Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 17 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 17/ मन्त्र 7
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - इन्द्रावरुणौ छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्रा॑वरुण वाम॒हं हु॒वे चि॒त्राय॒ राध॑से। अ॒स्मान्त्सु जि॒ग्युष॑स्कृतम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्रा॑वरुणा । वा॒म् । अ॒हम् । हु॒वे । चि॒त्राय॑ । राध॑से । अ॒स्मान् । सु । जि॒ग्युषः॑ । कृ॒त॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रावरुण वामहं हुवे चित्राय राधसे। अस्मान्त्सु जिग्युषस्कृतम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रावरुणा। वाम्। अहम्। हुवे। चित्राय। राधसे। अस्मान्। सु। जिग्युषः। कृतम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 17; मन्त्र » 7
    अष्टक » 1; अध्याय » 1; वर्ग » 33; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    कीदृशाय धनायेत्युपदिश्यते।

    अन्वयः

    यौ सम्यक् प्रयुक्तावस्मान् सुजिग्युषः कृतं कुरुतो वा ताविन्द्रावरुणौ चित्राय राधसेऽहं हुव आददे॥७॥

    पदार्थः

    (इन्द्रावरुणा) पूर्वोक्तौ। अत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशो वर्णव्यत्ययेन ह्रस्वश्च। (वाम्) तौ। अत्र व्यत्ययः। (अहम्) (हुवे) आददे। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदं बहुलं छन्दसि इति शपो लुक् लडुत्तमस्यैकवचने रूपम्। (चित्राय) अद्भुताय राज्यसेनाभृत्यपुत्रमित्रसुवर्णरत्नहस्त्यश्वादियुक्ताय (राधसे) राध्नुवन्ति संसेधयन्ति सुखानि येन तस्मै धनाय। राध इति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) (अस्मान्) धार्मिकान् मनुष्यान् (सु) सुष्ठु (जिग्युषः) विजययुक्तान् (कृतम्) कुरुतः। अत्र लडर्थे लोट्, मध्यमस्य द्विवचने बहुलं छन्दसि इति शपो लुक् च॥७॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः सुसाधिताविन्द्रावरुणौ कार्य्येषु योजयन्ति, ते विविधानि धनानि विजयं च प्राप्य सुखिनः सन्तः सर्वान् प्राणिनः सुखयन्ति॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    कैसे धन के लिये उपाय करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है-

    पदार्थ

    जो (इन्द्रावरुणा) पूर्वोक्त इन्द्र और वरुण अच्छी प्रकार क्रिया कुशलता में प्रयोग किये हुए (अस्मान्) हम लोगों को (सुजिग्युषः) उत्तम विजययुक्त (कृतम्) करते हैं, (वाम्) उन इन्द्र और वरुण को (चित्राय) जो कि आश्चर्य्यरूप राज्य, सेना, नौकर, पुत्र, मित्र, सोना, रत्न, हाथी, घोड़े आदि पदार्थों से भरा हुआ (राधसे) जिससे उत्तम-उत्तम सुखों को सिद्ध करते हैं, उस सुख के लिये (अहम्) मैं मनुष्य (हुवे) ग्रहण करता हूँ॥७॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य अच्छी प्रकार साधन किये हुए मित्र और वरुण को कामों में युक्त करते हैं, वे नाना प्रकार के धन आदि पदार्थ वा विजय आदि सुखों को प्राप्त होकर आप सुखसंयुक्त होते तथा औरों को भी सुखसंयुक्त करते हैं॥७॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    कैसे धन के लिये उपाय करना चाहिये, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    यौ सम्यक्प्रयुक्तौ अस्मान् सु जिग्युष: कृतं कुरुत:  वाम्तौ इन्द्रावरुणौ  चित्राय  राधसे  अहं  हुवे आददे॥७॥ 

