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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 38 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - सविता छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ॒शुभि॑श्चि॒द्यान्वि मु॑चाति नू॒नमरी॑रम॒दत॑मानं चि॒देतोः॑। अ॒ह्यर्षू॑णां चि॒न्न्य॑याँ अवि॒ष्यामनु॑ व्र॒तं स॑वि॒तुर्मोक्यागा॑त्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आशुऽभिः॑ । चि॒त् । यान् । वि । मु॒चा॒ति॒ । नू॒नम् । अरी॑रमत् । अत॑मानम् । चि॒त् । एतोः॑ । अ॒ह्यर्षू॑णाम् । चि॒त् । नि । अ॒या॒न् । अ॒वि॒ष्याम् । अनु॑ । व्र॒तम् । स॒वि॒तुः । मोकी॑ । आ । अ॒गा॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आशुभिश्चिद्यान्वि मुचाति नूनमरीरमदतमानं चिदेतोः। अह्यर्षूणां चिन्न्ययाँ अविष्यामनु व्रतं सवितुर्मोक्यागात्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आशुऽभिः। चित्। यान्। वि। मुचाति। नूनम्। अरीरमत्। अतमानम्। चित्। एतोः। अह्यर्षूणाम्। चित्। नि। अयान्। अविष्याम्। अनु। व्रतम्। सवितुः। मोकी। आ। अगात्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 38; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    या मोक्याशुभिर्यान् यान् वि मुचात्येतोरतमानं चिन्नूनमरीरमदह्यर्षूणां चिदविष्यां सवितुरनुव्रतं न्यागात्। एतच्चिदीश्वरनियमाद्भवति ॥३॥

    पदार्थः

    (आशुभिः) अश्वैरिव क्षिप्रकारिभिः (चित्) अपि (यान्) (वि) (मुचाति) मुच्यात्। अत्र लेटि छान्दसो वर्णलोप इति न लोपः। (नूनम्) निश्चितम् (अरीरमत्) रमयति (अतमानम्) अततं सततं प्राप्तम्। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (चित्) अपि (एतोः) एताम् (अह्यर्षूणाम्) येऽहिं मेघं प्राप्नुवन्ति तेषाम् (चित्) (नि) (अयान्) प्राप्तान् (अविष्याम्) रक्षाम्। अत्राऽवधातोरौणादिकः स्यः प्रत्ययः। (अनु) (व्रतम्) शीलं नियमं वा (सवितुः) जगदीश्वरस्य (मोकी) रात्रिः। मोकीति रात्रिना०। निघं० १। ७। (आ) (अगात्) प्राप्नोति ॥३॥

    भावार्थः

    यदीश्वरो नियमेन पृथिवीं न भ्रामयेत्तर्हि सुखप्रदा रात्रिर्न निर्वर्त्तेत। पृथिव्यां यावान्देशः सूर्य्यसन्निधौ भवति तत्र दिनमपरस्मिन् रात्रिश्च सततं वर्त्तेते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    जो (मोकी) रात्रि (आशुभिः) घोड़ों के समान शीघ्रकारी पदार्थों से (यान्) जिन (अयान्) प्राप्त वस्तुओं को (वि,मुचाति) छोड़े (एतोः) इसको (अतमानम्) निरन्तर प्राप्त (चित्) भी पदार्थ (नूनम्) निश्चय करके (अरीरमत्) रमण करता है (अह्यर्षूणाम्) और जो मेघ को प्राप्त होते हैं उन पदार्थों की (चित्) भी (अविष्याम्) रक्षा को (सवितुः) जगदीश्वर का जैसे (अनुव्रतम्) अनुकूल वा नियम वैसे (नि,आ,अगात्) प्राप्त होता है यह उक्त समस्त काम (चित्) भी जगदीश्वर के नियम से होता है ॥३॥

    भावार्थ

    यदि ईश्वर नियम से पृथिवी को न घुमावे तो सुख देनेवाली रात्रि न सिद्ध हो, पृथिवी में जितना देश सूर्य के निकट होता है, उसमें दिन और दूसरे में रात्रि, ये दोनों निरन्तर वर्त्तमान हैं ॥३॥

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    विषय

    सूर्यास्त और गतिविराम

    पदार्थ

    १. (आशुभिः) = इन शीघ्रगामी व्यापक किरणों से (यान्) = गति करता हुआ चित् भी यह सूर्य (नूनम्) = निश्चय से (विमुचाति) = अपने घोड़ों को खोलता है, अर्थात् सायंकाल आता है— सूर्यास्त होता है और परिणामतः यह सूर्य (अतमानं चित्) = निरन्तर गति करते हुए व्यक्तियों को भी (एतोः) = गति से (अरीरमत्) = रोक डालता है। सब लोग सूर्यास्त होने पर कार्यों से विरत होकर गृह की ओर लौटते हैं । २. यह सूर्य (अह्यर्घृणाम्) = [अहिं आहन्तारं शत्रुम् अभिगच्छन्ति] शत्रुओं पर आक्रमण करनेवालों की चित् भी (आविष्याम्) = गमनेच्छा को-शत्रु पर आक्रमण करने की इच्छा को (न्ययान्) = [नियच्छति] रोक देता है, अर्थात् रात्रि आती है तो युद्ध भी रुक जाते हैं। (सवितुः व्रतम् अनु) = सूर्य के कार्य की समाप्ति पर (मोकी) = रात्रि (आगात्) = आती है। रात्रि का 'मोकी' नाम ही स्पष्ट कर रहा है कि यह सभी को कार्यमुक्त कर देती है।

