ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 37/ मन्त्र 8
महि॒ ज्योति॒र्बिभ्र॑तं त्वा विचक्षण॒ भास्व॑न्तं॒ चक्षु॑षेचक्षुषे॒ मय॑: । आ॒रोह॑न्तं बृह॒तः पाज॑स॒स्परि॑ व॒यं जी॒वाः प्रति॑ पश्येम सूर्य ॥
स्वर सहित पद पाठमहि॑ । ज्योतिः॑ । बिभ्र॑तम् । त्वा॒ । वि॒ऽच॒क्ष॒ण॒ । भास्व॑न्तम् । चक्षु॑षेऽचक्षुषे । मयः॑ । आ॒ऽरोह॑न्तम् । बृ॒ह॒तः । पाज॑सः । परि॑ । व॒यम् । जी॒वाः । प्रति॑ । प॒श्ये॒म॒ । सू॒र्य॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
महि ज्योतिर्बिभ्रतं त्वा विचक्षण भास्वन्तं चक्षुषेचक्षुषे मय: । आरोहन्तं बृहतः पाजसस्परि वयं जीवाः प्रति पश्येम सूर्य ॥
स्वर रहित पद पाठमहि । ज्योतिः । बिभ्रतम् । त्वा । विऽचक्षण । भास्वन्तम् । चक्षुषेऽचक्षुषे । मयः । आऽरोहन्तम् । बृहतः । पाजसः । परि । वयम् । जीवाः । प्रति । पश्येम । सूर्य ॥ १०.३७.८
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 37; मन्त्र » 8
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सूर्य) हे ज्ञानप्रकाशक परमात्मन् ! या सूर्य ! (त्वा) तुझ (महि ज्योतिः बिभ्रतम्) महान् ज्योति धारण करते हुए को (भास्वन्तम्) प्रकाशवाले (चक्षुषे चक्षुषे मयः) प्रति नेत्रवाले प्राणिमात्र के लिए, सुखरूप-सुखप्रद को (बृहतः पाजसः-परि-आरोहन्तम्) महान् विस्तृत पालनीय संसार के ऊपर अधिष्ठित हुए को (वयं जीवाः) हम जीते हुए (प्रति पश्येम) साक्षात् करें-प्रत्यक्ष देखें ॥८॥
भावार्थ
महान् ज्योति को धारण किये परमात्मा या सूर्य का आश्रय लेने से प्रत्येक नेत्रवान् प्राणी को दर्शनशक्ति और जीवनशक्ति मिलती है ॥८॥
विषय
बुद्धि, मन व आँखें
पदार्थ
[१] हे (विचक्षण) = सबका विशेषरूप से ध्यान करनेवाले (सूर्य) = सवितः ! (वयं जीवाः) = हम जीवनधारी प्राणी (बृहतः पाजसः परि) = वृद्धि की कारणभूत शक्ति का लक्ष्य करके (आरोहन्तम्) = आकाश में आरोहण करते हुए (त्वा) = तुझे (प्रतिपश्येम) = प्रतिदिन देखनेवाले हों । उदय होता हुआ सूर्य रोग- कृमियों को नष्ट करता है और इस प्रकार हमें नीरोग बनाकर यह हमारी शक्ति का वर्धन करता है । यह 'हिरण्पाणि' है, इसकी किरणरूप हाथों में स्वर्ण होता है, यह उस स्वर्ण को हमारे शरीरों में निक्षिप्त करके हमें शक्ति सम्पन्न करता है । [२] हे सूर्य ! उस तुझको हम देखें जो (माहि ज्योतिः बिभ्रतम्) = महनीय ज्योति को धारण कर रहा है। (भास्वन्तम्) = दीप्तिवाला है । (चक्षुषेचक्षुषे मयः) = आँख मात्र के लिये हितकर है, दृष्टि शक्ति को बढ़ानेवाला है। इस सूर्य की किरणों को अपने शरीरों पर लेते हुए हम भी अपनी बुद्धि में महनीय ज्योति को धारण करते हैं, हमारे हृदय प्रकाशमय हो उठते हैं और हमारी आँखें नीरोग होकर तीव्र दृष्टि शक्तिवाली बनती हैं।
भावार्थ
भावार्थ - सूर्य 'बुद्धि, मन व शरीर' सभी को स्वस्थ करनेवाला है। बुद्धि को ज्योति देता है, हृदय को प्रकाश तथा आँखों को नीरोगता ।
विषय
प्रभु के चिरकालिक साक्षात् की याचना।
भावार्थ
हे (विचक्षण) विविध प्रकारों से जगत् के देखने हारे ! (चक्षुषे-चक्षुषे) प्रत्येक आंख के लिये (मयः) सुख और (महि ज्योतिः बिभ्रतम्) बड़े भारी तेज को धारण करते हुए (भास्वन्तं) अति प्रकाश से चमकते हुए और, (बृहतः पाजसः परि) बड़े भारी समुद्र के ऊपर उदय होते सूर्यवत् (बृहतः पाजसः परि) बड़े भारी बल से चलने वाले विश्व के संचालक काल के ऊपर (आरोहन्तं) चढ़े हुए, उसके भी शासक तुझको हे (सूर्य) सर्वसञ्चालक प्रभो ! सूर्य ! (त्वा) तुझे हम (प्रति पश्येम) प्रत्यक्ष साक्षात् करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अभितपाः सौर्य ऋषिः॥ छन्दः-१-५ निचृज्जगती। ६-९ विराड् जगती। ११, १२ जगती। १० निचृत् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सूर्य) हे जगत्प्रकाशक परमात्मन् ! सूर्य ! वा (त्वा) त्वाम् (महि ज्योतिः-बिभ्रतम्) महज्ज्योतिर्धारयन्तम् (भास्वन्तम्) प्रकाशवन्तम् (चक्षुषे चक्षुषे मयः) प्रतिनेत्राय-प्रतिनेत्रवते जनाय यद्वा प्रतिनेत्रवते प्राणिमात्रस्य सुखरूपं सुखप्रदं त्वाम् (बृहतः पाजसः-परि आरोहन्तम्) महतो विस्तृतस्य पालनीयस्य संसारस्य “पाजः पालनात्” [निरु० ६।१२] परि-अधितिष्ठन्तम् (वयं जीवाः) वयं जीवन्तः (प्रति पश्येम) साक्षात्कुर्याम प्रत्यक्षं पश्येम वा ॥८॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O sun, lord of vision watching all, we pray that while we live a long and full life time here on earth, we may continue to see you as the divine power bearing great light of life, shining bright and blessing every living eye with light and joy, and rising high over the vast order of mighty time and the world of existence.
मराठी (1)
भावार्थ
महान ज्योती धारण केलेल्या परमात्म्यापासून किंवा सूर्याच्या आश्रयाने प्रत्येक नेत्रवान प्राण्याला दर्शनशक्ती व जीवनशक्ती मिळते. ॥८॥
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