ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 39/ मन्त्र 6
उपो॒ रथे॑षु॒ पृष॑तीरयुग्ध्वं॒ प्रष्टि॑र्वहति॒ रोहि॑तः । आ वो॒ यामा॑य पृथि॒वी चि॑दश्रो॒दबी॑भयन्त॒ मानु॑षाः ॥
स्वर सहित पद पाठउपो॒ इति॑ । रथे॑षु । पृष॑तीः । अ॒यु॒ग्ध्व॒म् । प्रष्टिः॑ । व॒ह॒ति॒ । रोहि॑तः । आ । वः॒ । यामा॑य । पृ॒थि॒वी । चि॒त् । अ॒श्रो॒त् । अबी॑भयन्त । मानु॑षाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उपो रथेषु पृषतीरयुग्ध्वं प्रष्टिर्वहति रोहितः । आ वो यामाय पृथिवी चिदश्रोदबीभयन्त मानुषाः ॥
स्वर रहित पद पाठउपो इति । रथेषु । पृषतीः । अयुग्ध्वम् । प्रष्टिः । वहति । रोहितः । आ । वः । यामाय । पृथिवी । चित् । अश्रोत् । अबीभयन्त । मानुषाः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 39; मन्त्र » 6
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
(उपो) सामीप्ये (रथेषु) स्थलजलान्तरिक्षाणां मध्ये रमणसाधनेषु यानेषु (पृषतीः) पर्षंति सिंचन्ति याभिस्ताः शीघ्रगतीः मरुतां धारणवेगादयोऽश्वाः। पृषत्यो मरुतामित्यादिष्टोपयोजननामसु पठितम्। निघं० १।१५। (अयुग्ध्वम्) सम्प्रयुङ्ध्वम्। अत्र लोडर्थे लुङ्। बहुलं छन्दसि इति विकरणाभावश्च (प्रष्टिः) पृच्छन्ति ज्ञीप्संत्यनेन सः (वहति) प्रापयति (रोहितः) रक्तगुणविशिष्टस्याग्नेर्वेगादिगुणसमूहः। रोहितोग्नेरित्यादिष्टोपयोजननामसु पठितम्। निघं० १।३#। (चित्) एव (अश्रोत्) श्रृणोति। अत्र बहुलं छन्दसि इति विकरणभावः। (अबीभयन्त) भीषयन्ते। अत्र लडर्थे लुङ्। (मानुषाः) विद्वांसो जनाः ॥६॥ #[नि० १।१५।]
अन्वयः
पुनर्मनुष्यैः केन सहैतान्संप्रयोज्य कार्याणि साधनीयानी त्युपदिश्यते।
पदार्थः
हे मानुषा ! यूयं वो युष्माकं यामाय प्रष्टीरोहितोग्निः पृथिवी भूमावन्तरिक्षे गमनाय यान् वहति यस्य शब्दानश्रोदबीभयन्त तेषु रथेषु तं पृषतीश्चायुग्ध्वम् ॥६॥
भावार्थः
यदि मनुष्या यानेषु जलाग्निवायुप्रयोगान् कृत्वा तत्र स्थित्वा गमनागमने कुर्युस्तर्हि सुखेनैव सर्वत्र गन्तुमागन्तुं च शक्नुयुः ॥६॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर मनुष्यों को किसके साथ इनको युक्त करके कार्यों को सिद्ध करने चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।
पदार्थ
हे (मानुषाः) विद्वान् लोगो ! तुम (वः) अपने (यामाय) स्थानान्तर में जाने के लिये (पृष्टिः) प्रश्नोत्तरादि विद्या व्यवहार से विदित (रोहितः) रक्त गुणयुक्त अग्नि (पृथिवी) स्थल जल अन्तरिक्ष मे जिन को (उपवहति) अच्छे प्रकार चलाता है जिनके शब्दों को (अश्रोत्) सुनते और (अबीभयन्त) भय को प्राप्त होते हैं उन (रथेषु) रथों में (पृषतीः) वायुओं को (अयुग्ध्वम्) युक्त करो ॥६॥
भावार्थ
जो मनुष्य यानों में जल अग्नि और वायु को युक्त कर उनमें बैठ गमनागमन करें तो सुख ही से सर्वत्र जाने-आने को समर्थ हों ॥६॥
विषय
फिर मनुष्यों को किसके साथ इनको युक्त करके कार्यों को सिद्ध करने चाहिये, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
हे मानुषा ! यूयं वः युष्माकं यामाय प्रष्टी रोहितः अग्निः पृथिवी भूमौ अन्तरिक्षे गमनाय यान् वहति यस्य शब्दान् अश्रोत् अबीभयन्त तेषु उपो रथेषु तं पृषतीः च अयुग्ध्वम् ॥६॥
पदार्थ
