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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 39 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 39/ मन्त्र 9
    ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - मरूतः छन्दः - पथ्यावृहती स्वरः - मध्यमः

    असा॑मि॒ हि प्र॑यज्यवः॒ कण्वं॑ द॒द प्र॑चेतसः । असा॑मिभिर्मरुत॒ आ न॑ ऊ॒तिभि॒र्गन्ता॑ वृ॒ष्टिं न वि॒द्युतः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    असा॑मि । हि । प्र॒ऽय॒ज्य॒वः॒ । कण्व॑म् । द॒द । प्र॒ऽचे॒त॒सः॒ । असा॑मिऽभिः । म॒रु॒तः॒ । आ । नः॒ । ऊ॒तिऽभिः॑ । गन्त॑ । वृ॒ष्टिम् । न । वि॒ऽद्युतः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    असामि हि प्रयज्यवः कण्वं दद प्रचेतसः । असामिभिर्मरुत आ न ऊतिभिर्गन्ता वृष्टिं न विद्युतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    असामि । हि । प्रयज्यवः । कण्वम् । दद । प्रचेतसः । असामिभिः । मरुतः । आ । नः । ऊतिभिः । गन्त । वृष्टिम् । न । विद्युतः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 39; मन्त्र » 9
    अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 19; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (असामि) संपूर्णम्। सामीति खण्डवाची। नसाभ्यसाभि (हि) खलु (प्रयज्यवः) प्रकृष्टो यज्युः परोपकाराख्यो यज्ञो येषां राजपुरुषाणां तत्संबुद्धौ (कण्वम्) मेधाविनं विद्यार्थिनम् (दद) दत्त। अत्र लोडर्थे लिट्। (प्रचेतसः) प्रकृष्टं चेतो ज्ञानं येषां ते (असामिभिः) क्षयरहिताभिः रीतिभिः। अत्र षैक्षय इत्यस्माद्बाहुलकादौणादिकोमिः प्रत्ययः। (मरुतः) पूर्णबला ऋत्विजः (आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (ऊतिभिः) रक्षादिभिः (गन्त) गच्छत। अत्र दीर्घः। (वृष्टिम्) वर्षाः (न) इव (विद्युतः) स्तनयित्नवः ॥९॥

    अन्वयः

    पुनस्तच्छोधिताः प्रेरिताः किं किं साध्नुवन्तीत्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    हे प्रयज्यवः प्रचेतसो मरुतो यूयं सामिभिरूतिभिर्न विद्युतो वृष्टिं #नारसामि सुखं सर्वस्मै दद हि किल शत्रुविजयाय कण्वमागन्त ॥९॥ #[‘नोऽसामि सुखं दद’। सं०।]

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यथा मरुतः सूर्यविद्युतश्च वृष्टिं कृत्वा सर्वेषां प्राणिनां सुखाय विविधानि फलपत्रपुष्पादीन्युत्पादयन्ति। तथैव विद्वांसः सर्वेभ्यो मनुष्येभ्यो वेदविद्यां दत्त्वा सुखानि संपादयंत्विति ॥९॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उनसे शोधे वा प्रेरे हुए वे क्या२ करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है।

    पदार्थ

    हे (प्रयज्यवः) अच्छे प्रकार परोपकार करने (प्रचेतसः) उत्तम ज्ञानयुक्त (मरुतः) विद्वान् लोगो ! तुम (असामिभिः) नाशरहित (ऊतिभिः) रक्षा सेना आदि से (न) जैसे (विद्युतः) सूर्य बिजुली आदि (वृष्टिम्) वर्षा कर सुखी करते हैं वैसे (नः) हम लोगों को (असामि) अखंडित सुख (दद) दीजिये (हि) निश्चय से दुष्ट शत्रुओं को जीतने के वास्ते (कण्वम्) और आप्त विद्वान् के समीप नित्य (आगन्त) अच्छे प्रकार जाया कीजिये ॥९॥

