Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 34 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 34/ मन्त्र 11
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शु॒नं हु॑वेम म॒घवा॑न॒मिन्द्र॑म॒स्मिन्भरे॒ नृत॑मं॒ वाज॑सातौ। शृ॒ण्वन्त॑मु॒ग्रमू॒तये॑ स॒मत्सु॒ घ्नन्तं॑ वृ॒त्राणि॑ सं॒जितं॒ धना॑नाम्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शु॒नम् । हु॒वे॒म॒ । म॒घवा॑नम् । इन्द्र॑म् । अ॒स्मिन् । भरे॑ । नृऽत॑मम् । वाज॑ऽसातौ । शृ॒ण्वन्त॑म् । उ॒ग्रम् । ऊ॒तये॑ । स॒मत्ऽसु॑ । घ्नन्त॑म् । वृ॒त्राणि॑ । स॒म्ऽजित॑म् । धना॑नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शुनं हुवेम मघवानमिन्द्रमस्मिन्भरे नृतमं वाजसातौ। शृण्वन्तमुग्रमूतये समत्सु घ्नन्तं वृत्राणि संजितं धनानाम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शुनम्। हुवेम। मघवानम्। इन्द्रम्। अस्मिन्। भरे। नृऽतमम्। वाजऽसातौ। शृण्वन्तम्। उग्रम्। ऊतये। समत्ऽसु। घ्नन्तम्। वृत्राणि। सम्ऽजितम्। धनानाम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 34; मन्त्र » 11
    अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    मनुष्यैः कीदृशो राजा सेव्य इत्याह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यं शुनं मघवानमस्मिन् वाजसातौ भरे नृतममिन्द्रमूतये शृण्वन्तमुग्रं समत्सु वृत्राणि घ्नन्तं धनानां सञ्जितं राजानं हुवेम तं यूयमप्याह्वयत ॥११॥

    पदार्थः

    (शुनम्) सुखप्रदम् (हुवेम) प्रशंसेम (मघवानम्) पुष्कलधनम् (इन्द्रम्) दुष्टानां विदारकम् (अस्मिन्) वर्त्तमाने (भरे) मूर्खविद्वदज्ञानज्ञानविषयविरोधरूपे युद्धे (नृतमम्) अतिशयेन सत्याऽसत्ययोर्नेतारम् (वाजसातौ) विज्ञानाऽविज्ञानसत्यासत्यविभाजके (शृण्वन्तम्) अर्थिप्रत्यर्थिनोः श्रवणाऽनन्तरं न्यायस्य कर्त्तारम् (उग्रम्) दुष्टानामुपरि कठिनस्वभावं श्रेष्ठेषु शान्तम् (ऊतये) रक्षणाद्याय (समत्सु) सङ्ग्रामेषु (घ्नन्तम्) (वृत्राणि) मेघावयवानिव शत्रूसैन्यानि (सञ्जितम्) सम्यगुत्कर्षप्राप्तम् (धनानाम्) विज्ञानादिपदार्थानां मध्ये ॥११॥

    भावार्थः

    मनुष्या दुष्टश्रेष्ठानां परीक्षितारं वादिप्रतिवादिनोर्वचांसि श्रुत्वा न्यायकर्त्तारं पण्डितमूर्खसत्काराऽसत्कारविधातारं पक्षपातरहितं सर्वेषां सुहृदं राजानं स्वीकृत्याऽऽनन्दन्त्विति ॥११॥ अत्र सूर्यविद्युद्वीरराज्यराजसेनाप्रजागुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इति चतुस्त्रिंशत्तमं सूक्तं षोडशो वर्गश्च समाप्तः॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (2)

