Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 3 > सूक्त 10

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 3/ सूक्त 10/ मन्त्र 6
    सूक्त - अथर्वा देवता - जातवेदाः, पशुसमूहः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - रायस्पोषप्राप्ति सूक्त

    इडा॑यास्प॒दं घृ॒तव॑त्सरीसृ॒पं जात॑वेदः॒ प्रति॑ ह॒व्या गृ॑भाय। ये ग्रा॒म्याः प॒शवो॑ वि॒श्वरू॑पा॒स्तेषां॑ सप्ता॒नां मयि॒ रन्ति॑रस्तु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इडा॑या: । प॒दम् । घृतऽव॑त् । स॒री॒सृ॒पम् । जात॑ऽवेद: । प्रति॑ । ह॒व्या । गृ॒भा॒य॒ । ये । ग्रा॒म्या: । प॒शव॑: । वि॒श्वऽरू॑पा: । तेषा॑म् । स॒प्ता॒नाम् । मयि॑ । रन्ति॑: । अ॒स्तु॒ ॥१०.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इडायास्पदं घृतवत्सरीसृपं जातवेदः प्रति हव्या गृभाय। ये ग्राम्याः पशवो विश्वरूपास्तेषां सप्तानां मयि रन्तिरस्तु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इडाया: । पदम् । घृतऽवत् । सरीसृपम् । जातऽवेद: । प्रति । हव्या । गृभाय । ये । ग्राम्या: । पशव: । विश्वऽरूपा: । तेषाम् । सप्तानाम् । मयि । रन्ति: । अस्तु ॥१०.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 3; सूक्त » 10; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    (इडायाः) गौ का (सरीसृपं) निरन्तर गमन करने वाला (पदं) स्वरूप या चरण (घृतवत्) घृतादि पुष्टिकारक पदार्थ से युक्त होता है । हे (जातवेदः) अग्ने ! परमेश्वर ! (प्रति) प्रतिदिन (हव्या) हवन करने योग्य पदार्थों और प्रेमपूर्वक पढ़ी गई स्तुतियों को (गृभाय) स्वीकार करो ! (ये) जो (ग्राम्याः) ग्राम में पालन करने योग्य पुरुषों के संघ में रहने के स्वभाव वाले (विश्वरूपाः) नाना प्रकार के (पशवः) पशु हैं (तेषां) उन सब (सप्तानां) सातों प्रकारों के पशुओं की (रन्तिः) आनन्द बहार (मयि) मेरे पास (अस्तु) हो। गृहस्थी पुरुष गोपालन करे, उससे दूध, दही, मक्खन प्राप्त करे, प्रतिदिन यज्ञ करे, उपासना करे । गो-पालन, पशु-पालन करे और जीवन का आनन्द प्राप्त करे । गौ, बकरी, भेड़, हाथी, गधा, अश्व और ऊंट ये सात पशु हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। अष्टका देवताः । ४, ५, ६, १२ त्रिष्टुभः । ७ अवसाना अष्टपदा विराड् गर्भा जगती । १, ३, ८-११, १३ अनुष्टुभः। त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top