    भावार्थ

    इस मंत्र में उपमालङ्कार है। जैसे पवन सूर्य बिजुली आदि वर्षा करके सब प्राणियों के सुख के लिये अनेक प्रकार के फल, पत्र, पुष्प, अन्न आदि को उत्पन्न करते हैं वैसे विद्वान् लोग भी सब प्राणीमात्र को वेद विद्या देकर उत्तम-२ सुखों को निरन्तर संपादन करें ॥९॥

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    विषय

    फिर उनसे शोधित या प्रेरित किये हुए वे क्या-क्या करें, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे प्रयज्यवः प्रचेतसः मरुतः यूयम् असामिभि ऊतिभिः न विद्युतः वृष्टिं  नःअसामि सुखं दद हि किल शत्रुविजयाय कण्वम् आगन्त ॥९॥

    पदार्थ

    हे (प्रयज्यवः) प्रकृष्टो यज्युः परोपकाराख्यो यज्ञो येषां राजपुरुषाणां तत्संबुद्धौ=जिन राजपुरुषों के प्रकृष्ट यज्ञ और परोपकार हैं, (प्रचेतसः) प्रकृष्टं चेतो ज्ञानं येषां ते=जिनके प्रकृष्ट ज्ञान हैं, वे (मरुतः) पूर्णबला ऋत्विजः=पूर्ण बलशाली  ऋत्विज, (यूयम्)=तुम सब, (असामिभिः) क्षयरहिताभिः रीतिभिः=क्षय रहित रीतियों से,  (ऊतिभिः)=रक्षाओं के,  (न) इव=समान, (विद्युतः) स्तनयित्नवः=बिजली और (वृष्टिम्) वर्षाः=वर्षा,  (नः) अस्मभ्यम्=हमारे लिये, (असामि) संपूर्णम्=संपूर्ण,  (सुखम्)= सुख को, (दद) दत्त=देवें, (हि) खलु=निश्चित रूप से,  (शत्रुविजयाय)=शत्रु पर विजय के लिये, (कण्वम्) मेधाविनं विद्यार्थिनम्=मेधावी विद्यार्थी, (आ) समन्तात्=हर ओर से, (गन्त) गच्छत=जायें ॥९॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    इस मंत्र में उपमालङ्कार है। जैसे पवन सूर्य बिजुली आदि वर्षा करके सब प्राणियों के सुख के लिये अनेक प्रकार के फल, पत्र, पुष्प, अन्न आदि को उत्पन्न करते हैं वैसे विद्वान् लोग भी सब प्राणीमात्र को वेद विद्या देकर उत्तम-उत्तम सुखों को निरन्तर संपादन करें ॥९॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    हे (प्रयज्यवः) जिन राजपुरुषों के प्रकृष्ट यज्ञ और परोपकार हैं (प्रचेतसः) और जिनके प्रकृष्ट ज्ञान हैं, ऐसे (मरुतः) पूर्ण बलशाली  ऋत्विज! (यूयम्) तुम सब (असामिभिः) क्षय रहित रीतियों से  (ऊतिभिः) रक्षाओं के (न) समान (विद्युतः) बिजली और (वृष्टिम्) वर्षा, (नः) हमारे लिये (असामि) संपूर्ण (सुखम्) सुख के लिये (दद) दीजिये। (हि) निश्चित रूप से  (शत्रुविजयाय) शत्रु पर विजय के लिये (कण्वम्) मेधावी विद्यार्थी (आ) हर ओर से (गन्त) जायें ॥९॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृतः)- (असामि) संपूर्णम्। सामीति खण्डवाची। नसाभ्यसाभि (हि) खलु (प्रयज्यवः) प्रकृष्टो यज्युः परोपकाराख्यो यज्ञो येषां राजपुरुषाणां तत्संबुद्धौ (कण्वम्) मेधाविनं विद्यार्थिनम् (दद) दत्त। अत्र लोडर्थे लिट्। (प्रचेतसः) प्रकृष्टं चेतो ज्ञानं येषां ते (असामिभिः) क्षयरहिताभिः रीतिभिः। अत्र षैक्षय इत्यस्माद्बाहुलकादौणादिकोमिः प्रत्ययः। (मरुतः) पूर्णबला ऋत्विजः (आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (ऊतिभिः) रक्षादिभिः (गन्त) गच्छत। अत्र दीर्घः। (वृष्टिम्) वर्षाः (न) इव (विद्युतः) स्तनयित्नवः ॥९॥ 
    विषयः-  पुनस्तच्छोधिताः प्रेरिताः किं किं साध्नुवन्तीत्युपदिश्यते।

