ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 14/ मन्त्र 13
य॒माय॒ सोमं॑ सुनुत य॒माय॑ जुहुता ह॒विः । य॒मं ह॑ य॒ज्ञो ग॑च्छत्य॒ग्निदू॑तो॒ अरं॑कृतः ॥
स्वर सहित पद पाठय॒माय॑ । सोम॑म् । सु॒नु॒त॒ । य॒माय॑ । जु॒हु॒त॒ । ह॒विः । य॒मम् । ह॒ । य॒ज्ञः । ग॒च्छ॒ति॒ । अ॒ग्निऽदू॑तः । अर॑म्ऽकृतः ॥
स्वर रहित मन्त्र
यमाय सोमं सुनुत यमाय जुहुता हविः । यमं ह यज्ञो गच्छत्यग्निदूतो अरंकृतः ॥
स्वर रहित पद पाठयमाय । सोमम् । सुनुत । यमाय । जुहुत । हविः । यमम् । ह । यज्ञः । गच्छति । अग्निऽदूतः । अरम्ऽकृतः ॥ १०.१४.१३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 14; मन्त्र » 13
अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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अष्टक » 7; अध्याय » 6; वर्ग » 16; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(यमाय सोमं सुनुत) समय को अनुकूल बनाने के लिये ओषधिरस निकालना चाहिए, पुनः (यमाय हविः-जुहुत) उस ओषधिरस की हवि-आहुति अग्नि में होम करो (अग्निदूतः-अरङ्कृतः यज्ञः-यमं ह गच्छति) अग्निदूत के द्वारा यह सम्पादित यज्ञ काल को प्राप्त हो जाता है ॥१३॥
भावार्थ
आयुर्वैदिक ढंग से ओषधिरस का होम जीवन को चिरकालीन बनाने का हेतु है ॥१३॥
विषय
यम की प्राप्ति
पदार्थ
[१] (यमाय) = उस सर्वनियन्ता प्रभु की प्राप्ति के लिये (सोमं सुनुत) = सोम का अपने में उत्पादन करो। प्रभु 'यम' हैं, मनुष्य भी 'यम'-संयमी बनकर ही उस प्रभु का सच्चा उपासक बन पाता है। यह संयमी पुरुष सोम का सम्पादन करनेवाला होता है । [२] (यमाय) = उस प्रभु की प्राप्ति के लिये (हविः जुहुता) = हवि के देनेवाले बनो । 'कस्मै देवाय हविषा विधेम ' -उस सुखस्वरूप देव का हवि के द्वारा ही तो हम पूजन करते हैं, यज्ञशेष का सेवन ही हवि का स्वीकार करना है। हम सदा पाँचों यज्ञों को करके यज्ञशेष को ग्रहण करें। [३] (यमम्) = उस सर्वनियन्ता प्रभु को (ह) = निश्चय से (यज्ञः) = ' देवपूजा-संगतिकरण व दान' इन धर्मों का पालन करनेवाला ही (गच्छति) = प्राप्त होता है । वह उस यम को प्राप्त होता है जो कि (अग्निदूतः) = उस अग्नि नामक प्रभु का दूत बनता है, संदेशवाहक बनता है। प्रभु से दिये गये ज्ञान को जो सर्वत्र प्रचारित करनेवाला होता है। और (अरंकृत:) = अपने जीवन को सद्गुणों से अलंकृत करता है, अपने जीवन को सद्गुणों से अलंकृत किये बिना वह औरों में ज्ञान का प्रचार कर भी तो नहीं सकता।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु प्राप्ति के लिये आवश्यक है कि - [क] हम सोम का सम्पादन करें, [ख] ज्ञान का प्रसार करनेवाले बनें, [ग] अपने जीवन को सद्गुणों से मण्डित करें।
विषय
राजा का आदर।
भावार्थ
(यमाय) यम नियम की व्यवस्था करने वाले राजा के लिये (सोमं) आदरार्थ ओषधि, अन्न, ऐश्वर्य (सुनुत) उत्पन्न करो, और (यमाय) उस नियन्ता के उपकारार्थ ही (हविः जुहुत) यज्ञाग्नि में आहुतियोग्य द्रव्य दो, और अन्न प्रदान करो। (यज्ञः) यज्ञ और सत्संगादि भी (अग्नि-दूतः) अग्निवत् तेजस्वी दूतों वाला और (अरंकृतः) सुशोभित होकर (यमं ह गच्छति) उस नियन्ता को ही शरणार्थ प्राप्त होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
यम ऋषिः॥ देवताः–१–५, १३–१६ यमः। ६ लिंगोक्ताः। ७-९ लिंगोक्ताः पितरो वा। १०-१२ श्वानौ॥ छन्द:- १, १२ भुरिक् त्रिष्टुप्। २, ३, ७, ११ निचृत् त्रिष्टुप्। ४, ६ विराट् त्रिष्टुप्। ५, ९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ८ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। १० त्रिष्टुप्। १३, १४ निचृदनुष्टुप्। १६ अनुष्टुप्। १५ विराड् बृहती॥ षोडशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(यमाय सोमं सुनुत) आयुरूपाय जीवनकालाय विश्वकालाय च तत्सौष्ठ्यसम्पादनायेत्यर्थः, सोममोषधिरसं निःसारयत (यमाय हविः-जुहुत) यमाय पूर्वोक्ताय हविः होत्रं कुरुत (अग्निदूतः-अरङ्कृतः-यमः-यमं ह गच्छति) अग्निर्दूतो यस्य स एवमलङ्कृतः सम्यक् कृतो यज्ञः कालं गच्छति ॥१३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Prepare the soma for Yama, lord of the light and life of cosmic order, offer the homage of soma oblations to Yama, the holy soma-yajna goes to Yama, with all its beauty and power conducted by the holy fire, divine messenger between the devoted yajakas and the sun.
मराठी (1)
भावार्थ
आयुर्वेदिक पद्धतीने औषधी रसाचा होम जीवनाला दीर्घायू बनविण्याचा हेतू आहे. ॥१३॥
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