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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 188 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 188/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः देवता - आप्रियः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सु॒रु॒क्मे हि सु॒पेश॒साधि॑ श्रि॒या वि॒राज॑तः। उ॒षासा॒वेह सी॑दताम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒रु॒क्मे॒ इति॑ सु॒ऽरु॒क्मे । हि । सु॒ऽपेश॑सा । अधि॑ । श्रि॒या । वि॒ऽराज॑तः । उ॒षसौ॑ । आ । इ॒ह । सी॒द॒ता॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुरुक्मे हि सुपेशसाधि श्रिया विराजतः। उषासावेह सीदताम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुरुक्मे इति सुऽरुक्मे। हि। सुऽपेशसा। अधि। श्रिया। विऽराजतः। उषसौ। आ। इह। सीदताम् ॥ १.१८८.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 188; मन्त्र » 6
    अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 9; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे अध्यापकोपदेशकौ यथेह सुरुक्मे सुपेशसा कार्य्यकारणे श्रियाधिविराजतः। ते हि विदित्वा उषासाविव भवन्तौ परोपकार आ सीदताम् ॥ ६ ॥

    पदार्थः

    (सुरुक्मे) रमणीये (हि) (सुपेशसा) प्रशंसास्वरूपे कार्यकारणे (अधि) (श्रिया) शोभया (विराजतः) देदीप्येते (उषासौ) रात्रिदिने इव (आ) (इह) कार्य्यकारणविद्यायाम् (सीदताम्) स्थिरौ स्याताम् ॥ ६ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। येऽस्यां सृष्टौ विद्यासुशिक्षे प्राप्य कार्य्यज्ञानपुरःसरं कारणज्ञानं लभन्ते ते सूर्य्याचन्द्रमसाविव परोपकारे रमन्ते ॥ ६ ॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे अध्यापक और उपदेशक लोगो ! जैसे (इह) इस कार्यकारण विद्या में (सुरुक्मे) सुन्दर रमणीय (सुपेशसा) प्रशंसित स्वरूप कार्य्यकारण (श्रिया) शोभा से (अधि, विराजतः) देदीप्यमान होते हैं (हि) उन्हीं को जानकर (उषासौ) रात्रि, दिन के समान आप लोग परोपकार में (आ, सीदताम्) अच्छे प्रकार स्थिर होओ ॥ ६ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो इस सृष्टि के विद्या और अच्छी शिक्षा को पाकर कार्य्यज्ञानपूर्वक कारणज्ञान को प्राप्त होते हैं, वे सूर्य-चन्द्रमा के समान परोपकार में रमते हैं ॥ ६ ॥

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    विषय

    नक्तोषासा=उषासा

    पदार्थ

    १. 'नक्तोषासा' के स्थान में यहाँ 'उषासा' पद का प्रयोग है, जैसे सत्यभामा के लिए भामा । ये (उषासा) = रात्रि और दिन (हि) = निश्चय से (सुरुक्मे) = [रुच् दीप्तौ] उत्तम दीप्तिवाले होते हैं, (सुपेशसा) = उत्तम रूपवाले होते हैं, (श्रिया) = शोभा से (अधिविराजतः) = अत्यधिक शोभायमान होते हैं । २. ऐसे ये रात्रि और दिन (इह) = हमारे जीवन में (आसीदताम्) = सर्वथा आसीन हों। हमारे जीवन में दिन व रात्रि दीप्त व सुन्दर रूपवाले हों। प्रत्येक दिन हमारी ज्ञानवृद्धि का कारण बनता हुआ चमक उठे। प्रत्येक रात्रि हमारी बलवृद्धि का कारण होती हुई हमारे रूप को सुन्दर बनानेवाली हो । दिन ज्ञान के प्रकाश से चमके तो रात्रि शक्तिवर्धन करती हुई रूप-सौन्दर्य का कारण बने ।

    भावार्थ

    भावार्थ - दिन व रात हमारे ज्ञान व रूप को बढ़ाते हुए हमें श्रीसम्पन्न करें ।

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    विषय

    दिन रात्रिवत् राज प्रजा वर्ग।

    भावार्थ

    (उषासौ) दिन रात्रि के समान हे राजा प्रजावर्गो ! शासक शास्य प्रजाओ ! आप दोनों ( इह सीदताम् ) इस देश में एक साथ रहो । आप दोनों (सुरुक्मे) उत्तम कान्तिमान् एक दूसरे की रुचि वाले, प्रेमयुक्त (सपेशसा) उत्तम सुवर्णादि ऐश्वर्यवान्, या पति-पत्नी के समान उत्तम रूप और अंगसौष्ठव से युक्त होकर (श्रिया) लक्ष्मी से खूब शोभा को प्राप्त होवो । इसी प्रकार गृह में स्त्री पुरुष परस्पर कान्तिमान् शोभा युक्त होने और नित्य सदा प्रसन्न, नवीन प्रभातमुख के समान आकर्षक हों। वे (सुरुक्मे) उत्तम सुवर्णालंकार धारण करने वाले, उत्तम रूप रंग, अवयवों वाले, होकर शोभायमान हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अगस्त्य ऋषिः । आप्रियो देवता ॥ छन्दः–१, ३, ५, ६, ७, १० निचृद्गायत्री। २, ४, ८, ९, ११ गायत्री ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे सृष्टि विद्या व सुशिक्षण प्राप्त करून कार्यज्ञानपूर्वक कारणज्ञान प्राप्त करतात ते सूर्य चंद्राप्रमाणे परोपकारात रमतात. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The dawn and dusk, the day and night, bright and beautiful of form and glory, shine with the splendour of Divinity. Let them come and grace our yajna of fragrance and vision of the Light Divine.

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    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers ! the brilliant and beautiful cause and effect shine brilliantly with beauty. So you should know them well like day and night and be engaged incessantly in doing benevolent deeds.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    NA

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who get the knowledge of the causes in this world after seeing the effect through proper wisdom and good education, they take delight in doing good to others like the sun and the moon.

    Foot Notes

    (सुपेशसा) प्रशंसास्वरूपे कार्यकारणे | पेश इति रूपनाम (N.G. 3-7) रुक्मम् is from रुच – दीप्तौ अभिप्रीतौ च (भ्वा०) = Admirable cause and effect Beautiful. (उषासौ) रात्रि दिने इव = Like day and night.

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