    विषय

    मनुष्यों को कैसे राजा का सेवन करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! जिस (शुनम्) सुख देनेवाले (मघवानम्) बहुत धन से युक्त (अस्मिन्) इस वर्त्तमान (वाजसातौ) विज्ञान अविज्ञान सत्य और असत्य के विभागकारक (भरे) मूर्ख और विद्वान् के अज्ञान और ज्ञान के विषय के विरोध रूप युद्ध में (नृतमम्) अत्यन्त सत्य और असत्य के निर्णय करने (इन्द्रम्) और दुष्ट जनों के नाश करनेवाले पुरुष की (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (शृण्वन्तम्) अर्थी प्रत्यर्थी अर्थात् मुद्दई मुद्दाले के वचन सुनने के पीछे न्याय करने (उग्रम्) दुष्ट पुरुषों पर कठोर स्वभाव और श्रेष्ठ पुरुषों में शान्त स्वभाव रखने (समत्सु) संग्रामों में (वृत्राणि) मेघों के अवयवों के सदृश शत्रुओं की सेनाओं के (घ्नन्तम्) नाश करने और (धनानाम्) विज्ञान आदि पदार्थों के मध्य में (सञ्जितम्) उत्तम प्रकार श्रेष्ठता को प्राप्त होनेवाले राजा की (हुवेम) प्रशंसा करैं, उसकी आप लोग भी प्रशंसा करो ॥११॥

    भावार्थ

    मनुष्य लोग दुष्ट और श्रेष्ठ पुरुषों की परीक्षा करने, वादी और प्रतिवादी के वचनों को सुनके न्याय करने पण्डित और मूर्ख जन का आदर और निरादर करने पक्षपात से अलग रहने और सम्पूर्ण जनों के सुख देनेवाले पुरुष को राजा मान के आनन्द करैं ॥११॥ इस सूक्त में सूर्य्य बिजुली वीर राज्य राजा की सेना और प्रजा के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इससे पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥११ यह चौंतीसवाँ सूक्त और सोलहवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'शृण्वन्' प्रभु (सुननेवाले)

    पदार्थ

    [१] मन्त्र व्याख्या ३.३०.२२ पर द्रष्टव्य है । सूक्त का मूलभाव यही है कि हम प्रभु का स्तवन करें। प्रभु हमारे लिए अशुभ वृत्तियों का विनाश करेंगे और हमारा रक्षण करेंगे। अशुभ वृत्तियों के विनाश के लिए ही इन्द्रिय-निरोध आवश्यक है। इसी भाव से अगले सूक्त का प्रारम्भ है -

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी दुष्ट व श्रेष्ठ पुरुषांची परीक्षा करणारा, वादी व प्रतिवादीच्या वचनांना ऐकून न्याय करणारा, पंडितांचा सत्कार व मूर्खांचा निरादर करणारा, भेदभावापासून दूर राहणारा, संपूर्ण प्रजेला सुख देणाऱ्या पुरुषाला राजा मानून आनंदी व्हावे. ॥ ११ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    We invoke, invite and celebrate Indra, auspicious lord of wealth, honour and excellence, friend of the good and controller of the wicked. In this battle of life, we call upon him, best and highest of men and leaders, for victory. We call upon him in all our struggles for protection, promotion and progress, for he listens to us, destroys the evils of darkness and ignorance, and wins, preserves and promotes the wealth, honour and excellence of life and culture. Great is he, mighty lustrous, terribly irresistible, blazing, victorious.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What kind of king should be served by the people is narrated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! we invoke for protection a king. He bestows happiness, possesses much admirable wealth, and destroys enemies. He is the best among men and true judge between the truth and falsehood, and dispenses justice after deep verification from the concerned parties and fierce for the wicked, though peace giver for good men. He annihilates the enemy like the sun to the clouds and conquers the wealth in the form of scientific knowledge etc. So you should also invoke him in this battle between the learned and the enemies of the learning and between knowledge and ignorance by distinguishing between the truth and falsehood.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should enjoy bliss by accepting a person as king who can rightly distinguish between the noble and the ignorable; who is capable to dispense justice after listening attentively to the arguments of the contesting parties. Such a king should respect the enlightened men and dishonor the ignorant and act impartially to all.

    Foot Notes

    (भरे) मूर्खविद्वदज्ञानज्ञानविषय विरोधरूपे युद्धे । = In the battle between the ignorant and the learned, between ignorance and knowledge. (वाजसातौ) विज्ञानविज्ञान सत्यासत्यविभाजके । = Distinguisher between true knowledge and ignorance and truth and untruth.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top