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यजुर्वेद अध्याय - 39

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  • यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 1
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - अग्निर्देवता छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    स्वाहा॑ प्रा॒णेभ्यः॒ साधि॑पतिकेभ्यः। पृ॒थि॒व्यै स्वाहा॒ऽग्नये॒ स्वाहा॒ऽन्तरि॑क्षाय॒ स्वाहा॑ वा॒यवे॒ स्वाहा॑। दि॒वे स्वाहा॒। सूर्या॑य॒ स्वाहा॑॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्वाहा॑। प्रा॒णेभ्यः॑। साधि॑पतिकेभ्य॒ इति॒ साधि॑ऽपतिकेभ्यः ॥ पृ॒थि॒व्यै। स्वाहा॑। अग्नये॑। स्वाहा॑। अ॒न्तरि॑क्षाय। स्वाहा॑। वायवे॑। स्वाहा॑। दि॒वे। स्वाहा॑। सूर्य्या॑य। स्वाहा॑ ॥१ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वाहाप्राणेभ्यः साधिपतिकेभ्यः पृथिव्यै स्वाहेग्नये स्वाहेन्तरिक्षाय स्वाहा वायवे स्वाहा । दिवे स्वाहा । सूर्याय स्वाहा ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    स्वाहा। प्राणेभ्यः। साधिपतिकेभ्य इति साधिऽपतिकेभ्यः॥ पृथिव्यै। स्वाहा। अग्नये। स्वाहा। अन्तरिक्षाय। स्वाहा। वायवे। स्वाहा। दिवे। स्वाहा। सूर्य्याय। स्वाहा॥१॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 39; मन्त्र » 1
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    भावार्थ -
    (साधिपतिकेभ्यः) अधिपति, आत्मा या मन के सहित शरीर में विद्यमान प्राणों के समान राष्ट्र में अपने अधिपति अध्यक्षों के सहित (प्राणेभ्यः) उत्तम जीवन वाले, राष्ट्र को चेतन बनाये रखने वाले प्रजाजनों को (स्वाहा) उत्तम रीति से अन्न आदि प्राप्त हो । (पृथिव्यै अन्तरिक्षाय अग्नये वायवे दिवे सूर्याय स्वाहा ) पृथिवी और उस पर रहने वाले प्रजाजन को उत्तम अन्न प्राप्त हो । 'अन्तरिक्ष' को उत्तम आहुति और राजा प्रजा के बीच के मध्यस्थ कार्यकर्त्ता को आदर और अग्नि, वायु प्रकाश और सूर्य इनको उत्तम घृत आदि पुष्टिकारक पदार्थों की आहुति और इनकी उत्तम ज्ञानपूर्वक प्राप्ति हो । (वायवे स्वाहा ) वायु को उत्तम आहुति प्राप्त हो और वायु के समान सबको जीवन देने वाले एवं उसके समान शत्रु को उखाड़ देने वाले राजा को आदर प्राप्त हो । (दिवे स्वाहा ) सब तेजस्वी सूर्य चन्द्रादिक के आश्रय स्थान आकाश के समान सब तेजस्वी पुरुषों के आश्रय राजा को उत्तम अन्न, यश, ऐश्वर्य प्राप्त हो (सूर्याय स्वाहा) सूर्य के समान तेजस्वी पुरुष को उत्तम अन्न और आदर प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्राणादयो लिङ्गकाः। पक्तिः । पंचम।

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