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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 42/ मन्त्र 8
    ऋषिः - कण्वो घौरः देवता - पूषा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अ॒भि सू॒यव॑सं नय॒ न न॑वज्वा॒रो अध्व॑ने । पूष॑न्नि॒ह क्रतुं॑ विदः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒भि । सु॒ऽयव॑सम् । न॒य॒ । न । न॒व॒ऽज्वा॒रः । अध्व॑ने । पूष॑न् । इ॒ह । क्रतु॑म् । वि॒दः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि सूयवसं नय न नवज्वारो अध्वने । पूषन्निह क्रतुं विदः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । सुयवसम् । नय । न । नवज्वारः । अध्वने । पूषन् । इह । क्रतुम् । विदः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 42; मन्त्र » 8
    अष्टक » 1; अध्याय » 3; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    (अभि) आभिमुख्ये (सुयवसम्) शोभनो यवाद्योषधिसमूहो यस्मिन्देशे तम्। अत्र अन्येषामपिदृश्यते इति दीर्घः। (नय) प्रापय (न) निषेधार्थे (नवज्वारः) यो नवो नूतनश्चासौ ज्वारः संतापश्च सः (अध्वने) मार्गाय (पूषन्) सभाध्यक्ष (इह) उक्तार्थम् (विदः) प्राप्नुहि ॥८॥

    अन्वयः

    पुनस्तेन किं प्रापणीयमित्युपदिश्यते।

    पदार्थः

    हे पूषंस्त्वमिहाऽधवने सुयवसं देशमभिनय तेन मार्गेण क्रतुं विदो येन त्वयि नवज्वारो न भवेत् ॥८॥

    भावार्थः

    हे परमेश्वर ! भवान् स्वकृपया श्रेष्ठदेशं गुणाँश्चास्मभ्यं देहि। सर्वाणि दुःखानि निवार्य्य सुखानि प्रापय हे विद्वन् सभाध्यक्ष ! त्वमस्मान् विनयेन पालयित्वा विद्यां शिक्षयित्वाऽस्मिन्राज्ये सुखयेति ॥८॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसने किसको प्राप्त होना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

    पदार्थ

    हे (पूषन्) सभाध्यक्ष ! इस संसार वा जन्मांतर में (अध्वने) श्रेष्ठ मार्ग के लिये हम लोगों को (सुयवसम्) उत्तम यव आदि ओषधी होनेवाले देश को (अभिनय) सब प्रकार प्राप्त कीजिये और (क्रतुम्) उत्तम कर्म वा प्रज्ञा को (विदः) प्राप्त हूजिये जिससे इस मार्ग में चलके हम लोगों में (नवज्वारः) नवीन-२ सन्ताप (न) न हों ॥८॥

    भावार्थ

    हे सभाध्यक्ष ! आप अपनी कृपा से श्रेष्ठ देश वा उत्तम गुण हम लोगों को दीजिये और सब दुःखों को निवारण कर सुखों को प्राप्त कीजिये, हे सभासेनाध्यक्ष ! विद्वान् लोगों को विनयपूर्वक पालन से विद्या पढ़ाकर इस राज्य में सुख युक्त कीजिये ॥८॥

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    विषय

    सूयवस - 'सात्विक भोजन'

    पदार्थ

    १. हे (पूषन्) - पोषक प्रभो ! हम सुपथ से ही चलें, अतः आप हमें (सूयवसम्) - उत्तम यव - जौ आदि ओषधिरूप भोजनों की ओर (अभिनय) - आभिमुख्येन ले - चलिए । हमारा झुकाव सदा यव आदि सात्त्विक अन्नों को खाने की ओर हो । 
    २. इन सात्त्विक अन्नों के सेवन से हमारी बुद्धि भी सात्त्विक होगी और तब (अध्वने) - मार्ग पर चलने के लिए (नव ज्वारः न) - कोई नया बुखार न चढ़ आएगा, अर्थात् हमारा मन किसी नवीन व्यसन का शिकार होकर मार्ग पर चलने से रुक न जाएगा । 
    ३. इस सबके लिए अर्थात् 'सात्त्विक के सेवन' तथा 'नवीन व्यसनों के न आने के लिए' हे (पूषन्) - पोषक प्रभो ! आप (इह( - इस जीवन - यात्रा में हमें (क्रतुम्) - कर्मशक्ति, प्रज्ञा व संकल्प को (विदः) - प्राप्त कराइए । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ - हम संकल्प करें कि हम सात्त्विक भोजन ही करेंगे और हमें किसी नवीन व्यसन का ज्वर न चढ़ पाएगा । 
     

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    विषय

    नानाप्रकार के दुष्टों का दमन, ऐश्वर्यों का संञ्चय ।

    भावार्थ

    हे (पूषन्) सबको अन्न आदि से परिपुष्ट करनेहारे प्रभो! राजन्! विद्वन्! (सूयवसं) जिस प्रकार पशुपालक अपने पशुओं को उत्तम चारे से भरे खेत में चराने के लिए ले जाता है उसी प्रकार तू भी हमें (सूयवसम् अभि नय) उत्तम यव आदिअन्नों और ओषधियों से युक्त देश को पहुंचा। जिससे (अध्वने) मार्ग का (नवज्वारः) नया कोई संताप, पीड़ा, थकान आदि भी (न) न हो। (इह) इस संसार में तू ही (क्रतुं) कर्म सामर्थ्य और ज्ञान को भी (विदः) प्राप्त कर और करा।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कण्वो घौर ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः - १, ९—निचृद्गायत्री। २, ३, ५-८, १० गायत्री । दशर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    फिर उसके किसको प्राप्त किया जाना चाहिये, इस विषय का उपदेश इस मंत्र में किया है।

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    हे पूषन् त्वं इह अध्वने सुयवसं देशम् अभि नय तेन मार्गेण क्रतुं विदः येन त्वयि नवज्वारः न भवेत् ॥८॥

    पदार्थ

    हे (पूषन्) सभाध्यक्ष= सभाध्यक्ष! (त्वम्)=तुम, (इह) उक्तार्थम् [अस्मिन्समये संसारे वा]=इस समय या इस संसार में, (अध्वने) मार्गाय= मार्ग के लिये, (सुयवसम्) शोभनो यवाद्योषधिसमूहो यस्मिन्देशे तम्=जिस देश में यव (जौ) आदि उत्तम ओषधियों के समूह हैं, उस (देशम्)= देश को, (अभि) आभिमुख्ये=सामने से, (नय) प्रापय= ले जाइये। (तेन)=उसके, (मार्गेण)=मार्ग से, (क्रतुम्)=वेद के अनुष्ठान, (विदः) प्राप्नुहि==[का ज्ञान हमें]प्राप्त कराइये, (येन)=जिससे, (त्वयि)=तुम में, (नवज्वारः) यो नवो नूतनश्चासौ ज्वारः संतापश्च सः=जो नया ज्वार है, वह दुःख देनेवाला, (न) निषेधार्थे=न, (भवेत्)=होवे ॥८॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    हे परमेश्वर ! आप अपनी कृपा से श्रेष्ठ देश और उत्तम गुण हम लोगों को दीजिये । सब दुःखों का निवारण करके सुखों को प्राप्त कराइये। हे विद्वान् सभा के अध्यक्ष ! तुम हम लोगों का विनयपूर्वक पालन करके विद्या से शिक्षित करके इस राज्य को सुख युक्त कीजिये ॥८॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    हे (पूषन्) सभाध्यक्ष! (त्वम्) तुम (इह) इस समय या इस संसार में, (अध्वने) मार्ग के लिये (सुयवसम्) जिस देश में जौ आदि उत्तम ओषधियों के समूह हैं, उस (देशम्) देश को (अभि) सामने से (नय) ले जाइये। । (तेन) उसके (मार्गेण) मार्ग से (क्रतुम्) वेद के अनुष्ठान (विदः) [का ज्ञान हमें] प्राप्त कराइये, (येन) जिससे (त्वयि) तुम में (नवज्वारः) जो नया ज्वार है, वह दुःख देनेवाला (न) न (भवेत्) होवे ॥८॥

    संस्कृत भाग

    पदार्थः(महर्षिकृत)- (अभि) आभिमुख्ये (सुयवसम्) शोभनो यवाद्योषधिसमूहो यस्मिन्देशे तम्। अत्र अन्येषामपिदृश्यते इति दीर्घः। (नय) प्रापय (न) निषेधार्थे (नवज्वारः) यो नवो नूतनश्चासौ ज्वारः संतापश्च सः (अध्वने) मार्गाय (पूषन्) सभाध्यक्ष (इह) उक्तार्थम् (विदः) प्राप्नुहि ॥८॥ विषयः- पुनस्तेन किं प्रापणीयमित्युपदिश्यते। अन्वयः- हे पूषंस्त्वमिहाऽध्वने सुयवसं देशमभिनय तेन मार्गेण क्रतुं विदो येन त्वयि नवज्वारो न भवेत् ॥८॥ भावार्थः (महर्षिकृत)- हे परमेश्वर ! भवान् स्वकृपया श्रेष्ठदेशं गुणाँश्चास्मभ्यं देहि। सर्वाणि दुःखानि निवार्य्य सुखानि प्रापय हे विद्वन् सभाध्यक्ष ! त्वमस्मान् विनयेन पालयित्वा विद्यां शिक्षयित्वाऽस्मिन्राज्ये सुखयेति ॥८॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे परमेश्वरा ! तू तुझ्या कृपेने आम्हाला श्रेष्ठ देश (स्थान) व उत्तम गुण मिळू दे व सर्व दुःखाचे निवारण करून सुख प्राप्त करून दे. हे विद्वान सभासेनाध्यक्षा तू विद्वानांचे पालन करून व विद्या शिकवून या राज्याला सुखी कर. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Pusha, lord of growth and advancement, take us to the land of manna, beauty and joy. No new obstacles, no sufferance on the way. And then know the noble acts (we do in the new land).

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    Subject of the mantra

    Then who should be obtained from this, this subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (pūṣan)= chairman of the assembly, (tvam)=you, (iha)=at this time or in this world, (adhvane)=for the way, (suyavasam)=the place where there are groups of best herbal medicines like barley etc., (deśam) =to the place, (abhi) =from front, (naya)=take away, (tena) =its, (mārgeṇa) =from the way, (kratum) =rituals of Vedas, (vidaḥ)=get obtained, [kā jñāna hameṃ] knowledge to us, (yena)=by which, (tvayi)=in you, (navajvāraḥ)=that new sorghum is, that pain giver, (na)=not, (bhavet)=be.

    English Translation (K.K.V.)

    O chairman of the assembly! At this time or in this world, take to the place from the front where there are groups of best herbal medicines like barley etc. for the way. Get us the knowledge of the rituals of the Vedas from that path, so that the new sorghum that has grown, may not be pain giver to you.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    O God! By your grace, please give us the best place and best qualities. Make us get rid of all the sorrows and attain happiness. O President of the learned Assembly! You nourish us politely and educate us with knowledge and make this kingdom full of happiness.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should he (Poosha) cause to attain is taught in the 8th Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O God the nourisher of all and the President of the Assembly, protector of the people, lead us where there is abundant fodder, barley and other herbs. Grant us knowledge and the power of action, so that while on the way (of doing noble deeds) there may not be fever or any trouble caused by extreme heat etc.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    [ पूषन ] [१] परमेश्वर, [२] सभाध्यक्ष | God is called Poosha (1) as He is the nourisher of all. The President of the Assembly or King is also called पूषा (Poosha) as it is his duty to see that all subject are nourished and fed properly. The word may also be used for the commander of an army.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O God, grant us by Thy grace a beautiful country and good attributes, remove all miseries and lead us to happiness. O learned President of the Assembly, make us happy in this land by safe-guarding and preserving us with humility and giving us good education.

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