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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 188 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 188/ मन्त्र 7
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - आप्रियः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र॒थ॒मा हि सु॒वाच॑सा॒ होता॑रा॒ दैव्या॑ क॒वी। य॒ज्ञं नो॑ यक्षतामि॒मम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒थ॒मा । हि । सु॒ऽवाच॑सा । होता॑रा । दैव्या॑ । क॒वी इति॑ । य॒ज्ञम् । नः॒ । य॒क्ष॒ता॒म् । इ॒मम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रथमा हि सुवाचसा होतारा दैव्या कवी। यज्ञं नो यक्षतामिमम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रथमा। हि। सुऽवाचसा। होतारा। दैव्या। कवी इति। यज्ञम्। नः। यक्षताम्। इमम् ॥ १.१८८.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 188; मन्त्र » 7
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे मनुष्या हि यतो होतारा दैव्या प्रथमा सुवाचसा कवी न इमं यज्ञं यक्षताम् ॥ ७ ॥

    पदार्थः

    (प्रथमा) आदिमौ विद्याबलविस्तारकौ (हि) यतः (सुवाचसा) शोभनं वाचो वचनं ययोस्तौ (होतारा) आदातारौ (दैव्या) देवेषु दिव्येषु बोधेषु कुशलौ (कवी) सकलविद्यावेत्तारावध्यापकोपदेशकौ (यज्ञम्) धनादिसङ्गमकम् (नः) अस्माकम् (यक्षताम्) सङ्गमयताम् (इमम्) प्रत्यक्षतया वर्त्तमानम् ॥ ७ ॥

    भावार्थः

    अत्र ये येषामुपकारं कुर्वन्ति तैस्ते सत्कर्त्तव्या भवन्ति ॥ ७ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (हि) जिस कारण (होतारा) ग्रहणकर्त्ता (दैव्या) दिव्य बोधों में कुशल (प्रथमा) प्रथम विद्या बल को बढ़ानेवाले (सुवाचसा) सुन्दर जिनका वचन (कवी) जो सकल विद्या के वेत्ता अध्यापकोपदेशक जन हैं वे (नः) हमारे (इमम्) इस प्रत्यक्षता से वर्त्तमान (यज्ञम्) धनादि पदार्थों के मेल कराने वा व्यवहार का (यज्ञताम्) सङ्ग करावें ॥ ७ ॥

    भावार्थ

    इस संसार में जो जिनका उपकार करते हैं, वे उनको सत्कार करने योग्य होते हैं ॥ ७ ॥

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    विषय

    दिन व रात हमारे जीवन-यज्ञ के होता हों

    पदार्थ

    १. (प्रथमा) = [प्रथ विस्तारे] ये दिन व रात हमारे लिए शक्तियों का विस्तार करनेवाले हों । (हि) = निश्चय से (सुवाचसा) = उत्तम वचनों वाले हों- हम दिन व रात्रि दोनों के प्रारम्भ में प्रभु के गुणों का उत्तमता से उच्चारण करनेवाले हों, (होतारा) = ये दोनों हमारे जीवन-यज्ञ के होता हों अथवा हम इनमें दानपूर्वक अदनवाले हों। इस होतृत्व के द्वारा ये (दैव्या) = उस देव की ओर हमें ले-चलनेवाले हों और उस देव की ओर चलते हुए हम (कवी) = क्रान्तदर्शी व क्रान्तप्रज्ञ हों । २. इस प्रकार ये दिन व रात हमारे लिए 'प्रथमा, सुवाचसा, होतारा, दैव्या, कवी' होते हुए (नः) = हमारे (इमम्) = इस (यज्ञम्) = जीवन-यज्ञ को (यक्षताम्) = [यजताम्] सम्पन्न करनेवाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ - दिन-रात यज्ञमय जीवन बिताते हुए हम अपनी शक्तियों का विस्तार करें, दोनों समय प्रभु का गुणगान करें, अग्निहोत्र करें, प्रभु की ओर चलनेवाले हों और क्रान्तप्रज्ञ बनें ।

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    विषय

    उन दोनों का परस्पर यज्ञ।

    भावार्थ

    (हि) जिस कारण से (दैव्या) विद्वानों में उत्तम, ज्ञानादि में कुशल, (कवी) बुद्धिमान् दीर्घदर्शी, (होतारा) दानशील और गुणग्राही, (सुवाचसा) उत्तम वाणी बोलने वा ( प्रथमा ) विद्या बल के विस्तार करने वाले, या सर्वोत्तम स्त्री पुरुष, राजा प्रजा या उत्तम नायक विद्वान् जन (नः) हमारे (इमम् यज्ञं) इस सकल अभीष्ट फलदायक गृहस्थ, प्रजापालन आदि कार्य को (यक्षताम्) सम्पादन करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः । आप्रियो देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, ६, ७, १० निचृद्गायत्री। २, ४, ८, ९, ११ गायत्री ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या जगात जे उपकार करतात ते सत्कार करण्यायोग्य असतात. ॥ ७ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May two Yajakas, old and ancient, first and best, masters of noble speech, divine of nature, scholars of poetic visionaries such as the Ashvins or the teacher and preacher, come and grace this yajna of ours unto a splendid completion.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The benefactors are invariably respected.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men! these teachers and preachers are augmenters of knowledge and strength. They are of noble speech, wise and know all sciences. Let such persons, endowed with divine virtues and acceptors of every good thing, accomplish this our YAJNA (good act), for it leads us to prosperity.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who do good to others, must be respected by them in return.

    Foot Notes

    ( प्रथमा) आदिमौ विद्याबलविस्तारकौ = First and augmentors of knowledge and strength. (कवी) सकल विद्यावेत्तारौ अध्यापकोपदेशकौ= Teachers and preachers, who are knowers of all sciences. (यज्ञम्) धमादिसगंकम् = Leading to wealth and other kinds of prosperity. (यज्ञम् ) is from यज - देवपूजासंगतिकरणदानेषु । Here the second meaning of संगतिकरण has been stressed.

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