    अन्वयः- हे प्रयज्यवः प्रचेतसो मरुतो यूयं असामिभिरूतिभिर्न विद्युतो वृष्टिं  नोऽसामि सुखं दद हि किल शत्रुविजयाय कण्वमागन्त ॥९॥ #['नोऽसामि सुखं दद'। सं०।]

    भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्रोपमालङ्कारः। यथा मरुतः सूर्यविद्युतश्च वृष्टिं कृत्वा सर्वेषां प्राणिनां सुखाय विविधानि फलपत्रपुष्पादीन्युत्पादयन्ति। तथैव विद्वांसः सर्वेभ्यो मनुष्येभ्यो वेदविद्यां दत्त्वा सुखानि संपादयंत्विति ॥९॥

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    विषय

    ब्रह्म' का रक्षक 'क्षत्र'

    पदार्थ

    १. हे (मरुतः) - वीर सैनिको ! आप (हि) - निश्चय से (असामि) - पूर्णरूप से (प्रयज्यवः) - परोपकार नाम यज्ञ को [द०] करनेवाले हैं । ये वीर सैनिक अपने प्राणों की आहुति देकर राष्ट्र की रक्षा करते हैं, इससे बढ़कर परोपकार क्या हो सकता है ? 
    २. हे वीर सैनिको ! (प्रचेतसः) - प्रकृष्ट चेतनावाले आप (कण्वं, दद) - मेधावी पुरुष को [धारयत - सा०] धारण करते हैं । समझदार क्षत्रिय राष्ट्र में ब्राह्मण की रक्षा करना अपना मूल कर्तव्य समझता है । 
    ३. हे वीर सैनिको ! आप (असामिभिः, ऊतिभिः) - पूर्ण रक्षणों से (नः) - हमें उसी प्रकार (आगन्त) - समन्तात् प्राप्त होओ (नः) - जैसे (वृष्टिम्) - वृष्टि को (विद्युतः) - बिजलियाँ प्राप्त होती हैं । विद्युत् वृष्टि की वृद्धि का कारण होती है, इसी प्रकार वीर सैनिक रक्षण के द्वारा प्रजा की वृद्धि का कारण बनें । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ - राष्ट्र में क्षत्र को ब्रह्म का रक्षण करना चाहिए । 
     

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    विषय

    ‘पृषतीः’ का रहस्य ।

    भावार्थ

    (विद्युतः) बिजुलियां (न) जिस प्रकार (वृष्टिम्) वर्षा को पूरी तरह बरसा देते हैं उसी प्रकार हे (प्रचेतसः) उत्तम ज्ञान से युक्त (प्रयज्यवः) उत्तम ज्ञान और ऐश्वर्य के देने हारे (मरुतः) विद्वान् पुरुषो! आप लोग भी (नः) हमारे (कण्वम्) प्रज्ञावान् शिष्य के प्रति (असामिभिः ऊतिभिः) अपने सम्पूर्ण ज्ञानों और ब्रह्मचर्य आदि पालनकारी शिक्षाओं सहित (आ गन्त) आओ और (असामि) पूर्ण ज्ञान और सामर्थ्य (दद) प्रदान करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कण्वो घौर ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्दः- १, ५, ९ पथ्याबृहती ॥ २, ७ उपरिष्टाद्विराड् बृहती। २, ८, १० विराट् सतः पंक्तिः । ४, ६ निचृत्सतः पंक्तिः । ३ अनुष्टुप् । दशर्चं सूक्तम् ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसे वायू, सूर्य, विद्युत इत्यादी वृष्टी करून सर्व प्राण्यांच्या सुखासाठी अनेक प्रकारची फळे, पत्र, पुष्प, अन्न इत्यादी उत्पन्न करतात तसे विद्वान लोकांनीही सर्व प्राणिमात्रांना वेदविद्या देऊन उत्तम सुख निरंतर संपादन करावे. ॥ ९ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Heroic yajakas, brilliant men of knowledge and wisdom, mighty heroes of the speed of winds, just as flashes of lightning bring showers of rain for us, so with spontaneous, unqualified and unreserved powers and protections give us peace, freedom and comfort, whole, complete and undisturbed. And to suppress the evil and the wicked, go to the man of wisdom and vision for light and guidance.