हे (मानुषाः) विद्वांसो जनाः= विद्वान् लोगों ! (यूयम्)=तुम सब, (वः) युष्माकम्=अपने, (यामाय)=जाने के लिये, (प्रष्टिः) पृच्छन्ति ज्ञीप्संत्यनेन सः=इनके द्वारा जानने की इच्छा से प्रश्न किये जाते हैं, (रोहितः) रक्तगुणविशिष्टस्याग्नेर्वेगादिगुणसमूहः=लाल रंग के वेग, अग्नि आदिवाले गुणों के समूह वाली विशेष, (अग्निः)=अग्नि, (पृथिवी)=पृथिवी, (भूमौ)=भूमि, और (अन्तरिक्षे)=अन्तरिक्ष में, (गमनाय)=जाने के लिए, (यान्)=जिनको, (वहति) प्रापयति=प्रात करती है, (यस्य)=जिसके, (शब्दान्)=शब्दों को, (अश्रोत्) श्रृणोति=सुनती है, (अबीभयन्त) भीषयन्ते=भय को प्राप्त होते हैं, (तेषु)=उनकी, (उपो) सामीप्ये=समीपता से, (रथेषु) स्थलजलान्तरिक्षाणां मध्ये रमणसाधनेषु यानेषु=स्थल, जल और अन्तरिक्ष के, (तम्)=उन, (पृषतीः) पर्षंति सिंचन्ति याभिस्ताः शीघ्रगतीः मरुतां धारणवेगादयोऽश्वाः=जिनसे सींचते हैं, ऐसी वेग आदि अश्वों के गुणोंवाली वायु को, (च)=भी, (अयुग्ध्वम्) सम्प्रयुङ्ध्वम्=अच्छी तरह से प्रयोग करो ॥६॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
जो मनुष्य यानों में जल अग्नि और वायु को युक्त कर उनमें बैठ गमनागमन करें तो सुख ही से सर्वत्र जाने-आने को समर्थ हों ॥६॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
हे (मानुषाः) विद्वान् लोगों ! (यूयम्) तुम सब (वः) अपने (यामाय) जाने के लिये (प्रष्टिः) जिनके द्वारा जानने की इच्छा से प्रश्न किये जाते हैं, (रोहितः) [ऐसे] लाल रंग के वेग, अग्नि आदि वाले गुणों के समूह वाली विशेष (अग्निः) अग्नि को (पृथिवी) पृथिवी, (भूमौ) भूमि और (अन्तरिक्षे) अन्तरिक्ष में (गमनाय) जाने के लिए, (यान्) जिनको, (वहति) प्राप्त करती है। (यस्य) जिसके (शब्दान्) शब्दों को (अश्रोत्) सुनते हैं और (अबीभयन्त) भय को प्राप्त होते हैं। (तेषु) उनकी (उपो) समीपता से (रथेषु) स्थल, जल और अन्तरिक्ष के (तम्) उन [जलों से] (पृषतीः) जिनसे सींचते हैं, ऐसी वेग आदि अश्वों के गुणोंवाली वायु को (च) भी (अयुग्ध्वम्) अच्छी तरह से प्रयोग करो ॥६॥
संस्कृत भाग
पदार्थः(महर्षिकृतः)- (उपो) सामीप्ये (रथेषु) स्थलजलान्तरिक्षाणां मध्ये रमणसाधनेषु यानेषु (पृषतीः) पर्षंति सिंचन्ति याभिस्ताः शीघ्रगतीः मरुतां धारणवेगादयोऽश्वाः। पृषत्यो मरुतामित्यादिष्टोपयोजननामसु पठितम्। निघं० १।१५। (अयुग्ध्वम्) सम्प्रयुङ्ध्वम्। अत्र लोडर्थे लुङ्। बहुलं छन्दसि इति विकरणाभावश्च (प्रष्टिः) पृच्छन्ति ज्ञीप्संत्यनेन सः (वहति) प्रापयति (रोहितः) रक्तगुणविशिष्टस्याग्नेर्वेगादिगुणसमूहः। रोहितोग्नेरित्यादिष्टोपयोजननामसु पठितम्। निघं० १।३#। (चित्) एव (अश्रोत्) श्रृणोति। अत्र बहुलं छन्दसि इति विकरणभावः। (अबीभयन्त) भीषयन्ते। अत्र लडर्थे लुङ्। (मानुषाः) विद्वांसो जनाः ॥६॥ #[नि० १।१५।]
विषयः- पुनर्मनुष्यैः केन सहैतान्संप्रयोज्य कार्याणि साधनीयानी त्युपदिश्यते।
अन्वयः- हे मानुषा ! यूयं वो युष्माकं यामाय प्रष्टीरोहितोग्निः पृथिवी भूमावन्तरिक्षे गमनाय यान् वहति यस्य शब्दानश्रोदबीभयन्त तेषु उपो रथेषु तं पृषतीश्चायुग्ध्वम् ॥६॥
भावार्थः(महर्षिकृतः)- यदि मनुष्या यानेषु जलाग्निवायुप्रयोगान् कृत्वा तत्र स्थित्वा गमनागमने कुर्युस्तर्हि सुखेनैव सर्वत्र गन्तुमागन्तुं च शक्नुयुः ॥६॥
