ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 181/ मन्त्र 4
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - अश्विनौ
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
इ॒हेह॑ जा॒ता सम॑वावशीतामरे॒पसा॑ त॒न्वा॒३॒॑ नाम॑भि॒: स्वैः। जि॒ष्णुर्वा॑म॒न्यः सुम॑खस्य सू॒रिर्दि॒वो अ॒न्यः सु॒भग॑: पु॒त्र ऊ॑हे ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒हऽइ॑ह । जा॒ता । सम् । अ॒वा॒व॒शी॒ता॒म् । अ॒रे॒पसा॑ । त॒न्वा॑ । नाम॑ऽभिः । स्वैः । जि॒ष्णुः । वा॒म् । अ॒न्यः । सुऽम॑खस्य । सू॒रिः । दि॒वः । अ॒न्यः । सु॒ऽभगः॑ । पु॒त्रः । ऊ॒हे॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इहेह जाता समवावशीतामरेपसा तन्वा३ नामभि: स्वैः। जिष्णुर्वामन्यः सुमखस्य सूरिर्दिवो अन्यः सुभग: पुत्र ऊहे ॥
स्वर रहित पद पाठइहऽइह। जाता। सम्। अवावशीताम्। अरेपसा। तन्वा। नामऽभिः। स्वैः। जिष्णुः। वाम्। अन्यः। सुऽमखस्य। सूरिः। दिवः। अन्यः। सुऽभगः। पुत्रः। ऊहे ॥ १.१८१.४
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 181; मन्त्र » 4
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 2; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे अरेपसाऽश्विनौ युवयोरिहेह जाता युवां स्वया तन्वा स्वैर्नामभिः समवावशीताम्। वां जिष्णुरन्यः सुमखस्य दिवः सूरिरन्यः सुभगः पुत्रोऽस्ति तमहमूहे ॥ ४ ॥
पदार्थः
(इहेह) अस्मिञ्जगति। अत्र वीप्सायां द्वित्वं प्रकर्षद्योतनार्थम् (जाता) जातौ (सम्) सम्यक् (अवावशीताम्) भृशं कामयेथाम्। वशकान्तावित्यस्य यङ्लुगन्तं लङि रूपम्। (अरेपसा) न विद्यते रेपः पापं ययोस्तौ (तन्वा) शरीरेण (नामभिः) आख्याभिः (स्वैः) स्वकीयैः (जिष्णुः) जेतुं शीलः (वाम्) युवयोर्मध्ये (अन्यः) द्वितीयः (सुमखस्य) (सूरिः) विद्वान् (दिवः) प्रकाशात् (अन्यः) (सुभगः) सुन्दरैश्वर्यः (पुत्रः) यः पुनाति सः (ऊहे) वितर्कयामि ॥ ४ ॥
भावार्थः
मनुष्या अस्यां सृष्टौ भूगर्भादिविद्यां विज्ञाय यो जेताऽध्यापको बह्वैश्वर्य्यः सर्वस्य रक्षकः पदार्थविद्यां तर्केण विजानीयात् स प्रसिद्धो जायते ॥ ४ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (अरेपसा) निष्पाप सर्वगुणव्यापी अध्यापक और उपदेशक जन (इहेह) इस जगत् में (जाता) प्रसिद्ध हुए आप लोगो ! अपने (तन्वा) शरीर से और (स्वैः) अपने (नामभिः) नामों के साथ (सम्, अवावशीताम्) निरन्तर कामना करनेवाले हूजिये (वाम्) तुम में से (जिष्णुः) जीतने के स्वभाववाला (अन्यः) दूसरा (सुमखस्य) सुख के (दिवः) प्रकाश से (सूरिः) विद्वान् (अन्यः) और (सुभगः) सुन्दर ऐश्वर्य्यवान् (पुत्रः) पवित्र करता है उसको (ऊहे) तर्कता हूँ—तर्क से कहता हूँ ॥ ४ ॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! इस सृष्टि में भूगर्भादि विद्या को जानके जो जीतनेवाला अध्यापक बहुत ऐश्वर्य्यवाला सबका रक्षक पदार्थविद्या को तर्क से जाने, वह प्रसिद्ध होता है ॥ ४ ॥
विषय
जीवन-यज्ञ के प्रवर्तक 'प्राणापान'
पदार्थ
१. (इह इह जाता) = शरीर में इस इस स्थान में अर्थात् ऊर्ध्वकाय में प्राण तथा अधरकाय में अपान तुम दोनों विकास को प्राप्त होते हुए (समवावशीताम्) = इस जीवन-यज्ञ को चलाने की कामना करो। इस जीवन-यज्ञ को आप (अरेपसा तन्वा) = दोषशून्य शरीर से तथा (स्वैः नामभिः) = आत्म-सम्बन्धी नामों से पूर्ण करने की कामना करो अर्थात् प्राणापान की साधना से हमारा यह शरीर रोगशून्य हो तथा हमारे चित्त में प्रभु के नामों का स्मरण हो। इस प्रकार स्वस्थ एवं प्रभुपूजा-परायण यह जीवन सचमुच एक सुन्दर यज्ञ ही बन जाएगा। २. (वाम्) = आप दोनों में से (अन्यः) = एक 'प्राण'( जिष्णुः) = रोगों को जीतने की कामनावाला होता है। रोगों को जीतकर यह (सुमखस्य) = उत्तम जीवन-यज्ञ का (सूरिः) = प्रेरक होता है। (अन्यः) = दूसरा 'अपान' (दिवः) = प्रकाश का (पुत्र:) = [पुनाति त्रायते] पवित्र करने व रक्षण करनेवाला (सुभगः) = उत्तम ऐश्वर्यवाला ऊहे जाना जाता है [ऊह् = to be regarded as] । अपान के कार्य के ठीक होने पर मस्तिष्क-कार्य ठीक से होता है। इस प्रकार यह अपान ज्ञान का रक्षक हो जाता है। ज्ञानरूप ऐश्वर्य से यह 'सुभग' कहलाता है। ३. प्राण स्वास्थ्य देता है तो अपान ज्ञान । 