ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 110/ मन्त्र 8
निश्चर्म॑ण ऋभवो॒ गाम॑पिंशत॒ सं व॒त्सेना॑सृजता मा॒तरं॒ पुन॑:। सौध॑न्वनासः स्वप॒स्यया॑ नरो॒ जिव्री॒ युवा॑ना पि॒तरा॑कृणोतन ॥
स्वर सहित पद पाठनिः । चर्म॑णः । ऋ॒भ॒वः॒ । गाम् । अ॒पिं॒श॒त॒ । सम् । व॒त्सेन॑ । अ॒सृ॒ज॒त॒ । मा॒तर॑म् । पुन॒रिति॑ । सौध॑न्वनासः । सु॒ऽअ॒प॒स्यया॑ । नरः॑ । जिव्री॒ इति॑ । युवा॑ना । पि॒तरा॑ । अ॒कृ॒णो॒त॒न॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
निश्चर्मण ऋभवो गामपिंशत सं वत्सेनासृजता मातरं पुन:। सौधन्वनासः स्वपस्यया नरो जिव्री युवाना पितराकृणोतन ॥
स्वर रहित पद पाठनिः। चर्मणः। ऋभवः। गाम्। अपिंशत। सम्। वत्सेन। असृजत। मातरम्। पुनरिति। सौधन्वनासः। सुऽअपस्यया। नरः। जिव्री इति। युवाना। पितरा। अकृणोतन ॥ १.११०.८
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 110; मन्त्र » 8
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 31; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्ते विद्वांसः किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ।
अन्वयः
हे ऋभवो मेधाविनो मनुष्या यूयं चर्मणो गां निरपिंशत पुनर्वत्सेन मातरं समसृजत। हे सौधन्वनासो नरो यूयं स्वपस्यया जिव्री वृद्धौ पितरा युवानाऽकृणोतन ॥ ८ ॥
पदार्थः
(निः) नितराम् (चर्मणः) (ऋभवः) मेधाविनः (गाम्) (अपिंशत) अवयवीकुरुत (सम्) (वत्सेन) तद्बालेन सह (असृजत)। अत्रान्येषामपीति दीर्घः। (मातरम्) (पुनः) (सौधन्वनासः) शोभनेषु धन्वसु धनुर्विद्यास्विमे कुशलाः (स्वपस्यया) शोभनान्यपांसि कर्माणि यस्यां तया (नरः) नायका विद्वांसः (जिव्री) सुजीवनयुक्तौ (युवाना) युवानौ युवसदृशौ (पितरा) मातापितरौ (अकृणोतन) कुरुत ॥ ८ ॥
भावार्थः
नहि पूर्वोक्तेन कर्मणा विना केचिद्राज्यं कर्त्तुं शक्नुवन्ति तस्मादेतन्मनुष्यैः सदाऽनुष्ठेयम् ॥ ८ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर वे विद्वान् क्या करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (ऋभवः) बुद्धिमान् मनुष्यो ! तुम (चर्मणः) चाम से (गाम्) गौ को (निरपिंशत) निरन्तर अवयवी करो अर्थात् उसके चाम आदि को खिलाने-पिलाने से पुष्ट करो (पुनः) फिर (वत्सेन) उसके बछड़े के साथ (मातरम्) उस माता गौ को (समसृजत) युक्त करो। हे (सौधन्वनासः) धनुर्वेदविद्याकुशल (नरः) और व्यवहारों को यथायोग्य वर्त्तानेवाले विद्वानो ! तुम (स्वपस्यया) सुन्दर जिसमें काम बने उस चतुराई से (जिव्री) अच्छे जीवनयुक्त बुड्ढे (पितरा) अपने मा-बाप को (युवाना) युवावस्थावालों के सदृश (अकृणोतन) निरन्तर करो ॥ ८ ॥
भावार्थ
पिछले कहे हुए काम के विना कोई भी राज्य नहीं कर सकते, इससे मनुष्यों को चाहिये कि उन कामों का सदा अनुष्ठान किया करें ॥ ८ ॥
विषय
वृद्ध को फिर युवा करना
पदार्थ
१. (ऋभवः) = ज्ञान से दीप्त होनेवाले ऋभु (चर्मणः) = ढाल से - वासनाओं का आक्रमण होने पर प्रभु की उपासना ही हमारे रक्षण के लिए ढाल बनती है । इस उपासनारूप ढाल से (गाम्) = ज्ञानदुग्ध देनेवाली वेदवाणीरूपी गौ को [गौः - वाणी] (निः अपिंशत) = निश्चय से अलंकृत करते हैं । उपासना के द्वारा वेदवाणी के अर्थ को अच्छी प्रकार समझने के योग्य बनते हैं । इस वाक्य का अर्थ इस प्रकार भी हो सकता है कि (चर्मणः निः) = चमड़े से ऊपर उठकर , अर्थात् प्रतीयमान अर्थ से ऊपर उठकर (गाम्) = इस वेदवाणीरूप गौ को (अपिंशत) = ये अलंकृत करते हैं , उसके अन्तर्निहित सुन्दर भाव को देखनेवाले होते हैं ।
२. पुनः फिर (मातरम्) = इस वेदवाणीरूप माता को (वत्सेन) = [वदतीति वत्सः] सृष्टि के आरम्भ में हृदयस्थरूपेण उच्चारण करनेवाले प्रभु के (सम् असृजत) = साथ संसृष्ट करते हैं । सब वेदवचनों में प्रभु का प्रतिपादन देखते हैं - “सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति” , “ऋचो अक्षरे परमे व्योमन्” ।
३. (सौधन्वनासः) = उत्तम प्रणवरूप धनुष को हाथ में ग्रहण करनेवाले - प्रभु के ओम् नाम का जप करनेवाले (स्वपस्यया) = उत्तम कर्मों को करने की कामना से (नरः) = अपने को आगे ले - चलनेवाले ये (ऋभु जिव्री) = जीर्ण हुए - हुए (पितरा) = पृथिवी , अर्थात् शरीररूप माता को तथा द्युलोक , अर्थात् पितृरूप पिता को (युवाना) = क्षीणता से अमिश्रित तथा उन्नति से युक्त (कृणोतन) = करते हैं । शरीर व मस्तिष्क दोनों को उपासना व उत्तम कों द्वारा सशक्त बना लेते हैं । वस्तुतः प्रभु के नाम का जप हमसे वासनाओं को दूर रखता है और उत्तम कर्मों में लगे रहने से हम वासनाओं से बचे रहते है ।
