Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 188 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 188/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - आप्रियः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वष्टा॑ रू॒पाणि॒ हि प्र॒भुः प॒शून्विश्वा॑न्त्समान॒जे। तेषां॑ नः स्फा॒तिमा य॑ज ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वष्टा॑ । रू॒पाणि॑ । हि । प्र॒ऽभुः । प॒शून् । विश्वा॑न् । स॒म्ऽआ॒न॒जे । तेषा॑म् । नः॒ स्फा॒तिम् । आ । य॒ज॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वष्टा रूपाणि हि प्रभुः पशून्विश्वान्त्समानजे। तेषां नः स्फातिमा यज ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वष्टा। रूपाणि। हि। प्रऽभुः। पशून्। विश्वान्। सम्ऽआनजे। तेषाम्। नः स्फातिम्। आ। यज ॥ १.१८८.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 188; मन्त्र » 9
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेश्वरविषयमाह ।

    अन्वयः

    हे विद्वन्यथा त्वष्टा प्रभुरीश्वरो हि विश्वान् पशून् रूपाणि च समानजे तेषां स्फातिं च समानजे तथा नः स्फातिमायज ॥ ९ ॥

    पदार्थः

    (त्वष्टा) सर्वस्य जगतो निर्माता (रूपाणि) सर्वाणि विविधस्वरूपाणि स्थूलानि वस्तूनि (हि) खलु (प्रभुः) समर्थः (पशून्) गवादीन् (विश्वान्) सर्वान् (समानजे) व्यक्तीकरोति (तेषाम्) (नः) अस्माकम् (स्फातिम्) वृद्धिम् (आ) समन्तात् (यज) गमय ॥ ९ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा जगदीश्वरेणातीन्द्रियादतिसूक्ष्मकारणाद्विचित्राणि सूर्यचन्द्रपृथिव्योषधिमनुष्यशरीराऽवयवादीनि निर्मितानि तथाऽस्याः सृष्टेर्गुणकर्मस्वभावक्रमेणानेकानि व्यवहारसाधकानि वस्तूनि निर्मातव्यानि ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    अब ईश्वर विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे विद्वान् ! जैसे (त्वष्टा) सब जगत् का निर्माण करनेवाला (प्रभुः) समर्थ ईश्वर (हि) ही (विश्वान्) समस्त (पशुन्) गवादि पशुओं और (रूपाणि) समस्त विविध प्रकार से स्थूल वस्तुओं को (समानजे) अच्छे प्रकार प्रकट करता और (तेषाम्) उनकी (स्फातिम्) वृद्धि को प्रकट करता है वैसे आप (नः) हमारी वृद्धि को (आ, यज) अच्छे प्रकार प्राप्त कीजिये ॥ ९ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे जगदीश्वर ने इन्द्रियों से परे जो अतिसूक्ष्म कारण है उससे चित्र-विचित्र सूर्य, चन्द्रमा, पृथिवी, ओषधि और मनुष्य के शरीरावयवादि वस्तु बनाई हैं, वैसे इस सृष्टि के गुण, कर्म और स्वभाव क्रम से अनेक व्यवहार सिद्ध करनेवाली वस्तुयें बनानी चाहियें ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पशुओं की स्फाति का लाभ

    पदार्थ

    १. (त्वष्टा) = निर्माता (प्रभुः) = प्रभु (हि) = निश्चय से (रूपाणि) = सब रूपों को (समानजे) = व्यक्त करता है। इन रूपों के द्वारा (विश्वान् पशून्) = सब पशुओं को [समानजे] समलंकृत करता है । २. हे प्रभो ! (तेषाम्) = उन पशुओं की (स्फातिम्) = वृद्धि को (नः) = हमारे लिए (आ यज) = सब प्रकार से संगत कीजिए। हमें गवादि पशुधन पर्याप्त संख्या में प्राप्त हो । इन पशुओं का हमारी जीवनयात्रा में पर्याप्त भाग है। इन्हीं से हमें 'पयः पशूनाम्' दुग्धादि पदार्थ प्राप्त होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु हमारे लिए पर्याप्त पशुधन को प्राप्त कराएँ ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सूर्यवत् राजा का शिल्पकारों के प्रति कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे विद्वन् ! (त्वष्टा) समस्त संसार का निर्माता परमेश्वर जिस प्रकार (प्रभुः) सबको उत्पन्न करने में समर्थ, प्रभु होकर (रूपाणि) समस्त रूपों को, रुचिकर पदार्थों और (विश्वान् पशुन्) समस्त पशुओं को (सम् आनजे) अच्छी प्रकार प्रकट करता है और जिस प्रकार (त्वष्टा) सूर्य समस्त (रूपाणि) रूपों को और (पशुन्) रूप दिखाने वाली किरणों को भी (आनजे) प्रकट करता है और दोनों ही (तेषां स्फातिम् आ यजति) उनको प्रचुर वृद्धि प्रदान करते हैं उसी प्रकार तू भी (त्वष्टा) शिल्पकार पदार्थों को गढ़ने में कुशल होकर (रूपाणि) नाना रुचिकर, सुन्दर पदार्थों और (पशुन्) नाना प्रकार के उपयोगी पशुओं को भी वैज्ञानिक उपायों से (सम्आनजे) प्रकट कर और (तेषां स्फातिम्) उनकी प्रचुर समृद्धि को (नः) आयज हमें प्रदान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः । आप्रियो देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, ६, ७, १० निचृद्गायत्री। २, ४, ८, ९, ११ गायत्री ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे जगदीश्वराने इंद्रियापलीकडे जे अतिसूक्ष्म कारण आहे त्यापासून चित्र-विचित्र सूर्य, चंद्र, पृथ्वी, औषधी व माणसांचे शरीरावयव इत्यादी वस्तू बनविलेल्या आहेत. तसे या सृष्टीच्या गुणकर्म, स्वभावाच्या क्रमानुसार अनेक व्यवहार सिद्ध करणाऱ्या वस्तू निर्माण केल्या पाहिजेत. ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Tvashta, lord creator, is the master maker of all the forms of existence. He has created all the living species of the universe. May the lord augment their growth and welfare and ours too.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The greatness of God is underlined.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    o learned person the Twashta (God) is the Master in fashioning the forms of all beings. He has created all animals etc. distinctly and has arranged their growth. In the same way, let Him lead us to proper development and growth.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    God has made all these wonderful articles-sun moon, earth, planets, the human and other beings out of the most subtle invisible Eternal Cause (Prakriti or Matter). Similarly various objects should also be made by people to accomplish their dealings. This is possible by acquiring the knowledge of the merits, functions properties and nature of the various articles,

    Foot Notes

    (त्वष्टा) सर्वस्य जगतो निर्माता । इन्द्रो वै त्वष्टा ( Aitareya Br. 6-10 ) (TTRY. 2-7-2-1 ) त्वष्टा हि रूपाणि विकरोति (TTRY. 2.7.2.1) त्वष्टा वै पशूनां रूपाणां विकर्ता (TNDY. 2.7.2.1)) God, the creator of the world. (समानजे ) व्यक्तीकरोति । = Manifests. (स्थातिम्) वृद्धिम् Growth.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top