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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 37 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 37/ मन्त्र 5
    ऋषिः - अभितपाः सौर्यः देवता - सूर्यः छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    विश्व॑स्य॒ हि प्रेषि॑तो॒ रक्ष॑सि व्र॒तमहे॑ळयन्नु॒च्चर॑सि स्व॒धा अनु॑ । यद॒द्य त्वा॑ सूर्योप॒ब्रवा॑महै॒ तं नो॑ दे॒वा अनु॑ मंसीरत॒ क्रतु॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    विश्व॑स्य । हि । प्रऽइ॑षितः । रक्ष॑सि । व्र॒तम् । अहे॑ळयन् । उ॒त्ऽचर॑सि । स्व॒धाः । अनु॑ । यत् । अ॒द्य । त्वा॒ । सू॒र्य॒ । उ॒प॒ऽब्रवा॑महै । तत् । नः॒ । दे॒वाः । अनु॑ । मं॒सी॒र॒त॒ । क्रतु॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    विश्वस्य हि प्रेषितो रक्षसि व्रतमहेळयन्नुच्चरसि स्वधा अनु । यदद्य त्वा सूर्योपब्रवामहै तं नो देवा अनु मंसीरत क्रतुम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    विश्वस्य । हि । प्रऽइषितः । रक्षसि । व्रतम् । अहेळयन् । उत्ऽचरसि । स्वधाः । अनु । यत् । अद्य । त्वा । सूर्य । उपऽब्रवामहै । तत् । नः । देवाः । अनु । मंसीरत । क्रतुम् ॥ १०.३७.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 37; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 12; मन्त्र » 5
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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (सूर्य) हे जगत्प्रकाशक परमात्मन् ! (प्रेषितः) तू प्रार्थना द्वारा प्रेरित हुआ (विश्वस्य हि व्रतं रक्षसि) सब प्रत्येक मनुष्य के निष्पक्ष संकल्प-अभीष्ट को रखता है देने के लिये (स्वधाः-अनु) सर्वधारणाओं-स्वरूपशक्तियों के अनुसार (अहेळयन्-उच्चरसि) न क्रोध करते हुए, प्रिय बनाते हुए को उन्नत करता है (यत्-अद्य त्वा-उप ब्रवामहै) जब इस जीवन में प्रतिदिन तुझे चाहते हैं (नः क्रतुम्-अनु देवाः मंसीरत) हमारे उस संकल्प का विद्वान् जन अनुमोदन करते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    प्रार्थना द्वारा प्रेरित हुआ परमात्मा शुभ कर्मकर्त्ता मनुष्य के शुभ संकल्प को पूरा करता है। ऐसे मनुष्य के शुभ संकल्प का विद्वान् जन अनुमोदन किया करते हैं।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सूर्य) हे जगत्प्रकाशक परमात्मन् ! (प्रेषितः) प्रार्थनया प्रेरितस्त्वम् (विश्वस्य हि व्रतं रक्षसि) सर्वस्य जनस्य निष्पक्षं व्रतं सङ्कल्पितमभीष्टं रक्षसि तद्दानायेति (स्वधाः-अनु-अहेळयन्-उत्-चरसि) स्वधारणाः स्वरूपशक्तीरनुसृत्य अक्रुध्यन्-प्रियं कुर्वन्नुन्नयसि (यत्-अद्य त्वा उप ब्रवामहे) यदास्मिन् जीवने प्रत्यहं त्वां प्रार्थयामहे-याचामहे (नः क्रतुम् अनु देवाः-मंसीरत) अस्माकं तं सङ्कल्पं देवा विद्वांसोऽनुमोदन्ते ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O lord of light, moved and inspired by your own divine self and invoked by prayers of the supplicants, you protect and mle the laws and disciplines of the world around, and without passion or disturbance you rise and move according to your own powers and in response to your celebrants’ homage (such as the homage of the planets and yajnic offers of devotees). O sun, whatever we pray for, may the divinities of nature and humanity favour and respond to our yajnic action and prayer.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्रार्थनेद्वारे प्रेरित झालेला परमात्मा शुभ कर्मकर्त्या माणसाचे शुभ संकल्प पूर्ण करतो. अशा माणसाच्या शुभ संकल्पाला विद्वान लोक अनुमोदन देतात. ॥५॥

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