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अथर्ववेद > काण्ड 19 > सूक्त 28

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  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 28/ मन्त्र 9
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - दर्भमणिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - दर्भमणि सूक्त

    पिं॒श द॑र्भ स॒पत्ना॑न्मे पिं॒श मे॑ पृतनाय॒तः। पिं॒श मे॒ सर्वा॑न्दु॒र्हार्दो॑ पिं॒श मे॑ द्विष॒तो म॑णे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पिं॒श। द॒र्भ॒। स॒ऽपत्ना॑न्। मे॒। पिं॒श। मे॒। पृ॒त॒ना॒ऽय॒तः। पिं॒श। मे॒। सर्वा॑न्। दुः॒ऽहार्दः॑। पिं॒श। मे॒। द्वि॒ष॒तः। म॒णे॒ ॥२८.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पिंश दर्भ सपत्नान्मे पिंश मे पृतनायतः। पिंश मे सर्वान्दुर्हार्दो पिंश मे द्विषतो मणे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पिंश। दर्भ। सऽपत्नान्। मे। पिंश। मे। पृतनाऽयतः। पिंश। मे। सर्वान्। दुःऽहार्दः। पिंश। मे। द्विषतः। मणे ॥२८.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 28; मन्त्र » 9

    भावार्थ -
    हे (दर्भ) शत्रुनाशक सेनापते ! (मे सपत्नान्) मेरे शत्रुओं को और (मे पृतनायतः) मेरे ऊपर सेना से चढ़ाई करने वालों को (वृश्च) फरसा जिस प्रकार लकड़ी को काटता है उस प्रकार काट डाल (कृन्त) कैंची जिस प्रकार कपड़े को काट डालती है उस प्रकार काट डाल। (पिंश) चक्की जिस प्रकार दानों को पीस डालती है उस प्रकार पीस डाल। (विध्य) बाण जिस प्रकार लक्ष्य को वेधता है उस प्रकार वेंध डाल। इसी प्रकार (सर्वान् द्विषतः दुर्हार्द्रः) समस्त द्वेष करने वाले, दुष्ट हृदयों से युक्त, कुटिल पुरुषों को भी (वृश्च, कृन्त, पिंश, विध्य) फरसे क समान काट, कैची के समान कतर, चक्की के समान पीस, बाण के समान वेध अथवा फरसों से काट, कैंचियों से कतर, चक्कियों से पिसवा, बाणों से वेध।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - सपत्नक्षय कामो ब्रह्माऋषिः। मन्त्रोक्तो दर्भमणिर्देवता। अनुष्टुभः। दशर्चं सूक्तम्।

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