    पदार्थ

    (यौ)=जो, (सम्यक्)=अच्छी तरह से, (प्रयुक्तौ)=प्रयोग  किए गए,  (अस्मान्)=हमें, (सु)=उत्तम,  (जिग्युषः) विजययुक्तान्=विजय युक्त, (कृतम्) कुरुत:=करते हैं, (वाम्) तौ= उन, (इन्द्रावरुणौ)=इन्द्र और वरुण को,  (चित्राय) अद्भुताय  राज्य्सेनाभृत्यपुत्रमित्रसुवर्णरत्नहस्त्यश्वादियुक्ताय=राज्य,  सेना, भृत्य, पुत्र , मित्र, सुवर्ण, रत्न, हाथी, घोड़े आदि, (राधसे) राध्नुवन्ति  संसेधयन्ति  सुखानि  येन  तस्मै धनाय=उस सुख के लिए जिससे उत्तम-उत्तम सुखों को   प्राप्त  करते हैं, (अहम्)=मैं,  (हुवे) आददे=प्राप्त करता हूँ॥७॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    जो मनुष्य अच्छी प्रकार साधन किये हुए मित्र और वरुण को कामों में युक्त करते हैं, वे नाना प्रकार के धन आदि पदार्थ वा विजय आदि सुखों को प्राप्त करके स्वयं  सुखी होते हैं  और  सभी प्राणियों को भी सुखी करते हैं॥७॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    (यौ) जो  (सम्यक्) अच्छी तरह से (प्रयुक्तौ) साधनों का प्रयोग  करते हुए (अस्मान्) हमें  (सु) उत्तम  (जिग्युष:) विजय युक्त (कृतम्) करते हैं। (वाम्) उन  (इन्द्रावरुणौ) इन्द्र और वरुण को  (चित्राय) अद्भुत  राज्य,  सेना, भृत्य, पुत्र , मित्र, सुवर्ण, रत्न, हाथी, घोड़े आदि से (राधसे) उस सुविधा के लिए जिससे उत्तम-उत्तम सुखों को   प्राप्त  करते हैं, (अहम्) मैं  (हुवे) प्राप्त करता हूँ॥७॥  

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (इन्द्रावरुणा) पूर्वोक्तौ। अत्र सुपां सुलुग्० इत्याकारादेशो वर्णव्यत्ययेन ह्रस्वश्च। (वाम्) तौ। अत्र व्यत्ययः। (अहम्) (हुवे) आददे। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदं बहुलं छन्दसि इति शपो लुक् लडुत्तमस्यैकवचने रूपम्। (चित्राय) अद्भुताय राज्यसेनाभृत्यपुत्रमित्रसुवर्णरत्नहस्त्यश्वादियुक्ताय (राधसे) राध्नुवन्ति संसेधयन्ति सुखानि येन तस्मै धनाय। राध इति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०) (अस्मान्) धार्मिकान् मनुष्यान् (सु) सुष्ठु (जिग्युषः) विजययुक्तान् (कृतम्) कुरुतः। अत्र लडर्थे लोट्, मध्यमस्य द्विवचने बहुलं छन्दसि इति शपो लुक् च॥७॥
    विषयः- कीदृशाय धनायेत्युपदिश्यते।

    अन्वयः- यौ सम्यक्प्रयुक्तावस्मान्सुजिग्युष: कृतं कुरुतो वां ताविन्द्रावरुणौ चित्राय राधसे ऽहं हुवे आददे॥महर्षिकृत:॥७॥        

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- ये मनुष्याः सुसाधिताविन्द्रावरुणौ कार्य्येषु योजयन्ति, ते विविधानि धनानि विजयं च प्राप्य सुखिनः सन्तः सर्वान् प्राणिनः सुखयन्ति॥७॥ 

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उत्तम विजय [ज्ञान+धन+विजय]

    पदार्थ

    १. हे (इन्द्रावरुण) - इन्द्र व वरुण देवो ! (अहम्) - मैं (वाम्) - आप दोनों को (हुवे) - पुकारता हैं । मैं प्रार्थना करता हूँ कि मैं इन्द्र - जितेन्द्रिय बन सकूँ तथा (वरुण) - अपने को व्रतों के बन्धन में बाँधकर श्रेष्ठ जीवनवाला बनूं । 