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    Subject of the mantra

    Then, what should they do after being purified or inspired by them, this topic has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (prayajyavaḥ)=the royal people who have great sacrifice and charity, (pracetasaḥ)= And those who have great knowledge, such, (marutaḥ)=full powerful ṛtvija! (yūyam)=all of you, (asāmibhiḥ)=in decay free ways, (ūtibhiḥ)=of defenses, (na)=like, (vidyutaḥ)=thunder and, (vṛṣṭim)=rain, (naḥ)=for us, (asāmi =full,(sukham)=for delight, (dada)=provide, (hi)=definitelt, (śatruvijayāya)=to conquer the enemy, (kaṇvam)=bright student (ā)=from all sides, (ganta)=must go.

    English Translation (K.K.V.)

    O royal people who have excellent sacrifices and charity and who have excellent knowledge, such full-strength ṛtvija! You all give us lightning and rain like protection with decay free rituals for complete happiness. Certainly meritorious students should go from all sides to win over the enemy.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    There is simile as a figurative in this mantra. Just as wind, Sun, lightning etc. produce many types of fruits, leaves, flowers, grains etc. for the happiness of all living beings by raining, in the same way, the learned people also give the knowledge of Vedas to all the living beings and continuously achieve the best happiness.

    TRANSLATOR’S NOTES-

    The term ṛtvija has been explained in the mantra Rigveda 01.39.08.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What do people reformed and prompted by them (Maruts) accomplish is taught in the ninth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O mighty highly learned persons who are always engaged in the performance of Yajna in the form of philanthropic activities, give entire happiness to all by your undivided protective powers as lighting brings the rain. Come to the aid of a highly intelligent person for conquering his enemies.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    ( प्रचेतसः ) प्रकृष्टं चेतो ज्ञानं येषां ते = Full of Knowledge. (असामि) सम्पूर्णम् | सामीति खण्डवाची । न सामि असामि । = Entire, whole S. Sama-Latin and English Semi. (असामिभिः ) क्षयरहिताभिः रीतिभिः अत्र षैक्षये इत्यस्माद् बाहुलकादौणादिको मिप्रत्ययः । = By un-decaying manners.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There is Upamalankara or simile used in the Mantra. As Monsoon winds, sun and lightning cause the production of fruits and flowers by means of the rains for the happiness of all, in the same manner, learned persons should make all people happy by giving them Vedic knowledge.

    Translator's Notes

    Wilson, Griffith, Maxmuller and other Western translators have again committed the mistake of taking Kanva as the name of a particular sage, instead of taking it as a general noun denoting a highly intelligent person as un-ambiguously stated in the Vedic Lexicon-Nighantu- कण्व इति मेधाविनाम (निघ० ३,१५) How audacious are some of these Western scholars is exemplified by Ludwig's conjecture which Prof. Maxmuller remarks as bold. “Ludwig proposes some bold conjectures. He would change ( कण्वम् Kanvam ) to (रएवम् Ranvam ). " No comments are needed. It is remarkable that Prof. Maxmuller also translates प्रचेतसः as wise Maruts and so does Griffith. Is it applicable to Storm Gods ?

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