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यजुर्वेद अध्याय - 39

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  • यजुर्वेद - अध्याय 39/ मन्त्र 6
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - सवितादयो देवताः छन्दः - विराड् धृति स्वरः - ऋषभः
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    स॒वि॒ता प्र॑थ॒मेऽह॑न्न॒ग्निर्द्वि॒तीये॑ वा॒युस्तृ॒तीय॑ऽआदि॒त्यश्च॑तु॒र्थे। च॒न्द्रमाः॑ पञ्च॒मऽऋ॒तुः ष॒ष्ठे म॒रुतः॑ सप्त॒मे बृह॒स्पति॑रष्ट॒मे मि॒त्रो न॑व॒मे वरु॑णो दश॒मऽइन्द्र॑ऽएकाद॒शे विश्वे॑ दे॒वा द्वा॑द॒शे॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒वि॒ता। प्र॒थ॒मे। अह॑न्। अ॒ग्निः। द्वि॒तीये॑। वा॒युः। तृ॒तीये॑। आ॒दि॒त्यः। च॒तु॒र्थे ॥ च॒न्द्रमाः॑। प॒ञ्च॒मे। ऋ॒तुः। ष॒ष्ठे। म॒रुतः॑। स॒प्त॒मे। बृह॒स्पतिः॑। अ॒ष्ट॒मे। मि॒त्रः। न॒व॒मे। वरु॑णः। द॒श॒मे। इन्द्रः॑। ए॒का॒द॒शे। विश्वे॑। दे॒वाः। द्वा॒द॒शे ॥६ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सविता प्रथमेहन्नग्निर्द्वितीये वायुस्तृतीयऽआदित्यश्चतुर्थे चन्द्रमाः पञ्चमऽऋतुः षष्ठे मरुतः सप्तमे बृहस्पतिरष्टमे । मित्रो नवमे वरुणो दशमऽइन्द्रऽएकादशे विश्वे देवा द्वादशे ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सविता। प्रथमे। अहन्। अग्निः। द्वितीये। वायुः। तृतीये। आदित्यः। चतुर्थे॥ चन्द्रमाः। पञ्चमे। ऋतुः। षष्ठे। मरुतः। सप्तमे। बृहस्पतिः। अष्टमे। मित्रः। नवमे। वरुणः। दशमे। इन्द्रः। एकादशे। विश्वे। देवाः। द्वादशे॥६॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 39; मन्त्र » 6
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    भावार्थ -
    राजा के बारह रूप । (प्रथमे अहनि सविता) पहले दिन वह सूर्य के समान सबका प्रेरक, आज्ञापक और ऐश्वर्य का उत्पादक होने से 'सविता' है । (द्वितीये अग्निः) दूसरे दिन वह अग्नि के समान मार्गप्रकाशक अग्रणी होने से 'अग्नि' है । (तृतीये वायुः) तीसरे दिन वायु के समान बलवान् हो जाने से वह 'वायु' है । (चतुर्थे आदित्यः) चौथे दिन आदित्य के समान जलों के समान करों के ग्रहण करने से 'आदित्य' है । (चन्द्रमाः पञ्चमे ) पाचवें दिन चन्द्र के समान आह्लादक होने से 'चन्द्रमा' है । ( पष्ठे ऋतुः) छठे दिन सबको नाना पदार्थों के प्राप्त कराने और सबको नाना प्रकारों से सुखी करने वाला होने से 'ऋतु' है । (मरुतः सप्तमे) सातवें दिन सैनिकों के रूप में या प्रजा साधारण के रूप में विद्यमान होने से वह 'मरुत्गण' ही है । (अष्टमे बृहस्पतिः) बड़े राष्ट्र का पालक होने से 'बृहस्पति' है । (मित्रः नवमे ) नवें दिन वह सर्वत्र स्नेहवान् होने से 'मित्र' है । (वरुणः दशमे) दसवें दिन वह सबसे वरण योग्य होने से 'वरुण' है । ( एकादशे इन्द्रः) ग्यारहवें दिन विद्युत् के समान तेजस्वी होने से 'इन्द्र' हैं और ( विश्वेदेवाः द्वादशे ) बारहवें दिन समस्त विद्वानों के बीच में निष्पक्षपात होकर रहने से विश्वदेवों अर्थात् विद्वानों से सम्मति में भिन्न न होने से 'विश्वदेवमय' है । (२) जीवपक्ष में - वह मरणोत्तर प्रतिदिन क्रम से सूर्य, आग, वायु, रश्मि, चन्द्र, ऋतु, वायु, प्राण, उदान और विद्युत् और शेष सब दिव्य पदार्थ इनमें उत्तरोत्तर प्राप्त होने से उस-उस रूप का होकर विचरता है और कर्मफलों का भोग करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सवित्रादयः । विराढ्धृतिः । धैवतः ।

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