विषय
'रोहित व प्रष्टि' राजा
पदार्थ
१. हे मरुतो ! आप (रथेषु) - अपने रथों में (पृषतीः) - भय का सेचन करनेवाली [पृष् to sprinkle] घोड़ियों को (उ) - निश्चय से (उप, अयुग्ध्वम्) - समीपता से जोतिए । रथों में जुड़ी ये घोड़ियाँ भी [पृष् to injure] शत्रुओं की हिंसा करनेवाली हों ।
२. आपमें (रोहितः) - अपनी शक्तियों को उन्नत करके राष्ट्र का वर्धन करनेवाला (प्रष्टिः) - आचार्य - चरणों में बैठकर विविध जिज्ञासाओं को करनेवाला ज्ञानी राजा (वहति) - राष्ट्रभार को अपने कन्धों पर उठाता है ।
३. (वः) - आपके (यामाय) - गति के लिए अथवा शत्रु पर आक्रमण के लिए (पृथिवी चित्) - यह सारी पृथिवी ही (अश्रोत्) - सुनती है, अर्थात् जब आप शत्रुओं पर आक्रमण करते हो तो उस आक्रमण के विषय में सारे ही लोग बड़े आश्चर्य व उत्सुकता से सुनते हैं । (मानुषाः) - शत्रुओं के पुरुष (अबीभयन्त) - भय से काँप उठते हैं । वस्तुतः इस प्रकार के वीर सैनिकों के बल पर ही राजा राष्ट्र को धारण व उत्थान करने में समर्थ होता है ।
भावार्थ
भावार्थ - राजा के लिए 'रोहित व प्रष्टि' - उन्नत शक्तियों व ज्ञान की प्यासवाला होना आवश्यक है । सैनिक वीर कार्यों के करनेवाले हों ।
विषय
‘पृषतीः’ का रहस्य ।
भावार्थ
हे वीर पुरुषो! आप लोग (रथेषु) अपने रमण, आनन्द विनोद के लिये बने रथों में, या रथारोही महारथियों के अधीन (पृषतीः) देह में चेतनता रस और आनन्द का सेचन करने वाली, रक्त नाड़ियों के समान और वर्षा कालिक वायुओं के साथ जुड़ी धारा वर्षाने वाली मेघ मालाओं के समान (पृषती:) भरी पीठ वाली, या वेगों से चलने वाली घोड़ियों को और शत्रु पर शस्त्र वर्षण करने वाली सेनाओं को (अयुग्ध्वम्) लगाओ, नियुक्त करो। आप लोगों को (रोहितः) वायुओं को सूर्य के समान (रोहितः) रक्त वर्ण की उज्ज्वल पोशाक पहनने वाला, एवं उदय को प्राप्त होने वाला, प्रतापी, तेजस्वी राजा (प्रष्टिः) पीठ से बोझा उठाने में समर्थ बलवान् पशु के समान राष्ट्र-भार या सेनापति पद को उठाने वाला एवं (प्रष्टिः) जिज्ञासा के कार्य में कुशल, अति तीव्र, मतिमान् पुरुष (बहति) उस पद को धारण करे। हे वीर जनो! (वः) आप लोगों के (यामाय) प्रयाण के विषय की बातें (पृथिवी चित्) पृथिवी, दुनियां भर या आकाश तक में भी (अश्रोत्) सुनाई देवे। और (मानुषाः) सर्व साधारण मनुष्य सुन कर भय खावें।
टिप्पणी
पृषत्यो मरुताम्—प्रावृषि सर्वतः पृषत्यो विचित्रा मेघमाला मरुतामिति स्कन्दस्वामी ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्वो घौर ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, ५, ९ पथ्याबृहती ॥ २, ७ उपरिष्टाद्विराड् बृहती। २, ८, १० विराट् सतः पंक्तिः । ४, ६ निचृत्सतः पंक्तिः । ३ अनुष्टुप् । दशर्चं सूक्तम् ।
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे यानात जल, अग्नी व वायूला युक्त करून त्यातून गमनागमन करतात तेव्हा ती सहजगत्या सर्वत्र जाण्या-येण्यास समर्थ होतात. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
For your travel on earth and in the sky, yoke to your chariot horses fast as winds. Let the red fire with the mist be the leader in front as motive power of the carrier. Let the earth hear the boom and people feel fear and awe.
