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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 65 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 65/ मन्त्र 12
    ऋषिः - वसुकर्णो वासुक्रः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृज्जगती स्वरः - निषादः

    भु॒ज्युमंह॑सः पिपृथो॒ निर॑श्विना॒ श्यावं॑ पु॒त्रं व॑ध्रिम॒त्या अ॑जिन्वतम् । क॒म॒द्युवं॑ विम॒दायो॑हथुर्यु॒वं वि॑ष्णा॒प्वं१॒॑ विश्व॑का॒याव॑ सृजथः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    भु॒ज्युम् । अंह॑सः । पि॒पृ॒थः॒ । निः । अ॒श्वि॒ना॒ । श्याव॑म् । पु॒त्रम् । व॒ध्रि॒ऽम॒त्याः । अ॒जि॒न्व॒त॒म् । क॒म॒ऽद्युव॑म् । वि॒ऽम॒दाय । ऊ॒ह॒थुः॒ । यु॒वम् । वि॒ष्णा॒प्व॑म् । विश्व॑काय । अव॑ । सृ॒ज॒थः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    भुज्युमंहसः पिपृथो निरश्विना श्यावं पुत्रं वध्रिमत्या अजिन्वतम् । कमद्युवं विमदायोहथुर्युवं विष्णाप्वं१ विश्वकायाव सृजथः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    भुज्युम् । अंहसः । पिपृथः । निः । अश्विना । श्यावम् । पुत्रम् । वध्रिऽमत्याः । अजिन्वतम् । कमऽद्युवम् । विऽमदाय । ऊहथुः । युवम् । विष्णाप्वम् । विश्वकाय । अव । सृजथः ॥ १०.६५.१२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 65; मन्त्र » 12
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अश्विना) हे ज्योतिर्मय और रसमय शक्तिरूप पदार्थों ! अथवा सुशिक्षित स्त्री-पुरुषों ! (युवम्) तुम दोनों (भुज्युम्) भोजयिता-भोज्य पदार्थ के व्यापारी को (अंहसः-निः पिपृथः) अनिष्ट या पाप से निकालते हो-पृथक् करते हो (वध्रिमत्याः पुत्रं श्यावम्) अन्नोपज की प्रबन्धक शक्तिवाली भूमि के क्षिप्त बीज को बढ़ते हुए को (अजिन्वतम्) सींचो (कमद्युवम्) कमनीय अन्नादि के प्रकाशित करनेवाले बीजभाव को (विमदाय) विशिष्ट आनन्द के लिए (ऊहथुः) वहन करते हो-प्राप्त कराते हो (विश्वकाय विष्णाप्वम्-अवसृजथः) सब के सुखकामना करनेवाले कृषक व्यापारी के लिए कृषि में व्याप्त कर्मों को जिससे प्राप्त करता है, उस अच्छे वर्षावाले समय का सम्पादन करो ॥१२॥

    भावार्थ

    ज्योतिर्मय और रसमय शक्तियाँ-आग्नेय और सौम्य शक्तियाँ तथा योग्य स्त्री-पुरुष कृषिभूमि में बीज की वृद्धि के लिए उपयुक्त कार्य करें। कृषक को तथा व्यापारी को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे कृषि तथा व्यापार भलीभाँति फलें-फूलें। इसकी सिद्धि के लिए वृष्टियोग भी सम्पन्न करना चाहिए ॥१२॥

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    विषय

    उत्तम स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे (अश्विना) विद्वान् जितेन्द्रिय उत्तम स्त्री पुरुषो ! आप लोग (भुज्युम्) भोग करने की इच्छा वाले पुरुष को (अंहसः निः पिपृथः) पाप से परे रक्खो। और (वधिमत्याः) हिंसा की शक्ति वाली सेना के (श्यावं) वृद्धिकारक, (पुत्रं) बहुतों के रक्षक नायक पुरुष को (तिरः अजिन्वतम्) अच्छी प्रकार प्रसन्न, तृप्त रक्खो जिससे वह प्रजा का नाश न करे। (कम-द्युवम्) कान्ति एवं पुत्रादि कामना से चमकने वाली स्त्री और पुरुष को (वि-मदाय) विशेष आनन्द लाभ के लिये (ऊहथुः) परस्पर विवाहित करो। और (विष्णाप्वं) विविध विद्याओं और व्रतों में निष्णात पुरुष को (विश्वकाय) सबके उपकार के लिये (अव सृजथः) नियुक्त करो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसुकर्णो वासुक्रः॥ विश्वेदेवा देवताः॥ छन्द:– १, ४, ६, १०, १२, १३ निचृज्जगती। ३, ७, ९ विराड् जगती। ५, ८, ११ जगती। १४ त्रिष्टुप्। १५ विराट् त्रिष्टुप्॥

