ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 42/ मन्त्र 2
यो नः॑ पूषन्न॒घो वृको॑ दुः॒शेव॑ आ॒दिदे॑शति । अप॑ स्म॒ तं प॒थो ज॑हि ॥
स्वर सहित पद पाठयः । नः॒ । पू॒ष॒न् । अ॒घः । वृकः॑ । दुः॒शेव॑ । आ॒ऽदिदे॑शति । अप॑ । स्म॒ । तम् । प॒थः । ज॒हि॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यो नः पूषन्नघो वृको दुःशेव आदिदेशति । अप स्म तं पथो जहि ॥
स्वर रहित पद पाठयः । नः । पूषन् । अघः । वृकः । दुःशेव । आदिदेशति । अप । स्म । तम् । पथः । जहि॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 42; मन्त्र » 2
अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 24; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
(यः) वक्ष्यमाणः (नः) अस्मान् (पूषन्) विद्वन् (अघः) अघं पापं विद्यते यस्मिन् सः (वृकः) स्तेनः। वृकइति स्तेनना०। निघं० ३।२४। (दुःशेवः) दुःखे शाययितुमर्हः (आदिदेशति) अतिसृजेदस्मानतिदेश्य पीडयेत् (अप) निवारणे (स्म) एव (तम्) दुष्टस्वभावम् (पथः) धर्मराजप्रजामार्गाद्दूरे (जहि) हिन्धि गमय वा ॥२॥
अन्वयः
ये धर्म्मराजमार्गेषु विघ्नकर्त्तारस्ते निवारणीयाइत्युपदिश्यते।
पदार्थः
हे पूषन् विद्वँस्त्वं योऽघो दुःशेवो वृकः स्तेनोऽस्मानादिदेशति तं पथोऽपजहि विनाशय वा दूरे निक्षिप ॥२॥
भावार्थः
मनुष्यैः शिक्षाविद्यासेनाबलेन परस्वादायिनः शठाश्चोराः सर्वथा हन्तव्या दूरतः प्रक्षेप्याः सततं बन्धनीयाश्चैवं विधाय राजधर्म्मप्रजामार्गा निःशंका निर्भयाः संपादनीयाः। यथा परमेश्वरो दुष्टाँस्तत्कर्म्मानुसारेण शिक्षते तथैवाऽस्माभिरप्येते शिक्षादण्डवेदद्वारा सर्वे साधवः संपादनीया इति ॥२॥
हिन्दी (4)
विषय
जो धर्म्म और राज्य के मार्गों में विघ्न करते हैं, उनका निवारण करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया हैं।
पदार्थ
हे (पूषन्) सब जगत् को विद्या से पुष्ट करनेवाले विद्वान् ! आप (यः) जो (अघः) पाप करने (दुःशेवः) दुःख में शयन कराने योग्य (वृकः) स्तेन अर्थात् दुःख देने वाला चोर (नः) हम लोगों को (आदिदेशति) उद्देश करके पीड़ा देता हो (तम्) उस दुष्ट स्वभाव वाले को (पथः) राजधर्म और प्रजामार्ग से (अपजहि) नष्ट वा दूर कीजिये ॥२॥
भावार्थ
मनुष्यों को उचित है कि शिक्षा विद्या तथा सेना के बल से दूसरे के धन को लेने वाले शठ और चोरों को मारना सर्वथा दूर करना निरन्तर बाँध के राजनीति के मार्गों को भय से रहित संपादन करें जैसे जगदीश्वर दुष्टों को उनके कर्मों के अनुसार दण्ड के द्वारा शिक्षा करता है वैसे हम लोग भी दुष्टों को दण्ड द्वारा शिक्षा देकर श्रेष्ठ स्वभावयुक्त करें ॥२॥
विषय
'अघ - वृक - दुःशेव'
पदार्थ
१. हे (पूषन्) - पोषक प्रभो ! (यः) - जो कोई (अघः) - पापमय जीवनवाला, औरों को कष्ट पहुँचानेवाला (वृकः) - लोभ के कारण अन्याय्य धन का ग्रहण करनेवाला, (दुःशेवः) - दुष्ट सुखोंवाला, अर्थात् दुराचरण में आनन्द समझनेवाला (नः) - हमें (आदिदेशति) - सब प्रकार से बुराई का संकेत करता है, बुराई में पड़ने के लिए फुसलाता है (तम्) - उसको (पथः) - हमारे मार्ग से (अप, जहि स्म) - सुदूर भगा दीजिए [हन् गति], अर्थात् हमें इस जीवन - मार्ग में 'अघ, वृक व दुःशेव' पुरुष भटकाने में समर्थ न हों ।
भावार्थ
भावार्थ - हमें जीवन - मार्ग में विचलित करनेवाले पुरुष प्राप्त न हों ।
विषय
पूषा, पृथ्वी के समान प्रजापालक राजा के कर्त्तव्य ।
भावार्थ
हे (पूषन्) प्रजा के पोषक! (यः) जो (अधः) पापी (वृकः) दूसरों के धनों का चोर, (दुःसेवः) दुःखदायी होकर (नः) हम पर (आदिदेशति) शासन करता है (तं) उसको तू (पथः) हमारे मार्ग से कांटे के समान (अप जहि) दूर उखाड़ फेंक।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्वो घौर ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः - १, ९—निचृद्गायत्री। २, ३, ५-८, १० गायत्री । दशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
जो धर्म्म और राज्य के मार्गों में विघ्न करते हैं, उनका निवारण करना चाहिये। इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया हैं।
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
हे पूषन् विद्वन् त्वं यःअघः दुःशेवः वृकः स्तेनः अस्मान् आदिदेशति तं पथः अप जहि विनाशय वा दूरे नि क्षिप ॥२॥
पदार्थ
हे (पूषन्)=विद्वान् ! (त्वम्)=तुम, (यः) वक्ष्यमाणः =कहे गये, (अघः) अघं पापं विद्यते यस्मिन् सः=पापी, (दुःशेवः) दुःखे शाययितुमर्हः= अतिशय दुःख के योग्य, (वृकः) स्तेनः=चोर, (अस्मान्)=हमें, (आदिदेशति) अतिसृजेदस्मानतिदेश्य पीडयेत्=पीड़ा देकर दूर कर देता है, (तम्) दुष्टस्वभावम्=दुष्टस्वभाव को, (पथः) धर्मराजप्रजामार्गाद्दूरे= धर्म, राज और प्रजा के मार्ग से दूर, (अप) निवारणे = निवारण करने में, (जहि) हिन्धि गमय वा=मार दो या, (विनाशय)= विनाश कर दो, (वा)=अथवा, (दूरे)=दूर, (निक्षिप)=फेंक दीजिये ॥२॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
मनुष्यों के द्वारा शिक्षा, विद्या और सेना के बल से दूसरे के धन को लेने वाले शठ और चोरों को सर्वथा मारकर फेंकते हुए निरन्तर बाँध करके ही कानून से राजधर्म और प्रजा के लिए बताए गए मार्गों पर शंका रहित रूप से और निर्भय रूप से लगाना चाहिए। जैसे परमेश्वर दुष्टों को उनके कर्मों के अनुसार शिक्षा देता है, वैसे हम लोगों के द्वारा भी इनको वेद में दिये नियमों के अनुसार शिक्षा और दण्ड के द्वारा सबको उत्तम बनाना चाहिए ॥२॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
हे (पूषन्) विद्वान् ! (त्वम्) तुम (यः) कहे गये (अघः) पापी और (दुःशेवः) अतिशय दुःख के योग्य (वृकः) चोर (अस्मान्) हमें (आदिदेशति) पीड़ा देकर दूर कर देता है, [उस] (तम्) दुष्टस्वभाववाले को (पथः) धर्म, राज और प्रजा के मार्ग से दूर (अप) कर दीजिये, (जहि) मार दीजिये या उसका (विनाशय) विनाश कर दीजिये (वा) अथवा [उसे] (दूरे) दूर (निक्षिप) फेंक दीजिये ॥२॥
संस्कृत भाग
पदार्थः(महर्षिकृत)- (यः) वक्ष्यमाणः (नः) अस्मान् (पूषन्) विद्वन् (अघः) अघं पापं विद्यते यस्मिन् सः (वृकः) स्तेनः। वृकइति स्तेनना०। निघं० ३।२४। (दुःशेवः) दुःखे शाययितुमर्हः (आदिदेशति) अतिसृजेदस्मानतिदेश्य पीडयेत् (अप) निवारणे (स्म) एव (तम्) दुष्टस्वभावम् (पथः) धर्मराजप्रजामार्गाद्दूरे (जहि) हिन्धि गमय वा ॥२॥ विषयः- ये धर्म्मराजमार्गेषु विघ्नकर्त्तारस्ते निवारणीयाइत्युपदिश्यते। अन्वयः- हे पूषन् विद्वँस्त्वं योऽघो दुःशेवो वृकः स्तेनोऽस्मानादिदेशति तं पथोऽपजहि विनाशय वा दूरे निक्षिप ॥२॥ भावार्थः(महर्षिकृत)- मनुष्यैः शिक्षाविद्यासेनाबलेन परस्वादायिनः शठाश्चोराः सर्वथा हन्तव्या दूरतः प्रक्षेप्याः सततं बन्धनीयाश्चैवं विधाय राजधर्म्मप्रजामार्गा निःशंका निर्भयाः संपादनीयाः। यथा परमेश्वरो दुष्टाँस्तत्कर्म्मानुसारेण शिक्षते तथैवाऽस्माभिरप्येते शिक्षादण्डवेदद्वारा सर्वे साधवः संपादनीया इति ॥२॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी शिक्षण, विद्या व सेनेच्या बलाने दुसऱ्याच्या धनाचे अपहरण करणाऱ्या चोराचे हनन करून नेहमीसाठी दूर करावे. सतत बंधनात ठेवावे व राजनीतीचा मार्ग भयरहित करावा. जसे जगदीश्वर दुष्टांना दंड देऊन शिकवितो तसे आम्हीही दुष्टांना दंड देऊन शिक्षणाद्वारे श्रेष्ठ स्वभावाचे बनवावे. ॥ २ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Pusha, lord of physical, moral, spiritual and intellectual nourishment, whoever be the sinner, the thief, the malignant enemy that orders us to be off from the right path, remove him from the path.
Subject of the mantra
Those who obstruct the path of righteousness and state, they should be removed. This subject has been preached in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (pūṣan)=scholar ! (tvam)=you, (yaḥ)=having told, (aghaḥ)=sinful and, (duḥśevaḥ)=deserving of great sorrow, (vṛkaḥ)=thieves, (asmān)=to us, (ādideśati)=painfully removes, [usa]=to that, (tam)=to the ill-tempered, (pathaḥ) =away from path of righteousness, state and people, (apa)=do it, (jahi)=kill or his, (vināśaya)=destroy, (vā)=otherwise, [use]=him, (dūre)=far, (nikṣipa)=throw.02
English Translation (K.K.V.)
O scholar! You kill or destroy or throw him away who is said to be a sinner and a thief worthy of great sorrow. He drives us away by giving us pain. Remove that evil-natured person from the path of righteousness, rule and people.02
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
Through the power of education, knowledge and military, the cheaters and thieves who take away other's wealth should be completely killed and thrown away by human beings and they should continuously bind them and follow the path laid down by the law for the state religion and the people, without any doubt and fearlessly. Just as God teaches the wicked according to their deeds, similarly we too should make everyone better by teaching and punishing them as per the rules given in the Vedas.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Those who put obstacles in the path of righteousness or Royal Roads should be removed, is taught in the Second Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O nourisher, learned person, drive away from our path, (annihilate or throw away as the need be) a sinner who is a thief, a wicked, inauspicious person who deserves punishment for causing suffering to others, and who lies in wait to injure us.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(अघः) अयं पापं विद्यते यस्मिन् सः = Sinner (वृक:) स्तेन: वृक इति स्तेन नाम ( निघ० ३.२४) = Thief.( दुःशेव:) दु:खे शाययितुमर्ह:= Punishable.
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should kill, throw away or imprison with the help of education, knowledge and army those wicked thieves who take away others' property. By so doing, they should make all roads and paths free from fear and danger. As God punishes the wicked according to their actions, in the same manner, we should also make them noble by giving proper Vedic education and suitable punishment.
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