ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 104/ मन्त्र 8
ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
मा नो॑ वधीरिन्द्र॒ मा परा॑ दा॒ मा न॑: प्रि॒या भोज॑नानि॒ प्र मो॑षीः। आ॒ण्डा मा नो॑ मघवञ्छक्र॒ निर्भे॒न्मा न॒: पात्रा॑ भेत्स॒हजा॑नुषाणि ॥
स्वर सहित पद पाठमा । नः॒ । व॒धीः॒ । इ॒न्द्र॒ । मा । परा॑ । दाः॒ । मा । नः॒ । प्रि॒या । भोज॑नानि । प्र । मो॒षीः॒ । आ॒ण्डा । मा । नः॒ । म॒घ॒ऽव॒न् । श॒क्र॒ । निः । भे॒त् । मा । नः॒ । पात्रा॑ । भे॒त् । स॒हऽजा॑नुषाणि ॥
स्वर रहित मन्त्र
मा नो वधीरिन्द्र मा परा दा मा न: प्रिया भोजनानि प्र मोषीः। आण्डा मा नो मघवञ्छक्र निर्भेन्मा न: पात्रा भेत्सहजानुषाणि ॥
स्वर रहित पद पाठमा। नः। वधीः। इन्द्र। मा। परा। दाः। मा। नः। प्रिया। भोजनानि। प्र। मोषीः। आण्डा। मा। नः। मघऽवन्। शक्र। निः। भेत्। मा। नः। पात्रा। भेत्। सहऽजानुषाणि ॥ १.१०४.८
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 104; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 19; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनरेताभ्यां कथं प्रतिज्ञातव्यमित्युपदिश्यते ।
अन्वयः
हे मघवञ्छक्रेन्द्र सभाधिपते त्वं नो मा वधीः। मा परादाः। नः सहजानुषाणि प्रिया भोजनानि मा प्रमोषीः। नोऽस्माकमाण्डा मा निर्भेत्। नोऽस्माकं पात्रा मा भेत् ॥ ८ ॥
पदार्थः
(मा) निषेधे (नः) अस्मान् प्रजास्थान्मनुष्यादीन् (वधीः) हिंस्याः (इन्द्र) शत्रुविनाशक (मा) (परा) (दाः) दद्याः (मा) (नः) अस्माकम् (प्रिया) प्रियाणि (भोजनानि) भोजनवस्तूनि (प्र) (मोषीः) स्तेनयेः (आण्डा) अण्डवद्गर्भे स्थितान् (मा) (नः) अस्माकम् (मघवन्) पूजितधनयुक्त (शक्र) शक्नोति सर्वं व्यवहारं कर्त्तुं तत्सम्बुद्धौ (निः) नितराम् (भेत्) भिन्द्याः। बहुलं छन्दसीतीडभावो झलो झलीति सलोपो हल्ङ्याब्भ्य इति सिब्लोपश्च। (मा) (नः) अस्माकम् (पात्रा) पात्राणि सुवर्णरजतादीनि (भेत्) भिन्द्याः (सहजानुषाणि) जनुर्भिर्जन्मभिर्निर्वृत्तानि जानुषाणि कर्माणि तैः सह वर्त्तमानानि ॥ ८ ॥
भावार्थः
हे सभापते त्वं यथान्यायेन कंचिदप्यहिंसित्वा कस्माच्चिदपि धार्मिकादपराङ्मुखो भूत्वा स्तेयादिदोषरहितो परमेश्वरो दयां प्रकाशयति तथैव प्रवर्त्तस्व नह्येवं वर्त्तमानेन विना प्रजा संतुष्टा जायते ॥ ८ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर इनको कैसी प्रतिज्ञा करनी चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (मघवन्) प्रशंसित धनयुक्त (शक्र) सब व्यवहार के करने को समर्थ (इन्द्र) शत्रुओं को विनाश करनेवाले सभा के स्वामी ! आप (नः) हम प्रजास्थ मनुष्यों को (मा, वधीः) मत मारिये (मा, परा, दाः) अन्याय से दण्ड मत दीजिये, स्वाभाविक काम और (नः) हम लोगों के (सहजानुषाणि) जो जन्म से सिद्ध उनके वर्त्तमान (प्रिया) पियारे (भोजनानि) भोजन पदार्थों को (मा, प्र मोषीः) मत चोरिये, (नः) हमारे (आण्डा) अण्डा के समान जो गर्भ में स्थित हैं उन प्राणियों को (मा, निर्भेत्) विदीर्ण मत कीजिये, (नः) हम लोगों के (पात्रा) सोने चाँदी के पात्रों को (मा, भेत्) मत बिगाड़िये ॥ ८ ॥
भावार्थ
हे सभापति ! तू जैसे अन्याय से किसी को न मारके किसी भी धार्मिक सज्जन से विमुख न होकर चोरी-चपारी आदि दोषरहित परमेश्वर दया का प्रकाश करता है, वैसे ही अपने राज्य के काम करने में प्रवृत्त हो, ऐसे वर्त्ताव के विना राजा से प्रजा सन्तोष नहीं पाती ॥ ८ ॥
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्तेश्वर ! (मा नो, वधीः) हमारा वध मत कर, अर्थात् अपने से अलग हमको मत गिरावो । (मा परा दाः) हमसे अलग आप कभी मत होओ (मा नः प्रिया भोजनानि प्रमोषी:) हमारे प्रिय भोगों को मत चोर और मत चोरवावो, (आण्डा मा नः) हमारे गर्भों का विदारण मत कर' । हे (मघवन्) सर्वशक्तिमन्! (शक्र) समर्थ ! हमारे पुत्रों का विदारण मत कर । (मा नः, पात्रा निर्धेत्) हमारे भोजनाद्यर्थ सुवर्णादि पात्रों को हमसे अलग मत कर। (सहजा-नुषाणि) जो-जो हमारे सहज अनुषक्त, स्वभाव से अनुकूल मित्र हैं, उनको आप (मा भेत्) नष्ट मत करो, अर्थात् कृपा करके पूर्वोक्त सब पदार्थों की यथावत् रक्षा करो ॥ ४९ ॥
टिपण्णी
१. मत चोर और मत चारवावो- अपहरण मत करो । २. विदारण मत कर= मृत्युमुख में मत दो। -
विषय
अ - परित्याग
पदार्थ
१. (इन्द्र) = परमैश्वर्यशाली प्रभो ! (नः) = हमें (मा वधीः) = नष्ट मत कीजिए और (नः) = हमें (मा परादाः) = [परादानं परित्यागः] छोड़ मत दीजिए । हम आपके प्रिय ही बने रहें । (नः) = हमारे (प्रिया भोजनानि) = प्रिय भोजनों को (मा प्रमोषीः) = मत अपहृत कीजिए । प्रिय भोजन सात्त्विक भोजन ही हैं । सात्विक भोजन के लक्षण में - ‘सुखप्रीतिविवर्धना’ - ये शब्द प्रियता को भी सात्विक भोजन का लक्षण कह रहे हैं । इन सात्त्विक भोजनों से सात्त्विक अन्तः करणवाले बनकर हम प्रभु के प्रिय बनेंगे । साथ ही हमारी अगली सन्तानें भी उत्तम होंगी ।
२. हे (मघवन्) = सर्वैश्वर्यवन् ! (शक्र) = शक्तिमन् प्रभो ! (नः) = हमारे गर्भस्थ सन्तानों को (मा निर्भेत्) = नष्ट मत कीजिए । गर्भिणी माता सात्त्विक भोजन करती है तो उस भोजन से बने रस , रुधिर आदि धातु गर्भस्थ बालक की स्थिरता के हेतु होते हैं । हे प्रभो ! आप (नः) = हमारे (सहजानुषाणि) = जन्म के साथ प्राप्त हुए - हुए (पात्रा) = शरीर , इन्द्रियों , मन व बुद्धि - इन रक्षणीय [पा रक्षणे] उपकरणों को (मा भेत्) = विदीर्ण मत कीजिए । ये पान इन्द्रियों , मन व बुद्धि नष्ट न हों । सुरक्षित हुए - हुए ये हमारी उन्नति का कारण बनें ।
भावार्थ
भावार्थ - हम प्रभु के परित्याज्य न हों । सात्विक भोजनों के द्वारा हम शरीर , मन , बुद्धि व इन्द्रियों का रक्षण करें ।
विषय
प्रजापालन सम्बन्धी राजा के कर्तव्य ।
भावार्थ
हे ( इन्द्र ) ऐश्वर्यवन् ! राजन् ! ( नः ) हमें ( मा वधीः ) मत मार । ( नः मा परा दाः ) हमें कभी त्याग मत कर । ( नः ) हमारे ( प्रिया भोजनानि ) प्रिय भोजनों और भोगने योग्य वस्तुओं को ( मा प्र मोषीः ) मत चुरा, हम से मत छीन और मत छिनने दे । हे (मघवन्) ऐश्वर्यवन् ! हे (शक्र) शक्तिशालिन् ! (नः अण्डा) हमारे गर्भगत सन्तानों को ( मा निर्भेत) मत विनाश होने दे । अर्थात् भय व्यथित करके गर्भिणी स्त्रियों को दुःखित मत कर और मत होने दो । (नः) हमारे ( सहजानुषाणि ) सहोदर, जन्म से एक साथ उत्पन्न ( पात्रा ) कच्चे पात्रों के समान स्वरूप बल वाले, असमर्थ, पालन करने योग्य बालकों को ( मा भेत् ) मत विनष्ट कर अर्थात् गर्भगत और कच्ची उमर के बच्चों की रक्षा कर । ( २ ) हे परमेश्वर ! हमारे गर्भो को और ( सहजानुषाणि ) नाना जन्मोपार्जित कर्मों से युक्त ( पात्राणि ) पालन करने योग्य देहों को कच्चे घड़े के समान मत टूटने दे, उनकी रक्षा कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
२, ४, ५ स्वराट् पंक्तिः । ६ भुरिक् पंक्तिः । ३, ७ त्रिष्टुप् । ८, ९ निचृत् त्रिष्टुप् ॥
मराठी (2)
भावार्थ
हे सभापती ! तू अन्यायाने कुणाला न मारता कोणत्याही धार्मिक सज्जनाला विमुख न होता जसा दोषरहित परमेश्वर दया करतो तसेच आपल्या राज्याच्या कामात तू प्रवृत्त हो. अशा वर्तनाखेरीज राजा प्रजेला संतुष्ट करू शकत नाही ॥ ८ ॥
विषय
प्रार्थना
व्याखान
हे [इन्द्र] परम ऐश्वर्ययुक्त ईश्वरा! (मा नो, वधीः) आमचा वध करू नकोस अर्थात आम्हाला तुझ्यापासून वेगळे करू नकोस. (मा परा दाः) आमच्यापासून तू कधीही वेगळे होऊ नकोस. (मा नः प्रिया॰) आम्हाला भोगांपासून वंचित करू नकोसकरवूनकोस. (आण्डा मा॰) आमच्या गर्भाचा नाश करू नकोस. हे (मघवन्) शक्तिमान, (शक्र) सामर्थ्यवान [ईश्वरा] । आमच्या पुत्रांचा नाश करू नकोस. (मा नः पात्रा) आमचे भोजन करण्याचे सुवर्णपात्र इत्यादी पदार्थ आमच्यापासून हिरावून घेऊ नकोस. (सहजानुषाणि) जे जे आमचे सहज रीतीने अनुकूल स्वभाव असलेले मित्र आहे. त्यांना तू नष्ट करू नकोस.अर्थात कृपा करून वरील सर्व पदार्थाचे यथावत्त रक्षण कर. ॥४९॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Indra, destroy us not, deliver us not unto aliens. Deprive us not of our cherished dreams and desires. Lord of great action and power, wealth and honour, destroy not the future in the womb. Neglect not those who deserve, let them not be lost in oblivion. Alienate not our brethren, descendents and traditions.
Purport
O the Bounteous God! Do not put us to death i.e. do not deprive us from your favours or abandon us. Neither take away the objects of enjoyment of our life, nor inspire others to snatch these from us. Do not destory our fully grown up babies while they are in the wombs. O Omnipresent and Powerful Lord! Do not shatter our offsprings. Do not dispossess us from our vessels of gold meant for the purpose of taking food. Those of our friends who are disciplined and well disposed of by nature, do not harm them. Kindly protect all the aforesaid things properly.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How should they (the King and the subjects) take pledges is taught further in the eighth Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O affluent President of the Assembly ! harm us not, abandon us not, deprive us none of the enjoyments that are dear to us, injure not our in-born off-spring and do not take away from us the vessels of gold, silver and other metals.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(आण्डा) अण्डवद् गर्भे स्थितान् = Un-born off-spring in the embryonic state. (सह जानुषारण) जनुभि: - जन्मभिर्निवृतानि जानुषाणि कर्माणि तैः सह वर्तमानानि || = Earned with good deeds
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O President of the Assembly, you should behave like God who is impartial and just as well as kind. You should not turn your face away from a righteous person and should be absolutely free from theft and all dishonest dealing. Without behaving like this, you cannot please the people.
नेपाली (1)
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे इन्द्र = परम ऐश्वर्ययुक्त ईश्वर ! मा नो वधीः = हाम्रो वध न गर्नुहोला अर्थात् हामीलाई आफु बाट अलग गरी तल न झार्नु होला । मा परा दाः= तपाईं हामीबाट कहिल्यै अगल न हुनु होला, मा नः प्रिया भोजनानि प्रमोषी:- हाम्रा प्रिय भोग हरु न खोसनु होला र नखोसाउनु होला । आण्डा मा नः = हाम्रा गर्भ हरु को विदारण नगर्नु होला, अर्थात् मृत्य मुख मा न पारि दिनु होला हे मघवन् = सर्व शक्तिमन् ! शक्र = समर्थ ! हाम्रा सन्तान हरुको विदारण नगरि दिनु होला । मा नः पात्रा निर्भेत= हाम्रा भोजनादि हेतु प्रयोग हुने सुवर्णादि पात्र हरु हामीबाट अलग नगरि दिनु होला । सहजा नुषाणि = जुन जुन हाम्रा अनुषक्त, स्वभावले अनुकूल मित्र छन् तिनलाई तपाईंले मा भेत् = नष्ट न गर्नु होला, अर्थात् कृपा गरी पूर्वोक्त सबै पदार्थ हरुको यथावत् रक्षा गर्नु हुन प्रार्थना गर्द छौं ॥४९॥
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