Subject of the mantra
Then, uniting with whom humans should accomplish their tasks, this topic has been preached in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (mānuṣāḥ)=scholars ! (yūyam)=all of you, (vaḥ)=your, (yāmāya)=for going, (praṣṭiḥ)=by whom questions are asked with a desire to know, (rohitaḥ) [aise]=of red colour, having fire-like especial qualities, (agniḥ)=to fire, (pṛthivī)=earth, (bhūmau) =earth and, (antarikṣe)=in space, (gamanāya)=for going, (yān)=to whom, (vahati)=gets obtained, (yasya)=whose, (śabdān)=to words, (aśrot)=listen and, (abībhayanta) =are frightened, (teṣu)=their, (upo)=by proximity, (ratheṣu)=of land, water and space, (tam)=those, [jaloṃ se]=by waters, (pṛṣatīḥ)=the wind with the qualities of horses like speed etc. with which to irrigate, (ca)=also, (ayugdhvam)=use well.
English Translation (K.K.V.)
O learned people! All of you who are asked questions with the desire to know about your journey. Such an especial fire having collective qualities, like red colour speed, fire etc., for going to earth, land and space which it receives. Whose words are heard and fear is attained from their closeness to land, water and those waters of space with which water is irrigated. Use the air with the qualities of horses like speed etcetera.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
The human beings who combine water, fire and air in vehicles and travel and come by sitting in them, then they will be able to go and come everywhere happily.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
With whose association, should they ( Maruts) accomplish their tasks is taught further in the 6th Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O men, in order that your chariots (Vehicles) may travel on earth, water and the sky, you should yoke or harness the red fire about which you may ask the learned scientists. This fire mainly sustains the vehicles, and by its sound men are frightened.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
( रथेषु ) स्थलजलान्तरिक्षाणां मध्ये रमणसाधनेषु यानेषु = In the vehicles by which a man can travel on earth, water and the firmament. (पृषतीः) पर्षन्ति सिंचन्ति याभिस्ताः शीघ्रगतीः मरुतां धारणवेगादयोऽश्वाः | पृषत्यो मरुतामित्यादिष्टोपयोजननामसु पठितम् ( निघ० १.१५) = Fast going airs. ( रोहितः ) रत्नगुणविशिष्टस्याग्नेवेंगादिगुणसमूहः रोहितोऽग्नेरित्यादिष्टोपयोजननामसुपठितम् (निध. १.३) = The attributes of red fire.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If men properly use water, fire and air in the vehicles and thereby travel from one place to another, they can easily go and come everywhere.
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