भावार्थ
भावार्थ - हम वेदवाणी के अन्तर्निहित अर्थ को जानने का प्रयत्न करें । प्रत्येक मन्त्र को प्रभु का प्रतिपादन करते हुए देखें । प्रभु के नाम - जपन व उत्तम कर्मों के द्वारा हम शरीर व मस्तिष्क को क्षीण न होने दें ।
विषय
ऋभुओं के बनाए गाय बछड़े का रहस्य ।
भावार्थ
हे ( ऋभवः ) सत्य ज्ञान से प्रकाशित होने वाले विद्वान् पुरुषो ! जिस प्रकार शिल्पी लोग ( चर्मणः गाम् निर् अपिंशत ) चाम की गाय को भी अपने उत्तम क्रिया कौशल से वास्तविक गाय के समान रूपवान् आकार बना देते हैं उसी प्रकार आप लोग भी ( चर्मणः ) उत्तम आचरण द्वारा ( गाम् ) वेद वाणी को ( निर् अपिंशत ) सब प्रकार से अङ्ग २ से रूपवान्, क्रियासमृद्ध करो । ( वत्सेन मातरम् ) गोपाल जन जिस प्रकार बछड़े से उसकी माता को या लोग बच्चे से उसकी माता को मिला देते हैं उसी प्रकार हे विद्वान् लोगो ! आप लोग भी ( वत्सेन ) विद्याओं का उपदेश करने हारे विद्वान् से ( स्वपस्यया ) उत्तम ज्ञान, अध्ययनाध्यापन, वेदारम्भ आदि संस्कार द्वारा (मातरम्) ज्ञानकुशल विद्यार्थी को ( पुनः सम् असृजत ) बार २ संयुक्त करो । ( वत्सेन ) मन से ( मातरं पुनः असृजत ) प्रमाता आत्मा को उत्तम वेग संयुक्त करो । ( वत्सेन मातरं पुनः सम् असृजत ) अन्तेवासी शिष्य से उपदेशकारी आचार्य को युक्त करो, ( वत्सेन मातरं ) वसने वाले जीव से सब जगत् के मापक, निर्माता परमेश्वर को (स्वपस्यया) उत्तम योग क्रिया द्वारा युक्त करो । और हे ( सौधन्वनासः ) उत्तम ज्ञानवान् पुरुषो ! आप लोग (स्वपस्यया) उत्तम कर्माचरण से ही (जिव्री) दीर्घजीवन से युक्त या जराजीर्ण ( पितरौ ) माता पिता दोनों को ( युवानौ ) युवा बलवान् (अकृणोतन ) करो, अथवा ( स्वपस्यया युवानौ पितरौ जिव्री अकृणोतन ) उत्तम २ चरणों द्वारा ही जवान माता पिता को वृद्ध और दीर्घजीवन वाला कर । ( ३ ) युद्ध वीर पुरुष (चर्मणः) चाम से ( गाम् ) बाण फेंकने की तांत या धनुष की डोरी बनावें । ( पुनः ) फिर ( मातरं ) शब्द करने वाली कसी डोरी को ( वत्सेन ) बाण से संयुक्त करें। ( सौधन्वनासः ) उत्तम धनुर्धर लोग उत्तम क्रियाकौशल से ( जिव्री ) जीवनयुक्त ( युवाना ) जवान हृष्ट पुष्ट हो ( पितरौ ) पालकों को सभाध्यक्ष सेनाध्यक्ष पद पर नियुक्त करें ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स आङ्गिरस ऋषिः ॥ ऋभवो देवता । छन्दः- १, ४ जगती । २, ३, ७ विराड् जगती । ६, ८ निचृज्जगती । ५ निचृत्त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । नवर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
यापूर्वी सांगितलेल्या कार्याशिवाय कोणीही राज्य करू शकत नाही. त्यासाठी माणसांनी त्या कामांचे सदैव अनुष्ठान करावे. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Rbhus, wondrous scholars of life-science and rejuvenation, rejuvenate and strengthen the skinny cow and recreate her as the mother cow with her calf. Heroes of the mighty bow, leaders of men, with your knowledge and action vitalise the worn out seniors and restore them to their youth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
What should learned men do is taught in the 8th Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Ribhus (Geniuses) you strengthen the cow which has become very weak and in which only skin has remained and re-unite the Mother (cow) with the calf. O experts in the science of archery, through your good works you render your aged parents leading good lives young-make them strong like young people by serving and feeding them well.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Without such acts of making the cattle strong and serving the aged parents, none can rule over a State well. Therefore, all such good deeds must be performed well by all.
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