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  • यजुर्वेद - अध्याय 40/ मन्त्र 3
    ऋषिः - दीर्घतमा ऋषिः देवता - आत्मा देवता छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः
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    अ॒सु॒र्य्याः᳕ नाम॒ ते लो॒काऽअ॒न्धेन॒ तम॒सावृ॑ताः। ताँस्ते प्रेत्यापि॑ गच्छन्ति॒ ये के चा॑त्म॒हनो॒ जनाः॑॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒सु॒र्य्याः᳕। नाम॑। ते। लो॒काः। अ॒न्धेन॑। तम॑सा। आवृ॑ता॒ इत्याऽवृ॑ताः ॥ तान्। ते। प्रेत्येति॒ प्रऽइ॑त्य। अपि॑। ग॒च्छ॒न्ति॒। ये। के। च॒। आ॒त्म॒हन॒ इत्या॑त्म॒ऽहनः॑। जनाः॑ ॥३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असुर्या नाम ते लोकाऽअन्धेन तमसावृताः। ताँस्ते प्रेत्यापि गच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः॥३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    असुर्य्याः। नाम। ते। लोकाः। अन्धेन। तमसा। आवृता इत्याऽवृताः॥ तान्। ते। प्रेत्येति प्रऽइत्य। अपि। गच्छन्ति। ये। के। च। आत्महन इत्यात्मऽहनः। जनाः॥३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 40; मन्त्र » 3
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    भावार्थ -
    (ते) वे (लोकाः) लोक अर्थात् मनुष्य (असुर्याः) असुर कहाने योग्य, केवल अपने प्राण को पोषण करने हारे पापाचारी हैं, जो ( अन्धेन ) अन्धकाररूप (तमसा ) आत्मा को ढक लेने वाले तमोगुण से ( आवृताः) ढके हैं । (ये के च) जो कोई (जनाः) लोग भी (आत्महनः) . अपने आत्मा का घात करते हैं, उसके विरुद्ध आचरण करते हैं (ते) के ( प्रेत्य ) मर कर (अपि) और जीवनकाल में भी ( तान् ) उन उक्त प्रकार के लोकों को ही (गच्छन्ति) प्राप्त होते हैं । 'लोका:' ये लोकन्ते पश्यन्ति ते जनाः । लोक्यन्ते दृश्यन्ते भुज्यन्ते कर्मफलानि यत्रेति लोका जन्मानि । राष्ट्रपक्ष में - वे सूर्यरहित स्थान गहरे अन्धकार से ढके हैं जो आत्मा अर्थात् जीवों के देहों का नाश करते हैं । वे उन स्थानों पर जीते भी रक्खे जाते हैं और मरकर तो परलोक में वे तामस दशाओं का अनुभव करते ही हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - आत्मा | अनुष्टुप् । गान्धारः ॥

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