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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 47 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 47/ मन्त्र 5
    ऋषिः - सप्तगुः देवता - इन्द्रो वैकुण्ठः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अश्वा॑वन्तं र॒थिनं॑ वी॒रव॑न्तं सह॒स्रिणं॑ श॒तिनं॒ वाज॑मिन्द्र । भ॒द्रव्रा॑तं॒ विप्र॑वीरं स्व॒र्षाम॒स्मभ्यं॑ चि॒त्रं वृष॑णं र॒यिं दा॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अश्व॑ऽवन्तम् । र॒थिन॑म् । स॒ह॒स्रिण॑म् । श॒तिन॑म् । वाज॑म् । इ॒न्द्र॒ । भ॒द्रऽव्रा॑तम् । विप्र॑ऽवीरम् । स्वः॒ऽसाम् । अ॒स्मभ्य॑म् । चि॒त्रम् । वृष॑णम् । र॒यिम् । दाः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अश्वावन्तं रथिनं वीरवन्तं सहस्रिणं शतिनं वाजमिन्द्र । भद्रव्रातं विप्रवीरं स्वर्षामस्मभ्यं चित्रं वृषणं रयिं दा: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अश्वऽवन्तम् । रथिनम् । सहस्रिणम् । शतिनम् । वाजम् । इन्द्र । भद्रऽव्रातम् । विप्रऽवीरम् । स्वःऽसाम् । अस्मभ्यम् । चित्रम् । वृषणम् । रयिम् । दाः ॥ १०.४७.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 47; मन्त्र » 5
    अष्टक » 8; अध्याय » 1; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अश्वावन्तम्) अश्व के समान व्याप्तिवाले (रथिनम्) मुमुक्षुओं के रमणयोग्य मोक्षवाले (वीरवन्तम्) अध्यात्मवीरों के स्वामी (सहस्रिणं शतिनं वाजम्) सहस्रगुणित तथा असंख्यगुणित, अमृतान्नरूप (भद्रव्रातम्) कल्याणकारी वस्तुओं के स्वामी (विप्रवीरम्) मेधावी उपासकवाले (स्वर्षाम्) सुखसम्पादक-सुखदाता परमात्मा को हम जानते हैं-मानते हैं (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत् ॥५॥

    भावार्थ

    व्याप्तिमान्-सबमें व्याप्त, मुमुक्षुओं के मोक्ष का स्वामी, अध्यात्मवीरों का स्वामी, सहस्रों और असंख्य अमृतान्न भोगों का स्वामी, कल्याणकारी वस्तु समूहों का स्वामी, मेधावी उपासकों का स्वामी परमात्मा मनुष्यों का सुखसम्भाजक जानने-मानने योग्य है, वह धन और सुखों से हमें अवश्य संपन्न करता है ॥५॥

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    विषय

    उत्तम शरीर व इन्द्रियोंवाला

    पदार्थ

    [१] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (रयिं दाः) = पुत्ररूप धन दीजिए जो पुत्र [क] (अश्वावन्तम्) = इन्द्रियरूप उत्तम अश्वोंवाला है। [ख] (रथिनम्) = जिस का शरीर रथ प्रशस्त है, [ग] (वीरवन्तम्) = जो प्रशस्त वीरतावाला है, [घ] (सहस्रिणम्) = [स- हस्] प्रसन्न मनोवृत्तिवाला अथवा smiliny face वाला है, हँसते हुए चेहरेवाला है [ ईषत् हास्य युक्त है,][ङ] (शतिनम्) = सौ वर्ष तक के जीवन को प्राप्त करनेवाला है, [च] (वाजम्) = शक्ति का पुञ्ज है। [छ] (भद्रव्रातम्) = जिसके सभी गण भद्र हैं, शरीर के पञ्चभूत, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच प्राण तथा अन्त:करण पंचक ये सभी उत्तम हैं। [ज] (विश्ववीरम्) = विप्रों में वीर है, [झ] (स्वर्षाम्) = प्रकाश का सेवन करनेवाला है अथवा सब के साथ बाँटकर खानेवाला है। [ञ] (चित्रम्) = ज्ञान का देनेवाला है और [ट] (वृषणम्) = शक्तिशाली है व सुखों का वर्षण करनेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हमारे सन्तान उत्तम शरीर व इन्द्रियोंवाले हों ।

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    विषय

    सबका स्वामी, सर्वनेता, सर्वसंचालक, स्तुत्य परमेश्वर का जगत् रूप महान् रथ।

    भावार्थ

    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! प्रभो ! स्वामिन् ! हम तुझे (अश्वावन्तं) अश्वों का स्वामी, समस्त जीवों का मालिक, (रथिनम्) रथी, महारथी, ब्रह्माण्ड रथ वा परमानन्द रस का स्वामी, (वीरवन्तं) वीरों, विद्वानों का स्वामी, (सहस्रिणं) बलवान्, हजारों जनों, धनों का स्वामी, (शतिनं) शत २ जनों, धनों, ग्रामों, नगरों का स्वामी, (वाजम्) बलवान्, (भद्र-व्रातम्) कल्याणकारी जनसमूहों का नायक, (विप्रवीरं) अति उत्कृष्ट वीर वा मेधावी (स्वर्षाम्) सब को समस्त सुखदाता करके जानते हैं, तुझको हमारी मति स्तुति प्राप्त होती है, तू (अस्मभ्यं) हमें (चित्रं वृषणं रयिं दाः) अद्भुत, संग्राह्य, सर्वसुखवर्षी ऐश्वर्य प्रदान कर। इति तृतीयो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः सप्तगुः॥ देवता–इन्द्रो वैकुण्ठः॥ छन्द:– १, ४, ७ त्रिष्टुप्। २ आर्ची स्वराट् त्रिष्टुप्। ३ भुरिक् त्रिष्टुप्। ५, ६, ८ निचृत् त्रिष्टुप्॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अश्वावन्तम्) अश्ववद्व्याप्तधर्माणम् (रथिनम्) मुमुक्षूणां रमणस्थानं मोक्षस्तद्वन्तम् (वीरवन्तम्) अध्यात्मवीराणां स्वामिनम् (सहस्रिणं शतिनं वाजम्) सहस्रगुणितं तथासंख्यगुणिवाजममृतान्नरूपम् (भद्रव्रातम्) भद्राणि कल्याणकराणि वस्तुवृन्दानि यस्य तथाभूतम् (विप्रवीरम्) विप्रा मेधाविन उपासका वीराः पुत्राः “पुत्रो वै वीरः” [श० ३।३।१।१२]  यस्य तथाभूतम् (स्वर्षाम्) सुखसम्भाजकं सुखदातारं विद्म जानीमः (अस्मभ्यम्…) पूर्ववत् ॥५॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    We know you, Indra, equipped with dynamic forces, cosmic chariot and brave powers of the world, abundant in hundredfold, thousandfold, even infinite energy, power and victory, assisted by excellent powers of natural law, served by the wise and brave sages, the lord all blissful. Pray give us abundant and wondrous wealth of the wonderful world of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    व्याप्तिवान-सर्वांत व्याप्त, मुमुक्षूंच्या मोक्षाचा स्वामी, अध्यात्मशूरांचा स्वामी, हजारो व असंख्य अमृतान्न भोगांचा स्वामी, कल्याणकारी वस्तू समूहांचा स्वामी, मेधावी उपासकांचा स्वामी परमात्मा माणसांचा सुखसंभाजक, जाणण्या- मानण्या योग्य आहे. तो धन व सुखांनी आम्हाला अवश्य संपन्न करतो. ॥५॥

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