'भूरिति प्राण: ' = प्राण 'भू' है । 'होना = स्वस्थ बनना' यह प्राण पर निर्भर करता है। 'भुवरित्यपान: '=' भुवः अपान है। ‘भुवोऽवकल्कने, अवकल्कनं चिन्तनम्' = भुवः अर्थात् चिन्तन व ज्ञान अपान पर आश्रित है।
भावार्थ
भावार्थ- प्राणापान स्वास्थ्य व ज्ञान देकर जीवन-यज्ञ के प्रवर्तक बनते हैं ।
विषय
उत्तम स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे सूर्य और चन्द्र के समान अश्वि नामक विद्वान् स्त्री पुरुषो ! आपदोनों ( इह-इह जाता) इस इस अमुक २ कुल में उत्पन्न हुए (तन्वा) शरीर और (स्वैः नामभिः) अपने गुणों, नामों से (अरेपसा) निष्पाप होवो। आप दोनों (सम् अवावशीताम् ) पर संगत होकर एक दूसरे को चित्त से चाहो । ( वाम् अन्यः अन्यः ) तुम दोनों में से एक एक अर्थात् प्रत्येक ( जिष्णुः ) विजयशील, एक दूसरे से गुणों में उत्कृष्ट, ( सुमखस्य ) उत्तम गृहस्थ यज्ञ का (सूरिः) करने वाला, ( दिवः ) तेजस्त्री माता पिता का ( सुभगः ) उत्तम भाग्यवान् (पुत्रः) पुत्र होकर ( ऊहे ) गृहस्थ को धारण करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः ॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः- १, ३ विराट् त्रिष्टुप । २, ४, ६, ७, ८, ९ निचृत् त्रिष्टुप् । ५ त्रिष्टुप ॥ नवर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! या जगात भूगर्भविद्या जाणून जो जेता, अध्यापक अत्यंत ऐश्वर्यवान, सर्वांचा रक्षक, पदार्थविद्या तर्काने जाणणारा असेल तर तो प्रसिद्ध होतो. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Ashvins, pure geniuses unsullied by sin and evil, risen to universal recognition here, there, everywhere, be ambitious in accordance with your body and your own name and character. One of you is ambitious for victory and advancement. Another is a mighty scholar, a very child of the benevolent light of heaven. And yet another is an auspicious favourite of fortune, a saviour just like a son. I think and deliberate upon this variety and mystery.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The qualities of a good teacher are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O sinless Ashvinau (2) ( teachers and preachers ) ! born in this world, you are glorified together, being faultless in your forms and are perfect in many excellences. One of you score over the hurdles while the other illuminates the light of good Yajna (non-violent sacrifice). I take them to be prosperous and purifier.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men! those who know Geology and other sciences becomes famous in this world. They score over all obstacles. and is therefore prosperous and protector of all.
Foot Notes
(अवावशीथाम् ) भृशं कामयेथाम् । वशकान्ता वित्यस्य यङ्लुङन्तं लङि रूपम् = Desire intensely ( अरेपसा ) न विद्यते रेप: पापं ययोस्तौ = Sinless. ( पुत्रः ) य पुनाति सः = Purifier.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal