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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 188 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 188/ मन्त्र 11
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - आप्रियः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पु॒रो॒गा अ॒ग्निर्दे॒वानां॑ गाय॒त्रेण॒ सम॑ज्यते। स्वाहा॑कृतीषु रोचते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पु॒रः॒ऽगाः । अ॒ग्निः । दे॒वाना॑म् । गा॒य॒त्रेण॑ । सम् । अ॒ज्य॒ते॒ । स्वाहा॑ऽकृतीषु । रो॒च॒ते॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुरोगा अग्निर्देवानां गायत्रेण समज्यते। स्वाहाकृतीषु रोचते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुरःऽगाः। अग्निः। देवानाम्। गायत्रेण। सम्। अज्यते। स्वाहाऽकृतीषु। रोचते ॥ १.१८८.११

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 188; मन्त्र » 11
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    ये परोपकारिणस्ते यथा देवानां पुरोगा अग्निर्गायत्रेण स्वाहाकृतीषु समज्यते रोचते च तथाऽग्र्या भूत्वा सर्वत्र सत्क्रियन्ते ॥ ११ ॥

    पदार्थः

    (पुरोगाः) अग्रगामी (अग्निः) पावकः (देवानाम्) दिव्यगुणानां पृथिव्यादीनां मध्ये (गायत्रेण) गायत्रीछन्दोऽभिहितेन बोधेन (सम्) (अज्यते) (स्वाहाकृतीषु) स्वाहया कृतयः क्रिया येषु व्यवहारेषु तेषु (रोचते) दीप्यते ॥ ११ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि मनुष्या अग्निप्रधानान् दिव्यान् पदार्थान् व्यवहारसिद्धये सम्प्रयुञ्जीरन् तर्हि ते ऐश्वर्य्याढ्या भूत्वा मान्या जायन्त इति वेद्यम् ॥ ११ ॥अत्राग्न्यादिदृष्टान्तेन राजाऽध्यापकोपदेशकस्त्रीपुरुषेश्वरदातृगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥इत्यष्टाशीत्युत्तरं शततमं सूक्तं नवमो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    जो परोपकारी जन हैं वे जैसे (देवानाम्) दिव्य गुण वा पृथिव्यादिकों के बीच (पुरोगाः) अग्रगामी (अग्निः) अग्नि (गायत्रेण) गायत्री छन्द से कहे हुए बोध से (स्वाहाकृतीषु) स्वाहा शब्द से जिन व्यवहारों में क्रियायें होतीं उनमें (समज्यते) प्रकट किया जाता और वह (रोचते) प्रदीप्त होता है वैसे अग्रगामी होकर सर्वत्र सत्कार को प्राप्त होते हैं ॥ ११ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। यदि मनुष्य अग्निप्रधान दिव्य पदार्थों को व्यवहारसिद्धि के लिये संयुक्त करें तो वे ऐश्वर्ययुक्त होकर माननीय होते हैं, यह समझना चाहिये ॥ ११ ॥इस सूक्त में अग्नि के दृष्टान्त से राजा, अध्यापक, उपदेशक, स्त्रीपुरुष, ईश्वर और देनेवाले के गुणों का वर्णन होने से इसके अर्थ की पिछले सूक्तार्थ के साथ सङ्गति समझनी चाहिये ॥यह एकसौ अठासीवाँ सूक्त और नवमाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    गायत्र का गान

    पदार्थ

    १. गत मन्त्र के अनुसार वानस्पतिक भोजन करता हुआ यह (अग्निः) = प्रगतिशील व्यक्ति (देवानां पुरोगा:) = देवों का पुरोगामी बनता है, उन्नति करता हुआ देवों का मुखिया होता है । २. यह (गायत्रेण) = गायत्रीवल्लभ प्रभु से (समज्यते) = अलंकृत जीवनवाला किया जाता है । प्रभु 'गायत्र' हैं—गान करनेवाले का त्राण करते हैं। जो प्रभु का स्तवन करता है, वह स्तोता प्रभु के उस उस गुण से समलंकृत हो जाता है । ३. (स्वाहाकृतीषु) = स्वाहाकृतियों में, त्याग के कार्यों में यह (रोचते) = दीप्त होता है। जितना-जितना त्याग करता है, उतना उतना चमकता जाता है, त्याग के अनुपात में दीप्तिवाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम आगे बढ़ते हुए देवों के मुखिया बनें। इसके लिए प्रभु का स्मरण करें। प्रभुस्मरण के लिए त्याग की वृत्ति को अपनाएँ ।

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    विषय

    विद्वान् की शोभा।

    भावार्थ

    (अग्निः गायत्रेण समज्यते) अग्नि, ज्ञानवान् परमेश्वर जिस प्रकार गायत्री मन्त्रों से अच्छी प्रकार से प्रकट होता है और अग्नि जिस प्रकार (स्वाहाकृतीषु) स्वाहाकारों और स्तुतियों में (रोचते) अच्छी प्रकार प्रकट होता है। उसी प्रकार (अग्निः) सबका अग्रणी नायक विद्वान् (पुरोगाः) सबके आगे चलने हारा, (देवानां) देव अर्थात् विद्वानों और वीर विजेता पुरुषों के बीच (गायत्रेण) वेद ज्ञान से (सम् अज्यते) भली प्रकार प्रकाशित होता है और वही (स्वाहाकृतीषु) उत्तम वचन, भाषण, उत्तम हव्यादि पदार्थों के उपयोगों में (रोचते) नियुक्त होकर भला और शोभा युक्त प्रतीत होता है । इति नवमो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः । आप्रियो देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, ६, ७, १० निचृद्गायत्री। २, ४, ८, ९, ११ गायत्री ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जर माणसांनी अग्निप्रधान दिव्य पदार्थांचा व्यवहारसिद्धीसाठी उपयोग केला तर ते ऐश्वर्ययुक्त बनून मान्यताप्राप्त असतात, हे समजले पाहिजे. ॥ ११ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, fire, is the leading power among the divinities of nature such as earth and sky, and it is lighted with the chant of Gayatri verses of the Veda to rise and shine in the holiest acts of human life.$(So should the noble people rise and shine in life with the chant of holy verses and live for the service of Divinity and humanity for the sake of all life.)

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Energy provides prosperity. It's attributes are mentioned.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Those who are engaged in doing good to others are respected everywhere like the energy which is the main power on this earth and other divine objects. It becomes manifest during the performing of YAJNAS (various philanthropic acts) with the knowledge contained in the mantras of the Gayatri metre a symbolic.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If men utilize energy and other divine objects for the accomplishment of their works, they become prosperous and respectable.

    Foot Notes

    (देवानाम् ) दिव्यगुणानां पृथिव्यादीनां मध्ये = Among the objects endowed with divine attributes like the earth and others. । (गायत्रेण | गायत्री छन्दो अभिहितेन बोधेन| = By the knowledge contained in the mantras of Gayatri metre.

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