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    विषय

    चार कदम

    पदार्थ

    [१] मनुष्य भोग-प्रवण होने पर 'भुज्यु' कहलाता है, भुज् - भोगों को यु-अपने साथ जोड़नेवाला। प्राणसाधना करने पर यह भोगवृत्ति दूर हो जाती है और मनुष्य विषय-वासनाओं के समुद्र में डूबने से बच जाता है। हे (अश्विना) = प्राणपानो! आप (भुज्युम्) = भोग-प्रवण व्यक्ति को (अंहसः) = पापों से (नि: पिपृथः) = पार कर देते हो, पाप समुद्र में डूबने नहीं देते । [२] (वधिमत्या) = इन्द्रियों, मन व बुद्धि का बन्धन व संयम करनेवाली [वधी - रस्सी] गृहिणी के लिये आप (श्यावं पुत्रम्) = गतिशील सन्तान को (अजिन्वतम्) = देते हो। माता के संयम का पुत्रों के जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है। माता संयमवाली होती है, तो सन्तान भी संयम के द्वारा शक्ति व गतिवाली बनती है। [३] (युवम्) = आप दोनों (विमदाय) = मदशून्य विनीत व्यक्ति के लिये (कमद्युवम्) = कमनीयता व सौन्दर्य को द्योतित करनेवाली वेदवाणी को (ऊहथुः) = प्राप्त कराते हैं । वेदवाणी विमद की पत्नी बनती है और उसके जीवन को सौन्दर्य से परिपूर्ण कर देती है । [४] (विश्वकाय) = [विश्वस्य अनुकम्पकाय] सब पर अनुकम्पा करनेवाले इस विश्वक के लिये आप (विष्णाप्वम्) = व्यापक कर्म को (अवसृजथः) = उत्पन्न करते हो । स्वार्थवृत्ति से होनेवाला कर्म संकुचित होता है, स्वार्थ से जितना-जितना हम ऊपर उठते जाते हैं उतना उतना हमारे कर्म व्यापकता को लिये हुए होते हैं । यही विश्वक के लिये विष्णाप्व की प्राप्ति है। विष्णाप्व विश्वक का पुत्र है, [पुनाति त्रायते] उसके जीवन को पवित्र बनानेवाला तथा उसका त्राण करनेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - [क] प्राणसाधना से हम भोगवृत्ति से ऊपर उठते हैं, [ख] संयमी जीवन के होने पर हमारी सन्तानें उत्तम होती हैं, [ग] ये वि-मद सन्तानें वेदवाणी के द्वारा अपने जीवन को सौन्दर्य से द्योतित करती हैं और [घ] सब पर अनुकम्पावाली होकर ये व्यापक हित के कर्मों को करनेवाली बनती हैं।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अश्विना) ज्योतिर्मयरसमयौ पदार्थौ शक्तिरूपौ ! सुशिक्षितस्त्रीपुरुषौ वा (युवम्) युवां (भुज्युम्) भोजयितारं भोग्यपदार्थव्यापारिणाम् (अंहसः-निःपिपृथः) अनिष्टात् पापाद्वा निष्पारयथो निस्तारयथो वा (वध्रिमत्याः पुत्रं श्यावम्-अजिन्वतम्) अन्नोपजप्रबन्धकशक्तिमत्या भूमेः “वध्रिमत्याः-भूमेः” [ऋ० ६।६२।७ दयानन्दः] क्षिप्तं बीजं वर्धमानं सिञ्चतं (कमद्युवम्) कमनीयमन्नादिकस्य द्योतयितारं प्रकाशयितारं बीजभावं (विमदाय) विशिष्टानन्दाय (ऊहथुः) वहथः प्रापयथः (विश्वकाय विष्णाप्वम्-अवसृजथः) सर्वेषां सुखकामयित्रे कृषकाय व्यापारिणे विष्णानि कृषिव्याप्तानि कर्माण्याप्नोति येन तत्सुवर्षमवसम्पादयथः “विष्णाप्वं विष्णानि कृषिव्याप्तानि कर्माण्याप्नोति येन” [ऋ० १।११७।७ दयानन्दः]  ”युवमग्निं च वृषणावपश्च वनस्पतीँरश्विनावैरयथाम् [ऋ० १।१५७।५] ॥१२।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Ashvins, complementary powers of divine light and regeneration, you save the man of suffering and sufferance from sin and evil, refertilise the barren land and revitalise the seed to germinate, raise the genetic quality of seeds and plants for better taste and nourishment, and raise the general capacity of the seeker of knowledge to higher competence.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्योतिर्मय व रसमय शक्ती-आग्नेय व सोम्य शक्ती आणि योग्य स्त्री-पुरुष यांनी कृषी भूमीमध्ये बीजवृद्धीसाठी उपयुक्त कार्य करावे. कृषक व व्यापारी यांना प्रोत्साहित करावे. ज्यामुळे कृषी व व्यापार चांगल्या प्रकारे चालावा. त्याच्या सिद्धीसाठी वृष्टियोगही संपन्न केला पाहिजे. ॥१२॥

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