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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 14 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 14/ मन्त्र 12
    ऋषिः - यमः देवता - श्वानौ छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒रू॒ण॒साव॑सु॒तृपा॑ उदुम्ब॒लौ य॒मस्य॑ दू॒तौ च॑रतो॒ जनाँ॒ अनु॑ । ताव॒स्मभ्यं॑ दृ॒शये॒ सूर्या॑य॒ पुन॑र्दाता॒मसु॑म॒द्येह भ॒द्रम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒रु॒ऽन॒सौ । अ॒सु॒ऽतृपौ॑ । उ॒दु॒म्ब॒लौ । य॒मस्य॑ । दू॒तौ । च॒र॒तः॒ । जना॑न् । अनु॑ । तौ । अ॒स्मभ्य॑म् । दृ॒शये॑ । सूर्या॑य । पुनः॑ । दा॒ता॒म् । असु॑म् । अ॒द्य । इ॒ह । भ॒द्रम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उरूणसावसुतृपा उदुम्बलौ यमस्य दूतौ चरतो जनाँ अनु । तावस्मभ्यं दृशये सूर्याय पुनर्दातामसुमद्येह भद्रम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उरुऽनसौ । असुऽतृपौ । उदुम्बलौ । यमस्य । दूतौ । चरतः । जनान् । अनु । तौ । अस्मभ्यम् । दृशये । सूर्याय । पुनः । दाताम् । असुम् । अद्य । इह । भद्रम् ॥ १०.१४.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 14; मन्त्र » 12
    अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 16; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (यमस्य दूतौ-उरूणसौ-असुतृपौ-उदुम्बलौ जनान्-अनु चरतः) वे दिन और रात काल के दूत बने हुए बड़े कुटिल कठोर स्वभाव के, प्राणों से तृप्त होनेवाले महाबली (यह आलङ्कारिक कथन है) उत्पन्न हुए सभी जीवों में साथ-साथ चलते हैं (इह-अस्मम्यं भद्रम्-असु पुनः-दाताम्) वे दिन और रात बारम्बार सूर्यदर्शन के लिये आज इस लोक में हमारे लिये सुखदायक जीवनधारण करने को दूसरा जन्म फिर देवें ॥१२॥

    भावार्थ

    दिन और रात आयुरूप जीवनकाल के दूत बन कर बारम्बार सूर्यदर्शन कराते हुए जीव को अन्तिम काल तक ले जाते हैं एवं पुनर्जन्म भी धारण कराते हैं ॥१२॥

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    विषय

    भद्र असु' = उत्तम जीवन

    पदार्थ

    [१] गत मन्त्रों में वर्णित काम-क्रोध (उरूणसौ) = बड़ी नाक वाले हैं। सेवन से ये बढ़ते ही जाते हैं। (अ-सु-तृपौ) = ये कभी अच्छी तरह तृप्त हो जाएँ, सो बात नहीं है। 'भूय एवाभिवर्धते’=ये तो उत्तरोत्तर बढ़ते ही चलते हैं। (उदुम्बलौ) [उद् बलौ] = अत्यन्त प्रबल हैं। इनको जीतना सुगम नहीं है। और अपराजित हुए हुए ये (यमस्य दूतौ) = यम के दूत हैं, हमें मृत्यु के समीप ले जाते हैं। ये दोनों दूत (जना अनु चरतः) = सदा मनुष्यों के पीछे चलते हैं । अर्थात् ये हमारे अन्दर स्वाभाविक रूप से रखे हुए हैं । [२] अब यदि ये प्रबल हो जाएँ तो ये हमें समाप्त कर देते हैं, और यदि हम प्रबल बनकर इनको अपने वश में रखें तो ये हमारे सेवक होते हैं और हमारा कल्याण करनेवाले बन जाते हैं। प्रबल जीवित रूप में ये हमें सोने की [gold] तरह समाप्त करनेवाले होते हैं। तथा भस्मीभूत हुए हुए ये स्वर्णभस्म की तरह हमारे जीवन का कारण बनते हैं । सो हम इन्हें ज्ञानचक्षु से भस्मीभूत करनेवाले हों जिससे (तौ) = ये काम व क्रोध (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (पुनः) = फिर (अद्य) = आज (इह) = यहाँ (भद्रं असुम्) = शुभ जीवन को (दाताम्) = प्राप्त कराएँ और हम (दृशये सूर्याय) = दीर्घकाल तक सूर्य दर्शन करनेवाले व दीर्घजीवी हो सकें। गत मन्त्र के अनुसार स्वस्ति व अनमीव को प्राप्त करके पूर्ण शतवर्ष के जीवन वाले हों ।

