ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 79/ मन्त्र 9
आ नो॑ अग्ने सुचे॒तुना॑ र॒यिं वि॒श्वायु॑पोषसम्। मा॒र्डी॒कं धे॑हि जी॒वसे॑ ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । सु॒ऽचे॒तुना॑ । र॒यिम् । वि॒श्वायु॑ऽपोषसम् । मा॒र्डी॒कम् । धे॒हि॒ । जी॒वसे॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ नो अग्ने सुचेतुना रयिं विश्वायुपोषसम्। मार्डीकं धेहि जीवसे ॥
स्वर रहित पद पाठआ। नः। अग्ने। सुऽचेतुना। रयिम्। विश्वायुऽपोषसम्। मार्डीकम्। धेहि। जीवसे ॥
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 79; मन्त्र » 9
अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 28; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥
अन्वयः
हे अग्ने ! त्वं नोऽस्मभ्यञ्जीवसे सुचेतुना विश्वायुपोषसं मार्डीकं रयिमाधेहि ॥ ९ ॥
पदार्थः
(आ) समन्तात् (नः) अस्मभ्यम् (अग्ने) विज्ञानसुखद (सुचेतुना) सुष्ठु विज्ञानेन सह वर्त्तमानम् (रयिम्) धनसमूहम् (विश्वायुपोषसम्) अखिलायुपुष्टिकारकम् (मार्डीकम्) मृडीकानां सुखानामिमं साधकम् (धेहि) (जीवसे) जीवितुम् ॥ ९ ॥
भावार्थः
मनुष्यैः संसेवितो विद्वान् सुशिक्षां कृत्वा पूर्णायुप्रापके विद्याधने ददाति ॥ ९ ॥
हिन्दी (4)
विषय
फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
पदार्थ
हे (अग्ने) विज्ञान और सुख के देनेवाले विद्वान् ! आप (नः) हमारे (जीवसे) जीवन के लिये (सुचेतुना) अच्छे विज्ञान से युक्त (विश्वायुपोषसम्) सम्पूर्ण अवस्था में पुष्टि करने (मार्डीकम्) सुखों के सिद्ध करनेवाले (रयिम्) धन को (आधेहि) सब प्रकार धारण कीजिये ॥ ९ ॥
भावार्थ
मनुष्यों को अच्छी प्रकार सेवा किया हुआ विद्वान् विज्ञान और धन को देके पूर्ण आयु भोगने के लिये विद्या धन को देता है ॥ ९ ॥
विषय
विश्वायुपोषस्
पदार्थ
१. हे (अग्ने) = परमात्मन् ! आप (नः जीवसे) = हमारे उत्तम जीवन के लिए (सुचेतुना) = उत्तम ज्ञान के साथ (रयिम्) = धन को (आधेहि) = धारण कीजिए । उस धन को (जोकि विश्वायुपोषसम्) = सारे जीवन में पोषण के लिए हो और (मार्डीकम्) = हमारे जीवन को सुखी बनानेवाला हो । २. यहाँ ज्ञानयुक्त धन की प्रार्थना इसलिए ही की कि यह धन हमारी अवनति का कारण न बन पाये । धन से सम्भावित सब अवनतियों को रोकने का काम ज्ञान ही करता है । ज्ञान होने पर हम धन से धन्य बनते हैं, जबकि ज्ञान के अभाव में यह धन हमारे निधन का ही कारण बनता है । ३. धन की मात्रा का संकेत ‘विश्वायुपोषस्’ शब्द दे रहा है । धन उतना ही ठीक है जोकि पोषण के लिए पर्याप्त हो, अधिक धन तो बोझमात्र है और शरीर में अनुपयुक्त भोजन की भाँति व्याधि का ही कारण बनता है । ४. धनार्जन के प्रकार का संकेत ‘मार्डीकम्’ शब्द से दिया जा रहा है, अर्थात् जो धनार्जन का प्रकार मानस अशान्ति पैदा करे वह अनुपादेय ही है । सट्टा [Speculation] आदि प्रकार सब जुआ ही हैं । ये व्याकुलता पैदा करते हैं, शान्ति नहीं । इसलिए ये त्याज्य हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - धन ज्ञान से युक्त हो । मात्रा में इतना कि पोषण के लिए पर्याप्त हो । उस प्रकार से कमाया जाए जिससे यह अशान्ति का कारण न बने ।
विषय
राजा, विद्वान्, परमेश्वर से प्रार्थना ।
भावार्थ
हे ( अग्ने ) ज्ञानवन् विद्वन् ! हे प्रभो ! तू ( नः ) हमें (जीवसे) दीर्घजीवन को प्राप्त करने के लिए ( सुचेतुना ) उत्तम ज्ञान विज्ञान के साथ २ ( विश्वायुपोषसम् ) समस्त प्राणियों के जीवनों और आयु की वृद्धि और पुष्टि करनेवाले ( मार्डीकम् ) सुखों के देनेवाले ( रयिम् आ धेहि ) ऐश्वर्य का प्रदान कर ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
गौतमो राहूगण ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः-१ विराट् त्रिष्टुप् । २, ३ निचृत् त्रिष्टुप् । ४ आर्ष्युष्णिक् । ५, ६ निचृदार्ष्युष्णिक् । ७, ८, १०, ११ निचद्गायत्री । ९, १२ गायत्री ॥ द्वादशर्चं सूक्तम् ॥
विषय
विषय (भाषा)- फिर वह परमेश्वर कैसा है, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥
सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः
सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे अग्ने ! त्वं नःअस्मभ्यम् जीवसे सुचेतुना विश्वायुपोषसं मार्डीकं रयिम् आ धेहि ॥९॥
पदार्थ
पदार्थः- हे (अग्ने) विज्ञानसुखद=विशेष ज्ञान से सुख प्रदान करनेवाले ! (त्वम्)=तुम, (नः) अस्मभ्यम्=हम, (जीवसे) जीवितुम्=जीने के लिये, (सुचेतुना) सुष्ठु विज्ञानेन सह वर्त्तमानम्= विशेष उत्तम ज्ञान से उपस्थित, (विश्वायुपोषसम्) अखिलायुपुष्टिकारकम्=समस्त जीवन को पुष्ट करनेवाले, (मार्डीकम्) मृडीकानां सुखानामिमं साधकम्= सुखों के साधक इस, (रयिम्) धनसमूहम्= धन के समूह को, (आ) समन्तात् =अच्छे प्रकार से, (धेहि)= प्रदान कीजिये ॥९॥
महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद
महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के द्वारा अच्छी प्रकार अनुसरण किया हुआ विद्वान्, उत्तम रूप से शिक्षित करके पूर्ण जीवन को बिताने के लिये विद्या और धन को देता है ॥९॥
पदार्थान्वयः(म.द.स.)
पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (अग्ने) विशेष ज्ञान से सुख प्रदान करनेवाले परमेश्वर ! (त्वम्) तुम, (नः) हमारे (जीवसे) जीने के लिये, (सुचेतुना) विशेष उत्तम ज्ञान से उपस्थित, (विश्वायुपोषसम्) समस्त जीवन को पुष्ट करनेवाले, (मार्डीकम्) सुखों के साधक इस (रयिम्) धन के समूह को (आ) अच्छे प्रकार से (धेहि) प्रदान कीजिये ॥९॥
संस्कृत भाग
आ । नः॒ । अ॒ग्ने॒ । सु॒ऽचे॒तुना॑ । र॒यिम् । वि॒श्वायु॑ऽपोषसम् । मा॒र्डी॒कम् । धे॒हि॒ । जी॒वसे॑ ॥ विषयः- पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- मनुष्यैः संसेवितो विद्वान् सुशिक्षां कृत्वा पूर्णायुप्रापके विद्याधने ददाति ॥९॥
मराठी (1)
भावार्थ
माणसांनी हे जाणावे की सन्मानित विद्वान सुशिक्षित करून पूर्ण आयुष्य भोगण्यासाठी विद्यारूपी धन देतो. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Agni, lord of life, light and wealth, bring us and bless us with wealth along with knowledge, science and technology that may provide nourishment and health for all, soothing and joyful for happy living.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is Agni is taught further in the ninth Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O leader, giver of knowledge and happiness, give for our sustenance, heart-delighting wealth, the producer of happiness and supporter of all people. Kindly give us such wealth with good knowledge or sound understanding.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(सुचेतुना) सुष्ठुविज्ञानेन सह वर्तमानाम् । = Endowed with good knowledge. (मार्डीकम् ) मृडीकानां सुखानाम् इसं साधकम् ।। = Accomplisher of happiness. (मृड - सुखने )
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
When a learned person is well served by men, he gives them good education enabling them to acquire that knowledge and wealth which lead to full span of life.
Subject of the mantra
Then, how is that God? This subject has been preached in this mantra.
Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-
He=O! (agne) =God provider of happiness through special knowledge, (tvam) =you, (naḥ) =for us, (jīvase) =living bengs, (sucetunā) present with special excellent knowledge, (viśvāyupoṣasam)= who nourishes whole life, (mārḍīkam)= who are performers of happiness, (rayim)=to group of wealth, (ā)= in a good way, (dhehi) =provide.
English Translation (K.K.V.)
O God provider of happiness through special knowledge! You, who are present with us living beings with special excellent knowledge, who nourishes whole life, who are performers of happiness, provide this group of wealth in a good way.
TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand
The scholar, well followed by men, bestows upon them knowledge and wealth to lead a perfect life.
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