    २. मैं ऐसा इसलिए बनना चाहता हूँ कि (चित्राय) - [चित्+र] ये दोनों वृत्तियों मेरे लिए ज्ञान देनेवाली हों । जितेन्द्रिय पुरुष सदा अपने ज्ञान को बढ़ानेवाला होता है । (राधसे) - कार्यों को सिद्ध करनेवाले धन के लिए मैं इन्द्र व वरुण को पुकारता हूँ । जितेन्द्रिय व व्रती बनकर मैं आवश्यक धन को संगृहीत करने में समर्थ होता ही हूँ । 

    ३. हे इन्द्र व वरुण देवो! आप (अस्मान्) - हमें (सुजिग्युषः) - उत्तम विजय को प्राप्त करनेवाला (कृतम्) - करो । आपकी कृपा से मैं सदा विजयी बनें । वस्तुतः इन्द्रियों पर विजय करनेवाला पुरुष त्रिभुवन - विजेता बनता है , इसका कहीं पराजय नहीं होता । 'वरुण' स्वयं अपने को व्रतों के बन्धन में बाँधनेवाला होकर कभी शत्रुओं से बद्ध नहीं होता । यह सब शत्रुओं का बाधन करनेवाला होता 

    भावार्थ

    भावार्थ - जितेन्द्रियता व व्रतों का बन्धन हमें ज्ञान , धन व विजय प्राप्त करानेवाले हैं ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पक्षान्तर में अग्नि और जल

    भावार्थ

    हे पूर्वोक्त ( इन्द्रावरुणा ) इन्द्र और वरुण राजन् ! और सेनापते ! ( अहम् ) मैं प्रजाजन ( चित्राय राधसे ) अद्भुत, राज्य, सेना, भृत्य पुत्र, मित्र, सुवर्ण, रत्न, हस्ती, अश्व आदि से सम्पन्न एवं दूसरों के आश्रयकारक धन को प्राप्त करने के लिए ( वाम् हुवे ) तुम दोनों को बुलाता हूं। आप दोनों ( अस्मान् ) हम सबको ( जिग्युषः ) विजयशील ( सुकृतम् ) भली प्रकार बनाओ ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    काण्वो मेध्यातिथिः । इन्द्रावरुणौ देवते । गायत्री । नवर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे चांगल्या प्रकारचे साधन असलेल्या मित्र (विद्युत, सूर्य वगैरे) व वरुण (जल, वायू, चंद्र वगैरे) यांना कामात युक्त करतात ते विविध प्रकारचे धन इत्यादी पदार्थ प्राप्त करून विजय मिळवून सुखी होतात तसेच इतरांनाही सुखी करतात. ॥ ७ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    We invoke and adore Indra and Varuna, and we enact yajnic projects to develop solar, fire, air and water energy for the realisation of various and wondrous attainments of progress. May the two divinities grant us success in our desire and ambition for victory.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject of the mantra

    For what kind of money, measures should be taken, this topic has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    (yau)=which, (samyak)=properly, (prayuktau)=using means, (asmān) =to us, (su)=excellent, (jigyuṣa:)=victorious, (kṛtam)=do, ( vām)=to those, (indrāvaruṇau)=to Indra and Varuna, (citrāya)=wonderful state, army, servants, sons, friends, gems, elephants, horses etc, (rādhase)=for the convenience through which I obtain best of pleasures, (aham)=I, (huve)=obtain.

    English Translation (K.K.V.)

    Those using means properly make us excellent and victorious. To those Indra and Varuṇa for the convenience through which I obtain best of the pleasures, wonderful state, army, servants, sons, friends, gems, elephants, horses et etera.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Those who engage friends and Varuṇa in their works, who are well-mannered, they themselves are happy after getting various kinds of wealth etc., or victory etc. and make all the living beings happy as well.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    For what kind of wealth should we try is taught in the 7th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    I take the above Indra and Varuna (fire and water etc.) for wonderful wealth in the form of good Govt. army. children, sons, friends, gold, jewel, elephants, horses etc. which leads to happiness. They make us well victorious when used properly.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those persons who properly utilize Indra and Varuna (fire and water etc.) in their works, having acquired manifold wealth and victory, enjoy happiness and make others also happy.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top