यजुर्वेद - अध्याय 35/ मन्त्र 2
स॒वि॒ता ते॒ शरी॑रेभ्यः पृथि॒व्यां लो॒कमि॑च्छतु।तस्मै॑ युज्यन्तामु॒स्रियाः॑॥२॥
स्वर सहित पद पाठस॒वि॒ता। ते॒ शरी॑रेभ्यः। पृ॒थि॒व्याम्। लो॒कम्। इ॒च्छ॒तु॒ ॥ तस्मै॑। यु॒ज्य॒न्ता॒म्। उ॒स्रियाः॑ ॥२ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सविता ते शरीरेभ्यः पृथिव्याँल्लोकमिच्छतु । तस्मै युज्यन्तामुस्रियाः ॥
स्वर रहित पद पाठ
सविता। ते शरीरेभ्यः। पृथिव्याम्। लोकम्। इच्छतु॥ तस्मै। युज्यन्ताम्। उस्रियाः॥२॥
विषय - राजा का प्रजा के प्रति कर्तव्य । पक्षान्तर में परमेश्वर की व्यवस्था । किरणों द्वारा जीवों की लोकलोकान्तर में गति।
भावार्थ -
राजा के पक्ष में- हे पुरुष ! (सविता) सबका प्रेरक राजा ( ते शरीरेभ्यः ) तेरे सम्बन्धी जनों के शरीरों के भरण-पोषण के लिये ( पृथिव्याम् ) इस पृथिवी में ( लोकम् ) पर्याप्त स्थान जितने की उत्तम रीति से देख भाल कर सके (इच्छतु) देवे । (तस्मै ) इस राजा के लिये (उस्रियाः) बैल ( युजन्ताम् ) जोड़े जायं ।
(२) परमेश्वर के पक्ष में— परमेश्वर जीव के शरीरों के लिये पृथिवी में स्थान दे । जीव के शरीर में, रथ में बैलों के समान ज्ञानग्राहक प्राण प्रदान करता है । अथवा, उसे देह से देहान्तर और लोक से लोकान्तर में जाने के लिये किरणों से युक्त करता है । किरणों द्वारा जीव लोक-लोकान्तर में गमन करते हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सविता देवता । गायत्री । षड्जः ॥
इस भाष्य को एडिट करेंAcknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal