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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 110 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 110/ मन्त्र 5
    ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः देवता - ऋभवः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क्षेत्र॑मिव॒ वि म॑मु॒स्तेज॑नेनँ॒ एकं॒ पात्र॑मृ॒भवो॒ जेह॑मानम्। उप॑स्तुता उप॒मं नाध॑माना॒ अम॑र्त्येषु॒ श्रव॑ इ॒च्छमा॑नाः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क्षेत्र॑म्ऽइव । वि । म॒मुः॒ । तेज॑नेनम् । एक॑म् । पात्र॑म् । ऋ॒भवः॑ । जेह॑मानम् । उप॑ऽस्तुताः । उ॒प॒ऽमम् । नाध॑मानाः । अम॑र्त्येषु । श्रवः॑ । इ॒च्छमा॑नाः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    क्षेत्रमिव वि ममुस्तेजनेनँ एकं पात्रमृभवो जेहमानम्। उपस्तुता उपमं नाधमाना अमर्त्येषु श्रव इच्छमानाः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    क्षेत्रम्ऽइव। वि। ममुः। तेजनेन। एकम्। पात्रम्। ऋभवः। जेहमानम्। उपऽस्तुताः। उपऽमम्। नाधमानाः। अमर्त्येषु। श्रवः। इच्छमानाः ॥ १.११०.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 110; मन्त्र » 5
    अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 30; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ते कीदृशा इत्युपदिश्यते ।

    अन्वयः

    ये उपस्तुता नाधमाना अमर्त्येषु श्रव इच्छमाना ऋभवो मेधाविनस्तेजनेन क्षेत्रमिव जेहमानमेकमुपमं पात्रं विममुर्विविधं मान्ति ते सुखं प्राप्नुवन्ति ॥ ५ ॥

    पदार्थः

    (क्षेत्रमिव) यथा क्षेत्रं तथा (वि) (ममुः) मानं कुर्वन्ति (तेजनेन) तीव्रेण कर्मणा (एकम्) (पात्रम्) पत्राणां ज्ञानानां समूहम् (ऋभवः) (जेहमानम्) प्रयत्नसाधकम् (उपस्तुताः) उपगतेन स्तुताः (उपमम्) उपमानम् (नाधमानाः) याचमानाः (अमर्त्येषु) मरणधर्मरहितेषु पदार्थेषु (श्रवः) अन्नम् (इच्छमानाः) इच्छन्तः। व्यत्ययेनात्रात्मनेपदम् ॥ ५ ॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा जनाः क्षेत्रं कर्षित्वा उप्त्वा संरक्ष्य ततोऽन्नादिकं प्राप्य भुक्त्वाऽऽनन्दन्ति तथा वेदोक्तकलाकौशलेन प्रशस्तानि यानानि रचित्वा तत्र स्थित्वा संचाल्य देशान्तरं गत्वा व्यवहारेण राज्येन वा धनं प्राप्य सुखयन्ति ॥ ५ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वे कैसे हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जो (उपस्तुताः) तीर आनेवालों से प्रशंसा को प्राप्त हुए (नाधमानाः) और लोगों से अपने प्रयोजन से याचे हुए (अमर्त्येषु) अविनाशी पदार्थों में (श्रवः) अन्न को (इच्छमानाः) चाहते हुए (ऋभवः) बुद्धिमान् जन (तेजनेन) अपनी उत्तेजना से (क्षेत्रमिव) खेत के समान (जेहमानम्) प्रयत्नों को सिद्ध करानेहारे (एकम्) एक (उपमम्) उपमा रूप अर्थात् अति श्रेष्ठ (पात्रम्) ज्ञानों के समूह का (वि, ममुः) विशेष मान करते हैं, वे सुख पाते हैं ॥ ५ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे मनुष्य खेत को जोत, बोय और सम्यक् रक्षा कर उससे अन्न आदि को पाके उसका भोजन कर आनन्दित होते हैं, वैसे वेद में कहे हुए कलाकौशल से प्रशंसित यानों को रचकर उनमें बैठ और उन्हें चला और एक देश से दूसरे देश में जाकर व्यवहार वा राज्य से धन को पाकर सुखी होते हैं ॥ ५ ॥

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    विषय

    अद्वितीय रक्षक

    पदार्थ

    १. (ऋभवः) = ऋत से दीप्त होनेवाले पुरुष , अपने कर्मों को नियमितता से करनेवाले पुरुष (तेजनेन) = बुद्धि को तीव्र [Sharpening , kindling , rendering bright] करने के द्वारा इस शरीर को (क्षेत्रमं इव) = एक क्षेत्र के समान (विममुः) = विशेषरूप से बनाते हैं । क्षेत्र में जैसे उत्तमोत्तम अन्नों का उत्पादन होता है , उसी प्रकार वे अपने शरीर में दैवीसम्पत्ति के उत्पादन का प्रयत्न करते हैं । 

    २. वे इस शरीर को ऐसा बनाते हैं कि यह (एकम्) = अद्वितीय (पात्रम्) = [पा रक्षणे] - रक्षक उस एक एवं अद्वितीय प्रभु की ओर (जेहमानम्) = [हि to go] निरन्तर चलने के स्वभाववाला हो जाता है । इस मानवदेह का मुख्य उद्देश्य वे प्रभु - प्राप्ति को ही मानते हैं । प्रभु का दर्शन सूक्ष्म बुद्धि से ही होता है , अतः वे बुद्धि को सूक्ष्म बनाने का प्रयत्न करते हैं । 

    ३. (उपस्तुताः) = समीपस्थ होकर - उपासना में बैठकर प्रभु का स्तवन करनेवाले ये लोग (उपमम्) = [Highest , uppermost , nearest] उस सर्वोत्तम और अन्तिकतम [अति निकट] प्रभु को (नाधमानाः) = चाहते हुए ये (अमर्त्येषु) = विषयों के पीछे न मरनेवाले ज्ञानी देवपुरुषों में उनके चरणों में उपस्थित होकर (श्रवः इच्छमानाः) = ज्ञान को चाहनेवाले होते हैं । स्तुति व ज्ञान के द्वारा ये प्रभु के समीप और समीप पहुँचते जाते हैं । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ - बुद्धि को तीव्र करके हम इस शरीर को प्रभु - प्राप्ति का साधन बनाते हैं , उपासना व ज्ञानप्राप्ति हमें प्रभु के समीप ले - जानेवाली होती हैं । 
     

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    विषय

    पात्र का रहस्य ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार ( श्रवः इच्छमानाः ) अन्न को चाहने वाले किसान लोग (तेजनेन क्षेत्रम् इव) सरकण्डे की डण्डी से खेत मापते या तीखी फाली से खते बनाते हैं और (ऋभवः) शिल्पी लोग (उपमं नाधमानाः) नमूने के समान दूसरा पात्र बनाने की इच्छा करते हुए (एकं पात्रम्) एक वर्त्तन को ( तेजनेन विममुः ) सींक के बने पैमाने से माप लेते या ( तेजनेन ) तीक्ष्ण शस्त्र छेनी आदि से गढ़कर बना लेते हैं उसी प्रकार ( अमर्त्येषु ) विनाश न होने वाले नित्य पदार्थों में ( श्रव इच्छमानाः ) श्रवण, गुरुपदेश अर्थात् सत्य ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा करते हुए ( उपस्तुताः ) उसके अति समीप तक पहुंच कर उसका साक्षात् कर, हस्तामलकवत् उसका वर्णन करने वाले ( ऋभवः ) सत्य ज्ञान के ज्ञाता विद्वान् पुरुष ( उपमं ) उन अविनाशी पदार्थों के सदृश उपमान को ( नाधमानाः ) दृष्टान्त के रूप में चाहते हुए ( तेजनेन ) अति तीक्ष्ण ज्ञान से उसको डण्डी से क्षेत्र को मापने के समान (विममुः) विविध प्रकार से ज्ञान करते हैं और पूर्वोक्त पात्र के समान ही ( उपमं नाधमानाः ) सदृश धर्मों वाले दृष्टान्त को चाहते हुए ( जेहमानम् ) प्रयत्नशील ( एकं ) एक अद्वितीय देह में चक्षु आदि प्राणों से भिन्न ( पात्रं ) सबके पालक आत्मा को और ब्रह्माण्ड में ( जेहमानं ) सबके सञ्चालक, प्रयत्नशील ( एकं पात्रं ) समस्त जगत् के पालक एकमात्र, अद्वितीय परमेश्वर को (विममुः) विविध प्रकारों से ज्ञान करते हैं । राष्ट्र के पक्ष में—( अमर्त्येषु श्रवः इच्छमानाः ) साधारण जनों से भिन्न विशेष पुरुषों में ही यश या ऐश्वर्य की स्थापना करने की इच्छा करते हुए ( उपस्तुताः ) विद्वान् जन ( उपमं ) उस यश ऐश्वर्य के योग्य पुरुष को ही ( नाधमानाः ) ऐश्वर्यवान् करते हुए ( ऋभवः ) सत्य ज्ञान और विशाल सामर्थ्य से तेजस्वी पुरुष ( जेहमानं एकं पात्रम् ) प्रयत्नशील उपयोगी साहसी एक पालक को ( तेजनेन ) तीक्ष्ण शस्त्रास्त्र बल से ( विममुः ) विविध उपायों से उसको प्रमुख नायक बनाते हैं ( ३ ) सूर्य के पक्ष में—( ऋभवः ) किरण गण ( श्रवः ) अन्न उत्पन्न करना चाहते हुए समीप प्राप्त होकर ( उपमं ) अपने समान तेजस्वी सूर्य को चाहते हुए ( तेजनेन ) अपने तीक्ष्ण तापसे एक सर्वपालक सूर्य को ( क्षेत्रम् इव ) अपने उत्पत्ति स्थान क्षेत्र के समान विविध प्रकार से ज्ञान कराते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुत्स आङ्गिरस ऋषिः ॥ ऋभवो देवता । छन्दः- १, ४ जगती । २, ३, ७ विराड् जगती । ६, ८ निचृज्जगती । ५ निचृत्त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । नवर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी माणसे शेत नांगरून पेरणी करतात. परिपूर्ण रक्षण करून अन्न इत्यादी प्राप्त करून भोजन करतात व आनंदी होतात. तसे वेदोक्त कलाकौशल्ययुक्त प्रशंसित याने तयार करून त्याना चालवून देशदेशांतरी गमन करतात व व्यवहार करतात किंवा राज्याकडून धन प्राप्त करून सुखी होतात. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The Rbhus, heroes of knowledge, wisdom and expertise of action, approached and solicited for exceptional work, desiring and winning honour and reputation among immortals, with their genius and brilliance measure and cross like a field any body of knowledge effective for one kind of achievement.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How are Rebus is taught further in the fifth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Those Rebus (Geniuses) enjoy happiness who lauded by the by standers soliciting the food (of knowledge) among the immortals (enlightened persons who know their soul to be immortal) measure out like the field, their own unique knowledge which leads to industriousness in various ways.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (पात्रम् ) पात्राणां-ज्ञनानां समूहः = The band of knowledge. (श्रवः) अन्नम् (नाधमानाः) नाधृ-याञ्चोपतापैश्वर्याशीःषु ॥ = Food (of knowledge.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As men enjoy happiness by ploughing the field by sowing seeds, preserving and guarding them and by obtaining foodstuff, in the same manner, people enjoy happiness by manufacturing good vehicles, by sitting and moving them and taking them to distant places for business and by ruling over them, thus earning much wealth.

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