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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 118 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 118/ मन्त्र 9
    ऋषिः - कक्षीवान् देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यु॒वं श्वे॒तं पे॒दव॒ इन्द्र॑जूतमहि॒हन॑मश्विनादत्त॒मश्व॑म्। जो॒हूत्र॑म॒र्यो अ॒भिभू॑तिमु॒ग्रं स॑हस्र॒सां वृष॑णं वी॒ड्व॑ङ्गम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यु॒वम् । श्वे॒तम् । पे॒दवे॑ । इन्द्र॑ऽजूतम् । अ॒हि॒ऽहन॑म् । अ॒श्वि॒ना॒ । अ॒द॒त्त॒म् । अश्व॑म् । जो॒हूत्र॑म् । अ॒र्यः । अ॒भिऽभू॑तिम् । उ॒ग्रम् । स॒ह॒स्र॒ऽसाम् । वृष॑णम् । वी॒ळुऽअ॑ङ्गम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युवं श्वेतं पेदव इन्द्रजूतमहिहनमश्विनादत्तमश्वम्। जोहूत्रमर्यो अभिभूतिमुग्रं सहस्रसां वृषणं वीड्वङ्गम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    युवम्। श्वेतम्। पेदवे। इन्द्रऽजूतम्। अहिऽहनम्। अश्विना। अदत्तम्। अश्वम्। जोहूत्रम्। अर्यः। अभिऽभूतिम्। उग्रम्। सहस्रऽसाम्। वृषणम्। वीळुऽअङ्गम् ॥ १.११८.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 118; मन्त्र » 9
    अष्टक » 1; अध्याय » 8; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्युद्विद्यां दम्पती गृह्णीयातामित्याह ।

    अन्वयः

    हे अश्विना युवं युवां पेदवेऽर्य्यो य इन्द्रजूतं जोहूत्रं वृषणं वीड्वङ्गमुग्रमभिभूतिं सहस्रसां श्वेतमश्वमहिहनमिव युवाभ्यां ददाति तस्मै सततं सुखमदत्तम् ॥ ९ ॥

    पदार्थः

    (युवम्) (श्वेतम्) (पेदवे) गमनागमनाय (इन्द्रजूतम्) सभाध्यक्षेण प्रेरितम् (अहिहनम्) मेघहन्तारं सूर्य्यमिव (अश्विना) पत्नीसर्वलोकाधिपती (अदत्तम्) दद्यातम् (अश्वम्) व्यापनशीलम् (जोहूत्रम्) अतिशयेन स्पर्धितम् (अर्य्यः) सर्वस्वामी सर्वसभाध्यक्षो राजा (अभिभूतिम्) शत्रूणां तिरस्कर्त्तारम् (उग्रम्) दुष्टः शत्रुभिरसहम् (सहस्रसाम्) सहस्राणि कार्य्याणि सनति संभजति यस्तम् (वृषणम्) शत्रुसेनाया उपरि शस्त्रास्त्रवर्षानिमित्तम् (वीड्वङ्गम्) वीडूनि बलयुक्तानि दृढान्यङ्गानि यस्य तम् ॥ ९ ॥

    भावार्थः

    यथा सूर्य्यो मेघं वर्षयित्वा सर्वस्यै प्रजायै सुखं ददाति तथा शिल्पविद्याविदः स्त्रीपुरुषा अखिलप्रजायै सुखं प्रदद्युः। स्वेषां मध्ये येऽतिरथिनो वीरस्त्रीपुरुषास्तान्सदा सत्कुर्य्युः ॥ ९ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब बिजुली की विद्या को स्त्री-पुरुष ग्रहण करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (अश्विना) यज्ञादि कर्म करानेवाली स्त्री और समस्त लोकों के अधिपति पुरुष ! (युवम्) तुम दोनों (पेदवे) जाने-आने के लिये जो (अर्य्यः) सबका स्वामी सब सभाओं का प्रधान राजा (इन्द्रजूतम्) सभाध्यक्ष राजा ने प्रेरणा किये (जोहूत्रम्) अत्यन्त ईर्ष्या करते वा शत्रुओं को घिसते हुए (वृषणम्) शत्रुओं की सेना पर शस्त्र और अस्त्रों की वर्षा करानेवाले (वीड्वङ्गम्) बली, पोढ़े अङ्गों से युक्त (उग्रम्) दुष्ट शत्रुजनों से नहीं सहे जाते (अभिभूतिम्) और शत्रुओं का तिरस्कार करने (सहस्रसाम्) वा हजारों कामों को सेवनेवाले (श्वेतम्) सुपेद (अश्वम्) सभों में व्याप्त बिजुली रूप आग को (अहिहनम्) मेघ के छिन्न-भिन्न करनेवाले सूर्य्य के समान तुम दोनों के लिये देता है, उसके लिये निरन्तर सुख (अदत्तम्) देओ ॥ ९ ॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य्य मेघ को वर्षा के सब प्रजा के लिये सुख देता है, वैसे शिल्पविद्या के जाननेवाले स्त्री-पुरुष समस्त प्रजा के लिये सुख देवें और अपने बीच में जो अतिरथी वीर स्त्री-पुरुष हैं, उनका सदा सत्कार करें ॥ ९ ॥

