) = ब्रह्म और क्षत्र [ब्राह्मण और क्षत्रिय] (श्रोणी) = उसके श्रोणीप्रदेश [कुल्हे] हैं, (बलम्) = बल [सेना] (ऊरू) = जाँचे हैं। (धाता च सविता च) = धाता और सविता उसके (अष्ठीवन्तौ) = टखने हैं, (गन्धर्वाः जंघा:) = गन्धर्व जंघाएँ हैं (अप्सरस:) = रूपवती स्त्रियाँ [अप्सराएँ] (कुष्ठिका:) = खुरों के ऊपर-पीछे की ओर लगी अंगुलियाँ हैं, (अदितिः) = पृथिवी (शफा:) = खुर हैं। ३. (चेत:) = चेतना (हृदयम्) = हृदय है, (मेधा) = बुद्धि (यकृत्) = जिगर है, (व्रत पुरीतत्) = व्रत उसकी अति है, (क्षुत् कुक्षि:) = भूख कोख है, (इरा) = अन्न व जल (वनिष्टुः) = गुदा व बड़ी आँतें हैं, (पर्वता:) = पर्वत व मेघ (प्लाशय:) = छोटी आंत हैं, (क्रोध:) = क्रोध वृक्को -गुर्दे हैं, (मन्यु:) = शोक व दीप्ति (आण्डौ) = अण्डकोश हैं, (प्रजा शेप:) = प्रजाएँ उसका लिंगभाग हैं [वृक्की पुष्टिकरी प्रोक्तौ जठरस्थस्य मेदसः । वीर्यवाहिशिराधारौ वृषणौ पौरुषावहौ। गर्भाधानकर लिङ्गमयन वीर्यमूत्रयोः-शार्ङ्गधर]।
भावार्थ -
वेद में मित्र, वरुण से लेकर क्रोध, मन्यु, प्रजा आदि का सुचारुरूपेण प्रतिपादन है।
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