ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 70/ मन्त्र 2
ऋषिः - सुमित्रो वाध्र्यश्चः
देवता - आप्रियः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
आ दे॒वाना॑मग्र॒यावे॒ह या॑तु॒ नरा॒शंसो॑ वि॒श्वरू॑पेभि॒रश्वै॑: । ऋ॒तस्य॑ प॒था नम॑सा मि॒येधो॑ दे॒वेभ्यो॑ दे॒वत॑मः सुषूदत् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । दे॒वाना॑म् । अ॒ग्र॒ऽयावा॑ । इ॒ह । या॒तु॒ । नरा॒शंसः॑ । वि॒श्वऽरू॑पेभिः । अश्वैः॑ । ऋ॒तस्य॑ । प॒था । नम॑सा । मि॒येधः॑ । दे॒वेभ्यः॑ । दे॒वऽत॑मः । सु॒सू॒द॒त् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ देवानामग्रयावेह यातु नराशंसो विश्वरूपेभिरश्वै: । ऋतस्य पथा नमसा मियेधो देवेभ्यो देवतमः सुषूदत् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । देवानाम् । अग्रऽयावा । इह । यातु । नराशंसः । विश्वऽरूपेभिः । अश्वैः । ऋतस्य । पथा । नमसा । मियेधः । देवेभ्यः । देवऽतमः । सुसूदत् ॥ १०.७०.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 70; मन्त्र » 2
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(देवानाम्-अग्रयावा) जीवन्मुक्तों को मोक्ष में प्रेरित करनेवाला परमात्मा अथवा विद्या की कामना करनेवालों को आगे-ऊँचे ज्ञान में प्रेरित करनेवाला विद्वान् (नराशंसः) मनुष्यों से प्रशंसनीय परमात्मा या विद्वान् (विश्वरूपेभिः-अश्वैः) समस्त निरूपणीय तथा व्यापन गुणों के साथ (आयातु) मेरे हृदय में भलीभाँति प्राप्त हो (ऋतस्य पथा) अध्यात्मयज्ञ या ज्ञानयज्ञ के मार्ग से (मनसा-मियेधः) मन से-मनन आदि से वासना हटानेवाले पात्र को प्रदीप्त करनेवाला (देवेभ्यः-देवतमः सुषूदत्) दिव्यगुणों में अत्यन्त दिव्यगुणवाला ज्ञान को अच्छी प्रकार प्रेरित करे ॥२॥
भावार्थ
जीवन्मुक्तों को मोक्ष में प्रेरित करनेवाला और उनसे प्रशंसित विशेष गुणों से व्याप्त, अध्यात्मयज्ञ के मार्ग से मनन आदि के द्वारा निर्मल तथा प्रकाशमान करनेवाला, समस्त दिव्यगुण पदार्थों में उत्तम दिव्यगुणवाला, परमात्मा आनद रस को हृदय में निर्झरित करता है। एवं विद्या चाहनेवालों को आगे प्रेरित करनेवाला विद्वान्, उनके द्वारा प्रशंसनीय ज्ञानमार्ग से तथा विचार से अज्ञान को दूर करनेवाला, ज्ञानप्रकाश को देनेवाला ऊँचा गुणवान् होकर अन्तःकरण में ज्ञान को भरता है ॥२॥
विषय
अग्नि के दृष्टान्त से गुरु के कर्त्तव्य।
भावार्थ
(देवानां) अन्यों को विद्या, धन आदि देने वाले, ज्ञान के प्रकाशक वा ज्ञानादि को प्राप्त करने वाले जिज्ञासु जनों के बीच (अग्रयावा) आगे २, या अग्र, उत्तम पद, अग्रासन को प्राप्त, (नराशंसः) मनुष्यों में सत्-ज्ञान का उपदेष्टा वा सब से प्रशंसित विद्वान्, (विश्व-रूपैः अश्वैः) सव को उत्तम लगने वाले विद्या के धुरन्धर पारंगत पुरुषों सहित (इह आ यातु) यहां आवे। वह (ऋतस्य पथा) ज्ञान-प्रकाश, सत्य न्याय वा यज्ञ के मार्ग से, और (नमसा) आदरपूर्वक प्रदाशत सत्कार से पूजित होकर (देवतमः) सब विद्वानों, शिष्यों में (मियेधः) सत्संग योग्य गुरु (देवेभ्यः) ज्ञानाभिलाषी जनों को (सु सूदत्) सुखपूर्वक ज्ञान रस प्राप्त करा। (२) इसी प्रकार देव, विजयेच्छुक वीर जनों के बीच अग्रणी नेता नाना रूप अश्व-बलों सहित राष्ट्र में आवे। वह (मियेधः) दुष्टों का हिंसक हो और (ऋतस्य पथा) सत्य, न्याय के मार्ग से (नमसा) विनय अर्थात् दण्ड-विधान के अनुसार (देवेभ्यः) साधारण प्रजाजनों के हितार्थ (सु-सूदत) दुष्टों को दण्ड देवे।
टिप्पणी
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
सुमित्रो वाध्र्यश्व ऋषिः। आप्रियो देवताः॥ छन्द:- १, २, ४, १० निचृत् त्रिष्टुप्। ३ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ५—७, ९, ११ त्रिष्टुप्। ८ विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
विषय
प्रभु-स्तवन
पदार्थ
