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  • अथर्ववेद - काण्ड 11/ सूक्त 7/ मन्त्र 13
    सूक्त - अथर्वा देवता - उच्छिष्टः, अध्यात्मम् छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - उच्छिष्ट ब्रह्म सूक्त

    सू॒नृता॒ संन॑तिः॒ क्षेमः॑ स्व॒धोर्जामृतं॒ सहः॑। उच्छि॑ष्टे॒ सर्वे॑ प्र॒त्यञ्चः॒ कामाः॒ कामे॑न तातृपुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सू॒नृता॑ । सम्ऽन॑ति: । क्षेम॑: । स्व॒धा । ऊ॒र्जा । अ॒मृत॑म् । सह॑: । उत्ऽशि॑ष्टे । सर्वे॑ । प्र॒त्यञ्च॑: । कामा॑: । कामे॑न । त॒तृ॒पु॒: ॥ ९.१३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सूनृता संनतिः क्षेमः स्वधोर्जामृतं सहः। उच्छिष्टे सर्वे प्रत्यञ्चः कामाः कामेन तातृपुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सूनृता । सम्ऽनति: । क्षेम: । स्वधा । ऊर्जा । अमृतम् । सह: । उत्ऽशिष्टे । सर्वे । प्रत्यञ्च: । कामा: । कामेन । ततृपु: ॥ ९.१३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 11; सूक्त » 7; मन्त्र » 13

    भावार्थ -
    (सूनृता) उत्तम शुभ, सत्य वाणी (संनतिः) उत्तम भक्ति भाव अथवा उत्तम फल की प्राप्ति (क्षेमः) कल्याणमय वृद्धि, (स्वधा) अन्न, (ऊर्जा) बलकारी विशेष शक्ति (अमृतम्) परम आनन्द रूप अमृत और (सहः) बल और (सर्वे प्रत्यञ्चः कामाः) सब आत्मा में साक्षात् अनुभव होने वाली अभिलाषाएं जो (कामेन) काम्य फल से अथवा पूर्ण काम या पूर्वोक्त कामसूक्त में प्रतिपादित सर्वकाम परमात्मा के दर्शन से तृप्त हो जाते हैं वे सब (उच्छिष्टे) उस परमोत्कृष्ट परमात्मा में आश्रित हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। अध्यात्म उच्छिष्टो देवता। ६ पुरोष्णिग् बार्हतपरा, २१ स्वराड्, २२ विराट् पथ्याबृहती, ११ पथ्यापंक्तिः, १-५, ७-१०, २०, २२-२७ अनुष्टुभः। सप्तविंशर्चं सूक्तम्॥

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