ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 37/ मन्त्र 4
येन॑ सूर्य॒ ज्योति॑षा॒ बाध॑से॒ तमो॒ जग॑च्च॒ विश्व॑मुदि॒यर्षि॑ भा॒नुना॑ । तेना॒स्मद्विश्वा॒मनि॑रा॒मना॑हुति॒मपामी॑वा॒मप॑ दु॒ष्ष्वप्न्यं॑ सुव ॥
स्वर सहित पद पाठयेन॑ । सू॒र्य॒ । ज्योति॑षा । बाध॑से । तमः॑ । जग॑त् । च॒ । विश्व॑म् । उ॒त्ऽइ॒यर्षि॑ । भा॒नुना॑ । तेन॑ । अ॒स्मत् । विश्वा॑म् । अनि॑राम् । अना॑हुतिम् । अप॑ । अमी॑वाम् । अप॑ । दुः॒ऽस्वप्न्य॑म् । सु॒व॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
येन सूर्य ज्योतिषा बाधसे तमो जगच्च विश्वमुदियर्षि भानुना । तेनास्मद्विश्वामनिरामनाहुतिमपामीवामप दुष्ष्वप्न्यं सुव ॥
स्वर रहित पद पाठयेन । सूर्य । ज्योतिषा । बाधसे । तमः । जगत् । च । विश्वम् । उत्ऽइयर्षि । भानुना । तेन । अस्मत् । विश्वाम् । अनिराम् । अनाहुतिम् । अप । अमीवाम् । अप । दुःऽस्वप्न्यम् । सुव ॥ १०.३७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 37; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सूर्य) हे जगत्प्रकाशक परमात्मन् ! या सूर्य ! (येन ज्योतिषा) जिस ज्ञानप्रकाश से या रश्मिप्रकाश से (तमः-बाधसे) अज्ञान को या अन्धकार को हटाता है (भानुना) प्रभाव से या प्रकाश से (विश्वं जगत्) सारे जगत् को (उत्-इयर्षि) उभारता है-गतिमय करता है, (तेन) उससे (अस्मत्) हमसे (विश्वाम्-अनिराम्) सब अन्नरहितता-दरिद्रता को तथा (अनाहुतिम्) आहुतिप्रदान के अभावरूप घृत दूध आदि की रहितता को उसके निमित्तभूत गौ आदि पशुओं की रहितता को (अमीवाम्) रोगप्रवृत्ति को (दुःस्वप्न्यम्) निद्रादोष से प्राप्त दुर्भावना को (अप सुव) दूर कर ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा अपने ज्ञानप्रकाश से अज्ञानान्धकार को हटाता है और समस्त जगत् को उद्भूत करता है-प्रसिद्ध करता है तथा दुर्भिक्षता और बुरे स्वप्नों को हटाता है तथा सूर्य अपनी रश्मि द्वारा अन्धकार को भगाता है, जगत् को चमकाता है। अन्नादि भोग्य पदार्थों के अभाव और निद्रादोष को दूर करता है ॥४॥
विषय
सूर्य प्रकाश के चार लाभ
पदार्थ
[१] (सूर्य) = हे सूर्य ! (येन ज्योतिषा) = जिस ज्योति से (तमः बाधसे) = आप अन्धकार का विनाश करते हो, (च) = और (विश्वं जगत्) = इस सम्पूर्ण जगत् को (भानुना) = प्रकाश से (उदियर्षि) = उत्कृष्टता से प्राप्त होते हो (तेन) = उस प्रकाश के द्वारा (विश्वाम्) = सब (अनिराम्) = अन्न के अभाव को तथा परिणामतः (अनाहुतिम्) = यज्ञों के अभाव को, (अमीवाम्) = रोगों को तथा (दुःष्ष्वप्न्यम्) = बुरे स्वप्नों के कारणभूत रोगमात्र को (अपसुव) = आप हमारे से दूर करिये। [२] सूर्य वर्षा के द्वारा अन्नोत्पत्ति का कारण बनता है। सूर्य की किरणों में पत्तों का क्लोरफिल कार्वन डायोक्साईड को फाड़कर कार्वन को अपने में रख लेता है और ऑक्सीजन को वायुमण्डल में भेज देता है। इस प्रकार सूर्य वृक्षों को भोजन प्राप्ति में सहायक होता है । अन्न की खूब उत्पत्ति होने पर यज्ञ भी उत्तमता से चलते हैं । [३] यह सूर्य रोगकृमियों की नाशक शक्ति के कारण हमारी नीरोगता को सिद्ध करता है । यह किरणों के द्वारा हमारे शरीरों में स्वर्ण के इंजक्शन्स करता है, इसी से यह 'हिरण्ययाणि' कहलाता है। हमें नीरोग बनाकर यह अशुभ स्वप्नों को भी दूर करता है । अस्वस्थ मनुष्य को ही अशुभ स्वप्न आते रहते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ- सूर्य अपनी ज्योति से अन्नाभाव, यज्ञाभाव, रोग व अशुभ स्वप्नों को दूर करता है।
विषय
प्रभु के ज्ञान-ज्योति से कष्टों के नाश की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (सूर्य) सूर्यवत् तेजस्विन् ! सर्वप्रेरक ! सर्वोत्पादक प्रभो ! तू (येन ज्योतिषा तमः बाधसे) जिस तेज से अन्धकार को दूर करता है और (येन भानुना) जिस तेजः-प्रकाश से (विश्वम् जगत् उत् इयर्षि) समस्त जगत् को उत्पन्न करता है, (तेन) उस तेज से तू (अस्मत्) हमसे (विश्वाम्) समस्त (अनिराम) अन्न जल के अभाव, (अनाहुतिम्) यज्ञादि के अभाव, (अमीवाम्) रोग व्याधि, (दुःस्वपन्यं) दुःस्वप्न आदि के कारण को (अप सुव) दूर कर। पक्षान्तर में सूर्य का तेज अन्धकार को नाश करता, जगत् के प्राणियों को जगाता, जल, अन्न को प्रदान करता है, रोग और दुःस्वप्न आदि दोषों को दूर करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अभितपाः सौर्य ऋषिः॥ छन्दः-१-५ निचृज्जगती। ६-९ विराड् जगती। ११, १२ जगती। १० निचृत् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सूर्य) हे जगत्प्रकाशक परमात्मन् ! सूर्य ! वा (येन ज्योतिषा) येन ज्ञानप्रकाशेन यद्वा येन रश्मिप्रकाशेन (तमः-बाधसे) अज्ञानं यद्वान्धकारमपगमयसि (भानुना) प्रभावेण भासनेन वा (विश्वं जगत्-उत्-इयर्षि) सर्वं जगत्प्रेरयसि गतिमयं करोषि (तेन) तेन प्रभावेण भासनेन वा (अस्मत्) अस्मत्तः (विश्वाम्-अनिराम्) सर्वामन्नाभावरूपां दरिद्रताम् (अनाहुतिम्) आहुतिप्रदानाभावरूपां घृतदुग्धरहिततां तन्निमित्तभूतां गवादिपशुरहितताम् (अमीवाम्) रोगप्रवृत्तिम् (दुःस्वप्न्यम्) निद्रादोषात् प्राप्तां दुर्भावनाम् (अपसुव) दूरीकुरु ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O sun, by the light by which you dispel the darkness, and by the rise by which you go up and light up the moving world in the day, by that very light and enlightenment, pray, dispel and throw out all famine of food in the world,, all poverty of yajnic programmes, all sickness and disease, and all depression and evil dreams bom of want and poverty of light.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा आपल्या ज्ञानप्रकाशाने अज्ञानांधकार दूर करतो व संपूर्ण जग उद्भुत करतो, प्रकट करतो. दुर्भिक्षता व वाईट स्वप्ने हटवितो. आपल्या रश्मीद्वारे अंधकार नष्ट करतो. जगाला प्रकाशमान करतो. अन्न इत्यादी भोग्य पदार्थांचा अभाव नाहीसा करतो. तसेच निद्रा दोषही दूर करतो. ॥४॥
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