[१] सुमित्र प्रार्थना करता है कि (देवानां अग्रयावा) = देवों के अग्र स्थान में गति करनेवाला, अर्थात् देवों का अधिपति प्रभु (इह) = इस हमारे हृदय में (आयातु) = आये । वह प्रभु जो कि (नराशंसः) = मनुष्यों से शंसनीय व स्तुति करने योग्य है। जीवन में उन्नति का मार्ग यही है कि हम प्रातः उठने पर हृदय में प्रभु का ध्यान करें। प्रभु का स्तवन करते हुए प्रभु के गुणों को धारण करने का प्रयत्न करें। [२] [क] (विश्वरूपेभिः) = सम्पूर्ण विश्व का निरूपण करनेवाली, इस ब्रह्माण्ड में 'आदित्य- समुद्र - पर्वत' आदि विभूतियों का विचार करनेवाली, (अश्वै) = इन्द्रियों से वे प्रभु (मियेध:) = संगतिकरण योग्य हैं। जब इन्द्रियों से इस ब्रह्माण्ड में हम प्रभु की महिमा को देखेंगे तभी प्रभु के आभास को प्राप्त करके उस प्रभु से मिलनेवाले होंगे। [ख] (ऋतस्य पथा) = ऋत के मार्ग से वे प्रभु [मियेध:-] मिलने योग्य हैं। प्रभु से हमारा मेल तभी होगा जब कि हम ऋत के मार्ग का अनुसरण करेंगे। सब कार्यों को ठीक समय पर करते हुए हम प्रभु के समीप पहुँचते हैं। [ग] (नमसा) = नमन के द्वारा प्रभु [मियेधः ] मिलने योग्य हैं। प्रातः - सायं प्रभु के चरणों में नतमस्तक होते हुए हम प्रभु के अधिकाधिक समीप आते चलते हैं । [३] ये प्रभु (देवतमः) = सर्वमहान् देव हैं, 'देवानामग्रयावा' हैं। ये (देवेभ्यः) = देववृत्तिवाले व्यक्तियों के लिये (सुषूदत्) = सब प्रकार के मलों का क्षरण करनेवाले होते हैं। शरीर से मलों का क्षरण करके ये हमें स्वास्थ्य प्रदान करते हैं, मनों के मल का क्षरण करके हमें राग-द्वेषातीत निर्मल मन प्राप्त कराते हैं और बुद्धि को निर्मल करके हमें तत्त्वदर्शन के योग्य बनाते हैं
भावार्थ
भावार्थ - हम प्रातः हृदयों में प्रभु का ध्यान करें। ये प्रभु ब्रह्माण्ड में प्रभु की विभूतियों का निरूपण करनेवाली इन्द्रियों से, ऋत के पालन से तथा नमन से प्राप्त होते हैं। हमारे मलों को दूर करके हमें 'देव' बनाते हैं ।
संस्कृत (1)
पदार्थः
(देवानाम्-अग्रयावा) जीवन्मुक्तानामग्रे मोक्षे प्रेरयिता परमात्मा यद्वा विद्याकामानामग्रे प्रेरयिता विद्वान् (नराशंसः) नरैः शंसनीयः परमात्मा विद्वान् वा (विश्वरूपेभिः-अश्वैः) समस्तनिरूपणीयै-र्व्यापनगुणैः (आयातु) मम हृदये स्थाने वा समन्तात् प्राप्तो भवतु (ऋतस्य पथा) अध्यात्मयज्ञस्य ज्ञानस्य वा मार्गेण (मनसा-मियेधः) मनसा मननादिना वासनाप्रक्षेपणकर्त्तुः पात्रस्य दीपयिता “मिञ् प्रक्षेपणे” [स्वादिः] ‘ततः कश्छान्दसः पुनः-इन्धी दीप्तौ ततश्चापि कः प्रत्ययः’ (देवेभ्यः-देवतमः सुषूदत्) दिव्यगुणेषु विशिष्टदिव्यगुणवान् स्वानन्दं ज्ञानं सुष्ठु क्षारयतु ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Agni, prime pioneer of divinities, universally valued, praised and adored, come here to yajna with all its universal powers of light and energy and, as highest of divine agents of yajna, catalyse, manage and carry our homage with holy offerings to nature’s bounties for their service and replenishment by the paths of natural laws and bring their blessings for us by the same paths of nature.
मराठी (1)
भावार्थ
जीवनमुक्तांना मोक्षासाठी प्रेरित करणारा व त्यांच्याकडून प्रशंसित विशेष गुणांनी व्याप्त असलेला, अध्यात्मयज्ञाच्या मार्गाने मनन इत्यादी द्वारे निर्मल व प्रकाशमान करणारा, संपूर्ण दिव्य गुण पदार्थात उत्तम दिव्य गुणवान, परमात्मा आनंदरस हृदयात निर्झरित करतो व विद्या प्राप्त करू इच्छिणाऱ्यांना प्रेरित करणारा, विद्वान प्रशंसनीय ज्ञानमार्गाने व विचाराने अज्ञान दूर करणारा असून, ज्ञानप्रकाश देणारा असा श्रेष्ठ गुणवान असून, अंत:करण ज्ञानाने युक्त करतो. ॥२॥
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