    भावार्थ

    भावार्थ- काम-क्रोध अत्यन्त प्रबल हैं, परन्तु हमारे लिये तो ये वशीभूत हुए हुए भद्र जीवन को दें जिससे हम दीर्घकाल तक सूर्य दर्शन करनेवाले बनें।

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    विषय

    यम नाम राजा के दो प्रकार के सैन्यों का वर्णन। अध्यात्म में प्राण और अपान के बल से दीर्घ जीवन का उपदेश।

    भावार्थ

    (यमस्य दूतौ) सर्वनियन्ता राजा के (दूतौ) प्रतिनिधियों के समान, दोनों प्रकार के राजपुरुष (पोलिस) (उरु-णसौ) ऊंची नाक वाले, बलवान् वा तीक्ष्ण शक्ति वाले, (असु-तृपा) प्राण रक्षा योग्य द्रव्य मात्र से तृप्त होने वाले, भृति से संतुष्ट, (उदुम्बलौ) अति बलशाली जन (जनान् अनु चरतः) प्रजाजनों को देखते हुए विचरते हैं। (तौ) वे दोनों (अस्मभ्यम्) हमारे लिये और (सूर्याय दृशये) सूर्यवत् तेजस्वी द्रष्टा अध्यक्ष के लिये (इह अद्य) इस देश और काल में (भद्रम् असुम् पुनः दाताम्) कल्याणकारक बल और जीवन बार २ देवें। इसी प्रकार नासिकागत, प्राणतर्पक बली दोनों प्राण अपान और दिन रात्रि परमेश्वर के दिये प्रत्येक जन्तु को प्राप्त हैं। वे हमें नित्य सूर्य का दर्शन करावें, सुख दें, तथा दीर्घजीवी करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    यम ऋषिः॥ देवताः–१–५, १३–१६ यमः। ६ लिंगोक्ताः। ७-९ लिंगोक्ताः पितरो वा। १०-१२ श्वानौ॥ छन्द:- १, १२ भुरिक् त्रिष्टुप्। २, ३, ७, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। ४, ६ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ८ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। १० त्रिष्टुप्। १३, १४ निचृदनुष्टुप्। १६ अनुष्टुप्। १५ विराड् बृहती॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (यमस्य दूतौ उरूणसौ-असुतृपौ-उदुम्बलौ जनान्-अनु चरतः) यमस्य दूतौ महाकुटिलौ [णस कौटिल्ये भ्वादि०] ततोऽच् असुतृपौ-प्राणैस्तृप्यन्तौ, इत्यालङ्कारिकत्वम्, उरुबलौ महाबलौ जनान्-जायमानानुत्पद्यमानाननु चरतो गतिं कुरुतः (तौ सूर्याय दृशये-अद्य-इह-अस्मभ्यं भद्रम्-असुं पुनः-दाताम्) तावहोरात्रौ सूर्याय दृशये पुनः पुनः सूर्यं दर्शयितुमद्येहास्मिन् लोकेऽस्मभ्यं सुखकरं प्राणं परजन्म धारयितुं पुनर्दत्तः ॥१२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Those two night and day are the most perceptive, abundant and alert, mighty strong and relentless watch dogs of time immediately close ahead and on the heels of people. Let them now again give us happiness and well being full of bubbling energy so that we may see the light of the sun anew, giver of life and enlightenment.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    दिवस व रात्र आयूरूप जीवनकाळाचे दूत बनून वारंवार सूर्यदर्शन करवीत जीवाला अंतिम काळापर्यंत घेऊन जातात व पुनर्जन्म ही धारण करवितात. ॥१२॥

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