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    विषय

    पेदु का अश्व

    पदार्थ

    १. हे (अश्विना) = प्राणापानो ! (युवम्) = आप (पेदवे) = [पद गतौ] गतिशील पुरुष के लिए (अश्वम्) = इन्द्रियरूप अश्व को (अदत्तम्) = देते हो , जो अश्व (श्वेतम्) = श्वेत है । प्राणसाधना से इन्द्रियों के मल दूर होते हैं और ये इन्द्रियाँ श्वेत व शुद्ध बनती हैं । (इन्द्रजूतम्) = ये इन्द्रियाश्व इन्द्र से प्रेरित होते हैं । प्रभु - प्रेरणा के अनुसार क्रियाओं में प्रवृत्त होते हैं । (अहिहनम्) = वासनारूप सर्प को नष्ट करनेवाले होते हैं , वासनाओं से आक्रान्त नहीं होते ; (जोहूत्रम्) = [संग्रामेष्वाह्वातारम् सा०] संग्राम में शत्रुओं के साथ विजय की स्पर्धावाले होते हैं और (अर्यः) = शत्रुओं का (अभिभूतिम्) = अभिभव करनेवाले होते हैं । (उग्रम्) - तेजस्वी बनते हैं , (सहस्रसाम्) = शतशः धनों को प्राप्त करानेवाले हैं ; (वृषणम्) = शक्तिशाली व सुखों का वर्षण करनेवाले हैं और (वीड्वङ्गम्) = दृढ़ अंगोंवाले हैं । २. प्राणसाधना करनेवाला पुरुष गतिशील बनता है , इस गतिशीलता के साथ उसके इन्द्रियाश्व बड़े सुन्दर बनते हैं । इन्द्रियों के मल दूर होकर जहाँ वे श्वेत बनते हैं , वहाँ शक्तिशाली व दृढ़ होते हैं । इनके द्वारा वासनाओं को जीतते हुए ऐश्वर्यों को प्राप्त करते हुए हम आगे बढ़ते रहे ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्राणसाधना से हम गतिशील बनकर उत्तम इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करते हैं ।

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    विषय

    विद्वान् प्रमुख नायकों और स्त्री पुरुषों के कर्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( अश्विना ) विद्वान् स्त्री पुरुषो ! आप लोग ( पेदवे ) दूर या विजयार्थ जाने हारे वीर पुरुष को ( श्वेतम् ) तेजस्वी, ( इन्द्रजूतम् ) विद्युत् द्वारा चलने वाला, ( अहिहनम् ) आगे आये शत्रु को मारने वाला, ( जोहूत्रम् ) संग्राम में शत्रुओं को ललकारने वाला (अर्यः) शत्रु को (अभिभूतिम्) पराजित करनेवाला ( उग्रम् ) भयजनक बलवान्, ( सहस्रसाम् ) सहस्रों ऐश्वर्यों का देनेवाला, (वृषणम् ) शत्रुओं पर शरों की और प्रजा पर सुखों की वर्षा करने वाला ( वीड्वङ्गम् ) दृढ़ अङ्गों वाला ( अश्वम् ) शीघ्रगामी, पृथ्वी राज्य के भोगने में और पालने में और उसे व्याप लेने में समर्थ सैन्य बल ( अदत्तम् ) प्रदान करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवानृषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः– १, ११ भुरिक् पंक्तिः । २, ५, ७ त्रिष्टुप् । ३, ६, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ४, ८ विराट् त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जसा सूर्य मेघाद्वारे वृष्टी करून सर्व प्रजेला सुख देतो तसे शिल्पविद्या जाणणाऱ्या स्त्री-पुरुषांनी प्रजेला सुख द्यावे व आपल्यामध्ये जे अतिरथी वीर स्त्री-पुरुष आहेत, त्यांचा सदैव सत्कार करावा. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ashvins, for the traveller you give a brilliant, electrically powered, cloud breaking, heavily reinforced, excellent, victorious, tempestuous, multipurpose, highly productive and firmly structured mode of transport.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Both husband and wife should acquire the knowledge of electricity is told in the ninth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned men and women, you should confer always. happiness upon the person who gives you for easy locomotion or going from place to place a horse in the form of electricity that is impelled by the PRESIDENT of the Assembly which is desired by all, which over-comes enemies when properly utilized in strong weapons which is irritable by the wicked foes, which can accomplish thousands of works, which is vigorous, which makes the limbs of the body strong, which is shining like the sun-disperser of the clouds and which can shower weapons upon the wicked enemies.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (इन्द्रजूतम्) सभाध्यक्षेण प्रेरितम = Impelled by the President of the Assembly or the Council of Ministers. (अश्वम् ) व्यापनशीलम् = Of pervasive nature. (अशङ्- व्याप्तौ) (पेदवे) गमनागमनाय = For going and coming. पद-गतौ

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    As the sun gives happiness to all by raining down the cloud, in the same manner, knowers of arts and industries should bestow happiness upon all people. They should honors mighty brave men and women.

    Translator's Notes

    There is clear reference to the attributes of electricity though un-fortunately other translators have not been able to know the significance of the attributes and have taken अश्व to mean ordinary horse.

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