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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 113 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 113/ मन्त्र 17
    ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः देवता - उषाः द्वितीयस्यार्द्धर्चस्य रात्रिरपि छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स्यूम॑ना वा॒च उदि॑यर्ति॒ वह्नि॒: स्तवा॑नो रे॒भ उ॒षसो॑ विभा॒तीः। अ॒द्या तदु॑च्छ गृण॒ते म॑घोन्य॒स्मे आयु॒र्नि दि॑दीहि प्र॒जाव॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्यूम॑ना । वा॒चः । उत् । इ॒य॒र्ति॒ । वह्निः॑ । स्तवा॑नः । रे॒भः । उ॒षसः॑ । वि॒ऽभा॒तीः । अ॒द्य । तत् । उ॒च्छ॒ । गृ॒ण॒ते । म॒घो॒नि॒ । अ॒स्मे इति॑ । आयुः॑ । नि । दि॒दी॒हि॒ । प्र॒जाऽव॑त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्यूमना वाच उदियर्ति वह्नि: स्तवानो रेभ उषसो विभातीः। अद्या तदुच्छ गृणते मघोन्यस्मे आयुर्नि दिदीहि प्रजावत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्यूमना। वाचः। उत्। इयर्ति। वह्निः। स्तवानः। रेभः। उषसः। विऽभातीः। अद्य। तत्। उच्छ। गृणते। मघोनि। अस्मे इति। आयुः। नि। दिदीहि। प्रजाऽवत् ॥ १.११३.१७

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 113; मन्त्र » 17
    अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे मघोनि स्त्रि त्वमस्मे गृणते पत्ये च यत्प्रजावदायुरस्ति तदद्य निदिदीहि, यस्तव रेभः स्तवानो वह्निर्वोढा पतिस्त्वदर्थं विभातीरुषसः सूर्य्य इव स्यूमना प्रिया वाच उदियर्त्ति तं त्वमुच्छ ॥ १७ ॥

    पदार्थः

    (स्यूमना) स्यूमानः सकलविद्यायुक्ताः। अत्राकारादेशः। (वाचः) देववाणीः (उत्) उत्कृष्टतया (इयर्ति) जानाति (वह्निः) पावकवद्वोढा विद्वान् (स्तवानः) स्तोतुं शीलः। अत्र स्वरव्यत्ययेनाद्युदात्तत्वम्। (रेभः) बहुश्रोता। अत्र रीङ्धातोरौणादिको भः प्रत्ययः। (उषसः) (विभातीः) विविधतया प्रकाशवतीः (अद्य)। अत्र निपातस्य चेति दीर्घत्वम्। (तत्) (उच्छ) विशिष्टतया वासय (गृणते) प्रशंसते (मघोनि) प्रशस्तधनयुक्ते (अस्मे) अस्मभ्यम् (आयुः) जीवनहेत्वन्नम्। आयुरित्यन्ननामनु पठितम्। निघं० २। ७। (नि) (दिदीहि) प्रकाशय (प्रजावत्) (प्रशस्ताः) प्रजा भवन्ति यस्मात् तत् ॥ १७ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदा दम्पती सौहार्देन परस्परं विद्यासुशिक्षाः संगृह्य प्रशस्तान्यन्नधनादीनि वस्तूनि संचित्य सूर्यवद्धर्मन्यायं प्रकाश्य सुखे निवसतस्तदैव गृहाश्रमस्य पूर्णं सुखं प्राप्नुतः ॥ १७ ॥

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    हिन्दी (2)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (मघोनि) प्रशंसित धनयुक्त स्त्री ! तू (अस्मे) हमारे और (गृणते) प्रशंसा करते हुए (पत्ये) पति के अर्थ जो (प्रजावत्) बहुत प्रजायुक्त (आयुः) जीव का हेतु अन्न है (तत्) वह (अद्य) आज (नि, दिदीहि) निरन्तर प्रकाशित कर। जो तेरा (रेभः) बहुश्रुत (स्तवानः) गुण प्रशंसाकर्त्ता (वह्निः) अग्नि के समान निर्वाह करनेहारा पति तेरे लिये (विभातीः) प्रकाशवती (उषसः) प्रभात वेलाओं को जैसे सूर्य वैसे (स्यूमना) सकल विद्याओं से युक्त प्रिय (वाचः) वेदवाणियों को (उत्, इयर्त्ति) उत्तमता से जानता हैं, उसको तू (उच्छ) अच्छा निवास कराया कर ॥ १७ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जब स्त्री-पुरुष सुहृद्भाव से परस्पर विद्या और अच्छी शिक्षाओं को ग्रहण कर उत्तम अन्न, धनादि वस्तुओं का संचय करके सूर्य के समान धर्म न्याय का प्रकाश कर सुख में निवास करते हैं, तभी गृहाश्रम के पूर्ण सुख को प्राप्त होते हैं ॥ १७ ॥

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    विषय

    प्रजावत् आयुः

    पदार्थ

    १. (वह्निः) = अपने को उन्नतिपथ पर ले - चलनेवाला अथवा स्तुतिवचनों का वहन करनेवाला (रेभः) = स्तोता (विभातीः उषसः) = इन देदीप्यमान उषाकालों की (स्तवानः) = स्तुति करता हुआ (स्यूमना वाचः) = [षिव्+मनिन् बन्धनयुक्तानि - सा०] एक - दूसरे से जुड़ी हुई सन्तत स्तुतिवाणियों का (उदियर्ति) = [उद्गमयति , उच्चारयति - सा०] उच्चारण करता है । यह उषा के प्रकाश को देखता है , उससे प्रेरणा प्राप्त करता है , उस प्रकाश का स्तवन करता है और उसे अपने में धारण करता है । हे (मघोनि) = प्रकाशरूप ऐश्वर्यवाली उषः ! तू (अद्य) = आज (गृणते) = इस स्तोता के लिए (तदुच्छ) = अन्धकार को दूर करनेवाली हो और (अस्मे) = हमारे लिए (प्रजावत्) = उत्तम सन्तानोंवाले व उत्तम विकासवाले (आयुः) = जीवन को (निदिदीहि) = (नितरां) [अच्छी प्रकार , उत्तमता से] प्रकाशित कर , अर्थात् दे । उषा का प्रकाश हमारे जीवनों को भी प्रकाशमय बनाये हम जीवन में सब शक्तियों का विकास करनेवाले हों और उत्तम सन्तानों से युक्त हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ - उषा का स्तवन करते हुए हम भी उषा की भाँति अपने जीवन को प्रकाश व विकासमय बना पाएँ ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेव्हा स्त्री-पुरुष सुहृद्भावाने परस्पर विद्या व चांगले शिक्षण ग्रहण करून उत्तम अन्न, धन इत्यादी वस्तूंचा संग्रह करतात व सूर्याप्रमाणे धर्म न्यायाचा प्रकाश करून सुखात राहतात तेव्हाच गृहस्थाश्रमाचे पूर्ण सुख प्राप्त होते. ॥ १७ ॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The admirer, poet of fiery imagination, sings inspiring songs in praise of brilliant dawn. O Dawn, lady of light and harbinger of wealth, shine for the worshipper and give him the light. And give us the health and age blest with progeny.

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