    भावार्थ

    भावार्थ- सूर्यास्त होता है तो व्यापारी व्यापार से रुकते हैं और योद्धा युद्ध करने से । 'मोकी' (रात्रि) आती है और सभी को कार्यमुक्त कर देती है।

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    विषय

    सविता नाम तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार सूर्य ( आशुभिः ) अपनी शीघ्र गामिनी किरणों से ( यान् ) जिन २ प्रदेशों को ( विमुचाति ) त्याग देता है ( नूनम् ) निश्चय से उन २ स्थानों पर ( अतमानं ) व्यापने वाले अन्धकार के ( एतोः ) व्यापने के लिये ( अरीरमत् ) रमने देता है । और वह सूर्य ही ( अह्यर्षूणाम् ) अहि अर्थात् मेघों को लाने वाले वायुओं की ( अविष्याम् नि अयान् ) पृथ्वी को तृप्त करने, आने और मेघ लाने की गति को मी नियमित करता और ( सवितुः व्रतम् अनु ) सूर्य के व्रत या गति के साथ २ उसके अनुकूल ही ( मोकी ) रात्रि भी ( अनु आगात् ) आया करती है । ( चित् ) ठीक उसी प्रकार वह परमेश्वर ( यान् ) जिन पुरुषों को ( आशुभिः ) शीघ्र व्यापनशील सब प्रकार से शुद्ध उपायों से ( विमुचाति ) मुक्त कर देता है उनमें से ( नूनम् ) निश्चय से अपने समीप ( एतोः ) आने वाले पुरुष के ( अतमानम् ) आत्मा को ( अरीरमत् ) खूब आनन्दित और हर्षित करता है । और ( अह्यर्षूणां ) अपनी तरफ आने वाले, साक्षात् मेघ के समान दयालु, आनन्दधन प्रभु स्वरूप को प्राप्त होने वाले पुरुषों की ( अविष्याम् ) आने की या प्रभु को प्राप्त करने की इच्छा को भी यह ( नि अयान् ) नियम से पूर्ण करता है और ( सवितुः व्रतम् अनु ) उस सर्वोत्पादक प्रभु परमेश्वर के व्रत उपासना आदि अनुष्ठान करने के अनन्तर ही ( मोकी ) सब बन्धनों से छुड़ाने वाली मुक्ति भी ( आगात् ) प्राप्त हो जाती है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः॥ सविता देवता ॥ छन्दः– १, ५ निचृत् त्रिष्टुप् । २ त्रिष्टुप् ३, ४, ६, १०, ११ विराट् त्रिष्टुप् । ७,८ स्वराट् पङ्क्तिः ९ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ एका दशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जर ईश्वरी नियमानुसार पृथ्वीचे परिवलन झाले नसते तर सुखकारक रात्र निर्माण झाली नसती. पृथ्वीवर जितका भाग सूर्यासमोर येतो तेथे दिवस व दुसऱ्या भागात रात्र होते. हे दोन्ही निरन्तर वर्तमान असतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Savita, lord of light, the Sun, with its radiant rays releases the moving planets from the shadow of another planet as it removes the shadow of darkness and causes the planet to shine. And for the sake of protection it also controls the movement of the winds coming to the clouds as also other serpentine movements either freakish or destructive. Thus the night and release from darkness comes according to the rule and movement of the Sun’s light, and that is the divine law.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The power of God is described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The sun moving on its axis is liberated by its rapid rays. Verily, it has stopped a traveler from his journey and it restrains the desires of warriors for combat. This happens when the sun sets the night which follows the end of the activities of the sun. All this happens under the Laws ordained by the Omnipotent and Omniscient God.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    If God does not move the earth regularly, there may not be the night that gives happiness. Whatever part of the earth is in the proximity to sun, there is day and in other part-away from the sun-there is night.

    Foot Notes

    (अतमानम्) अततं सततं प्राप्तम् अत्र व्यत्ययेनात्मनने पदम् । = Travelling constantly. (अषूणाम् ) ये ऽहिं मेंघ प्राप्नुवन्ति तेषाम् = Night of the brave warriors who combat the cloud like adversaries. (मोकी) रात्रिः । मोकीति रात्रिनाम (N.G. 1-7) (व्रतम् ) शीलं नियमं वा । = Eternal law.

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