ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 190/ मन्त्र 4
ऋषिः - अगस्त्यो मैत्रावरुणिः
देवता - बृहस्पतिः
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अ॒स्य श्लोको॑ दि॒वीय॑ते पृथि॒व्यामत्यो॒ न यं॑सद्यक्ष॒भृद्विचे॑ताः। मृ॒गाणां॒ न हे॒तयो॒ यन्ति॑ चे॒मा बृह॒स्पते॒रहि॑मायाँ अ॒भि द्यून् ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒स्य । श्लोकः॑ । दि॒वि । ई॒य॒ते॒ । पृ॒थि॒व्याम् । अत्यः॑ । न । यं॒स॒त् । य॒क्ष॒ऽभृत् । विऽचे॑ताः । मृ॒गाणा॑म् । न । हे॒तयः॑ । यन्ति॑ । च॒ । इ॒माः । बृह॒स्पतेः॑ । अहि॑ऽमायान् । अ॒भि । द्यून् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अस्य श्लोको दिवीयते पृथिव्यामत्यो न यंसद्यक्षभृद्विचेताः। मृगाणां न हेतयो यन्ति चेमा बृहस्पतेरहिमायाँ अभि द्यून् ॥
स्वर रहित पद पाठअस्य। श्लोकः। दिवि। ईयते। पृथिव्याम्। अत्यः। न। यंसत्। यक्षऽभृत्। विऽचेताः। मृगाणाम्। न। हेतयः। यन्ति। च। इमाः। बृहस्पतेः। अहिऽमायान्। अभि। द्यून् ॥ १.१९०.४
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 190; मन्त्र » 4
अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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अष्टक » 2; अध्याय » 5; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ।
अन्वयः
हे मनुष्या अस्याप्तस्य श्लोकः पृथिव्यामत्यो न दिवीयते। तथा यक्षभृद्विचेता विद्वान् मृगाणां हेतयो न यंसत् याश्चेमा बृहस्पतेर्वाचोऽभिद्यूनहिमायान् यन्ति तान् सर्वान् मनुष्याः सेवन्ताम् ॥ ४ ॥
पदार्थः
(अस्य) विदुषः (श्लोकः) वाणी (दिवि) दिव्ये व्यवहारे (ईयते) गच्छति (पृथिव्याम्) भूमौ (अत्यः) अश्वः (न) इव (यंसत्) यच्छेत् (यक्षभृत्) यक्षान् पूज्यान् विदुषो बिभर्त्ति सः (विचेताः) विविधाश्चेताः प्रज्ञा यस्य। चेत इति प्रज्ञाना०। निघं० ३। ९। (मृगाणाम्) (न) इव (हेतयः) गतयः (यन्ति) गच्छन्ति (च) (इमाः) (बृहस्पतेः) परमविदुषः (अहिमायान्) अहेर्मेघस्य माया इव माया प्रज्ञा येषां तान् (अभि, द्यून्) अभितो वर्त्तमानान् दिवसान् ॥ ४ ॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः। यो दिव्यविद्याप्रज्ञाशीलान् विदुषः सेवते स मेघाडम्बरयुक्तानि दिनानीव वर्त्तमानानविद्यायुक्तान्मनुष्यान् प्रकाशं सवितेव विद्यां दत्त्वा पवित्रयितुं शक्नोति ॥ ४ ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (अस्य) इस आप्त विद्वान् की (श्लोकः) वाणी और (पृथिव्याम्) पृथिवी पर (अत्यः) घोड़ा (न) जैसे (दिवि) दिव्य व्यवहार में (ईयते) जाता है तथा जो (यक्षभृत्) पूज्य विद्वानों को धारण करनेवाला (विचेताः) जिसकी नाना प्रकार की बुद्धि वह विद्वान् (मृगाणाम्) मृगों की (हेतयः) गतियों के (न) समान (यंसत्) उत्तम ज्ञान देवे (च) और जो (इमाः) ये (बृहस्पते) परम विद्वान् की वाणी (अभि, द्यून्) सब ओर से वर्त्तमान दिनों में (अहिमायान्) मेघ की माया के समान जिनकी बुद्धि उन सज्जनों को (यन्ति) प्राप्त होतीं उन सभों का मनुष्य सेवन करें ॥ ४ ॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो दिव्य विद्या और प्रज्ञाशील विद्वानों की सेवा करता है, वह मेघ के डंग-डमालयुक्त दिनों के समान वर्त्तमान अविद्यायुक्त मनुष्यों को प्रकाश को सविता जैसे वैसे विद्या देकर पवित्र कर सकता है ॥ ४ ॥
विषय
'यक्षभृत् विचेताः' प्रभु
पदार्थ
१. (अस्य) = इस परमात्मा का (श्लोकः) = यश (दिवि) = द्युलोक में तथा (पृथिव्याम्) = पृथिवी पर (ईयते) = गति करता है, व्याप्त होता है [गच्छति, व्याप्नोति - सा० ] । ब्रह्माण्ड का एक-एक पदार्थ प्रभु का यशोगान कर रहा है 'यस्येमे हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहुः । (अत्यः न) = सतत गमनशील [अत गतौ] आदित्य के समान वे प्रभु हैं 'आदित्यवर्णम्', (यंसत्) = [offer, give, bestow] सब उत्तम पदार्थों को प्रभु प्राप्त कराते हैं, (यक्षभृत्) = [यज - देवपूजा, संगतिकरण, दान] प्रभु के पूजकों, उनसे मेल करनेवालों व उनके प्रति अर्पण करनेवालों को धारण करनेवाले हैं। (विचेताः) = विशिष्ट ज्ञान को देनेवाले हैं । २. (च) = और (बृहस्पतेः) = ज्ञान की वाणियों के पति प्रभु की (इमाः) = ये ज्ञानवाणियाँ (द्यून्) = [दिवसान्] प्रतिदिन (अहिमायान्) = [अहे इव माया येषाम्] सर्प के समान कुटिलाचारी पुरुषों के (अभि) = प्रति (यन्ति) = जाती हैं। इस प्रकार जाती हैं (न) = जैसे कि (मृगाणाम्) = पशुओं का अन्वेषण करनेवालों के (हेतयः) = आयुध हन्तव्य पशुओं को प्राप्त होते हैं। आयुधों से हन्तव्य पशुओं का विनाश होता है, इसी प्रकार प्रतिदिन प्राप्त होनेवाली प्रभु की ज्ञानवाणियों से इन अहिमाय पुरुषों की मायाविता का विनाश होता है। मायावृत्ति के विनाश से इसका जीवन पवित्र बन जाता है। ज्ञान की वाणियाँ वे आयुध बनती हैं जिनसे कपटी पुरुषरूप पशुओं का विनाश होता है।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु की महिमा सर्वत्र प्रकट हो रही है। इस प्रभु की ज्ञानवाणियाँ मायावी पुरुषों की माया का विनाश करके उन्हें पवित्र जीवनवाला बनाती हैं ।
विषय
विद्वान् के कर्त्तव्य, पक्षान्तर में परमेश्वर का वर्णन । बृहस्पति, सभापति, ब्रह्मा विद्वान्, आदि का वर्णन ।
भावार्थ
(श्लोकः दिदि) जिस प्रकार मेघ की गर्जना अन्तरिक्ष में होती है उसी प्रकार (अस्य बृहस्पतेः) इस वेद पालक विद्वान् पुरुष की (श्लोकः) वेदवाणी, वेदोपदेश भी (यक्षभृत्) उपासना करनेवालों को अधिक पालन पोषण करने वाला और (विचेताः) विविध ज्ञानों से युक्त होकर (पृथीव्याम् अत्यः न) पृथिवी में वेगवान् अश्व के समान (दिवि) ज्ञान की कामना करने वाले और (पृथिव्याम्) पृथिवी के समान ज्ञानरूप जल को धारण करने वाले शिष्य की चित्त भूमि में ( ईयते ) प्राप्त होता है । और ( द्यून् ) दिनों दिन ( बृहस्पतेः ) वेदज्ञ विद्वान् की ( इमाः ) ये वेदवाणियां ( मृगाणां हेतयः न ) ढूंढ २ कर शिकार करने वालों का वाणों के समान ( अहिमायान् ) सर्प के समान कुटिलाचारों तथा मेघ के समान चेष्टा वाले, आत्मा को ढक लेने वाले अज्ञानी पुरुषों को भी ( यन्ति ) पहुंचती है ओर इनकी कुटिलता और अज्ञान का नाश करती हैं । ( २ ) अथवा छान्दसो वर्णविपर्ययः । ( अहिमायान् अधिमायान् ) उस परमेश्वर की वेद वाणियां अधिक बुद्धिमान् पुरुषों को प्राप्त होती हैं । उसका वेद ज्ञान ( दिवि ) ज्ञानवान्, विद्वान और इस भूलोक में वेगवान् अश्व के समान ज्ञानप्रदान करता है । वह उपासकों का पालक, विशेष ज्ञानप्रद है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अगस्त्य ऋषिः॥ बृहस्पतिर्देवता ॥ छन्दः- १, २, ३ निचृत् त्रिष्टुप् । ४,८ त्रिष्टुप् । ५, ६, ७ स्वराट् पङ्क्तिः॥ धैवतः स्वरः ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो दिव्य विद्या प्रज्ञाशील विद्वानांची सेवा करतो तो मेघाच्या अंधकारयुक्त दिनाप्रमाणे असणाऱ्या अविद्यायुक्त माणसांना सूर्याप्रमाणे विद्येचा प्रकाश देऊन पवित्र करतो. ॥ ४ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The voice of this Brhaspati and his fame goes over earth and heaven like the waves of energy. Supporter of the man of yajna, master of exceptional knowledge and intelligence, let him continue to give knowledge. And then, these voices of Brhaspati, like the bounces of the deer, every day reach men of generosity such as clouds of rain.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
A scholar can change the complexion of the society.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The glory and truthful speech of this Brihaspati (a great scholar) is apparent in the divine dealing and on the earth. It is quick like a fast horse. Brihaspati upholds the adorable learned men and is very intelligent. He delivers happiness to all like a racing dear. All should utilize the speeches of that on all days and have great scholar, because these spread out benevolent wisdom like cloud.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The person who serves the enlightened men endowed with divine wisdom, the intellect and good temperament can purify all by imparting knowledge to ignorant persons like the sun giving light during the days, darkened by the clouds.
Foot Notes
(दिवि ) दिव्ये व्यवहारे = In the divine dealing. (अन्य:) अश्वः = Horse. (यक्षभृत ) यक्षान् पूज्यान् विदुषो बिर्भात सः = The upholder or supporter of the adorable learned men. (अहिमायान्) अहे मेघस्य माजा इव मायाप्रज्ञा येषां तान् । = To the persons whose intellect is beneficial to all, like the cloud.
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