ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 47/ मन्त्र 4
स॒नद्वा॑जं॒ विप्र॑वीरं॒ तरु॑त्रं धन॒स्पृतं॑ शूशु॒वांसं॑ सु॒दक्ष॑म् । द॒स्यु॒हनं॑ पू॒र्भिद॑मिन्द्र स॒त्यम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥
स्वर सहित पद पाठस॒नत्ऽवा॑जम् । विप्र॑ऽवीरम् । तरु॑त्रम् । ध॒न॒ऽस्पृत॑म् । शू॒शु॒ऽवांस॑म् । सु॒ऽदक्ष॑म् । द॒स्यु॒हन॑म् । पूः॒ऽभिद॑म् । इ॒न्द्र॒ । स॒त्यम् । अ॒स्मभ्य॑म् । चि॒त्रम् । वृष॑णम् । र॒यिम् । दाः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सनद्वाजं विप्रवीरं तरुत्रं धनस्पृतं शूशुवांसं सुदक्षम् । दस्युहनं पूर्भिदमिन्द्र सत्यमस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा: ॥
स्वर रहित पद पाठसनत्ऽवाजम् । विप्रऽवीरम् । तरुत्रम् । धनऽस्पृतम् । शूशुऽवांसम् । सुऽदक्षम् । दस्युहनम् । पूःऽभिदम् । इन्द्र । सत्यम् । अस्मभ्यम् । चित्रम् । वृषणम् । रयिम् । दाः ॥ १०.४७.४
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 47; मन्त्र » 4
अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(सनद्वाजम्) अमृतान्न के सम्भाजक (विप्रवीरम्) मेधावी उपासकोंवाले (तरुतारम्) संसारसागर तरानेवाले, (धनस्पृतम्) धनप्राप्त करानेवाले (शूशुवांसम्) बढ़ानेवाले या व्यापनेवाले (सुदक्षम्) श्रेष्ठ बलवाले (दस्युहनम्) दुष्टनाशक (पूर्भिदम्) पापपुरों-मन की वासना के नाशक (सत्यम्) अविनाशी तुझ परमात्मा को हम जानते हैं-मानते हैं (अस्मभ्यम्) पूर्ववत् ॥४॥
भावार्थ
परमात्मा अमृतान्न भोग का दाता, मेधावी लोगों द्वारा उपासनीय, संसारसागर से तरानेवाला, धन को प्राप्त करानेवाला, वर्धक, व्यापक, प्रशस्त बलवाला, दुष्टनाशक, मानसिक वासनाओं को दूर करनेवाला एवं अविनाशी है। वह सबके द्वारा जानने, मानने और उपासना करने योग्य है ॥४॥
विषय
शक्तिशाली व ज्ञानी
पदार्थ
[१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (रयिं दाः) = पुत्ररूप धन को दीजिये । उस पुत्र रूप धन को जो कि [क] (सनद्वाजम्) = शक्ति को प्राप्त करनेवाला है [वाज-शक्ति सन्=संभजन], [ख] (विप्रवीरम्) = विप्रों में वीर है, अत्यन्त मेधावी है, [ग] (तरुत्रम्) = विघ्नों को तैर जानेवाला है, [घ] (धनस्पृतम्) = धनों का पूरक व धनों का स्रष्टा है, [ङ] (शूशुवांसम्) = सदा वर्धमान है, अपनी शक्तियों का वर्धन करनेवाला है, [च] सुदक्षम् उत्तम दक्षतावाला है, कार्यों को कुशलता से करनेवाला है अथवा उत्तम बलवाला है, [छ] (दस्युहनम्) दस्युओं का नाश करनेवाला है, [ज] (पूर्भिदम्) = शरीररूपी नगरियों का विदारण करनेवाला है, मोक्ष के लिये प्रयत्नशील है, [झ] (सत्यम्) = सत्कर्मों में व्यापृत होनेवाला है अथवा सत्य का पालन करनेवाला है, [ञ] (चित्रम्) = ज्ञान का देनेवाला है तथा [२] (वृषणम्) = शक्तिशाली व दूसरों पर सुखों का वर्षण करनेवाला है ।
भावार्थ
भावार्थ- हमें शक्तिशाली व मेधावी पुत्र की प्राप्ति हो ।
विषय
भवतारक, महान्, सर्वदुष्ट-विघ्नादि नाशक।
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! ऐश्वर्यप्रद ! हम तुझे (सनद्-वाजं) ज्ञान-ऐश्वर्य, बल, वेग के देने वाला, (विप्रवीरं) विशेष, सर्वोत्कृष्ट बलवान्, परम मेधावी, (तरुत्रम्) भवसागर से तारने वाला, वृक्ष के समान त्राण करने वाला, (धन-स्पृतं) धन से पालने वाला, (शुशुवांसम्) सदा बढ़ने वाला, महान्, (सु-दक्षम्) उत्तम बलशाली, (दस्यु-हनम्) दुष्ट दस्युओं का नाश करने वाला, (पूः-भिदम्) शत्रु के नगरों को तोड़ने वाला, वा (पूर्भिदं) देहपुरी को तोड़कर जीव को मुक्त करने वाला, (सत्यं विद्म) सत्य ही जानते हैं। तू (अस्मभ्यम् चित्रं वृषणं रयिं दाः) हमें अद्भुत, सुखद धनैश्वर्य दे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः सप्तगुः॥ देवता–इन्द्रो वैकुण्ठः॥ छन्द:– १, ४, ७ त्रिष्टुप्। २ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् त्रिष्टुप्। ५, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(सनद्वाजम्) वाजममृतान्नं सनति सम्भजतीति सनद्वाजम्-अमृतान्नसम्भाजयितारम्, यथा भरद्वाजम्-“प्रजा वै वाजास्ता एष बिभर्ति तस्माद् भरद्वाजः” [ऐ० आ० २।२।२] (विप्रवीरम्) विप्रा उपासका मेधाविनो वीरा वीर्यं धारयमाणा यस्य तम् (तरुत्रम्) भवसागरात् तारकम् (धनस्पृतम् धनं) स्पारयति प्रापयति यस्तम् ‘अन्तर्गतो णिजर्थः’ (शूशुवांसम्) वर्धयितारम्, व्याप्नुवन्तम्, “शूशुवांसं व्याप्नुवन्तम्” [ऋ० ६।१८।२ दयानन्दः] (सुदक्षम्) श्रेष्ठबलवन्तम् (दस्युहनम्) दुष्टनाशकम् (पूर्भिदम्) पापपुरां मनोवृत्तीनां भेत्तारम् (सत्यम्) सत्यमविनाशिनम्, इन्द्र ! त्वां विद्म जानीम (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत् ॥४॥
इंग्लिश (1)
Meaning
We know you, Indra, abundant in food, energy and advancement, commanding the brave and intelligent, guiding presence over the ocean of existence, infinitely opulent, giver of strength and sure success, most powerful, destroyer of evil and negativity, breaker of mountainous obstructions, ever true and eternal. O lord omnipotent, give us wondrous wealth of life in abundance.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा अमृतान्न भोगाचा दाता, मेधावी, लोकांद्वारे उपासनीय, संसारातून तरून नेणारा, धन प्राप्त करविणारा, वर्धक, व्यापक, प्रशस्त बलवान, दुष्टनाशक, मनातून वासना दूर करणारा व अविनाशी आहे. तो सर्वांकडून जाणण्या, मानण्या व उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥४॥
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