ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 34/ मन्त्र 2
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
म॒खस्य॑ ते तवि॒षस्य॒ प्र जू॒तिमिय॑र्मि॒ वाच॑म॒मृता॑य॒ भूष॑न्। इन्द्र॑ क्षिती॒नाम॑सि॒ मानु॑षीणां वि॒शां दैवी॑नामु॒त पू॑र्व॒यावा॑॥
स्वर सहित पद पाठम॒खस्य॑ । ते॒ । त॒वि॒षस्य॑ । प्र । जू॒तिम् । इय॑र्मि । वाच॑म् । अ॒मृता॑य । भूष॑न् । इन्द्र॑ । क्षि॒ती॒नाम् । अ॒सि॒ । मानु॑षीणाम् । वि॒शाम् । दैवी॑नाम् । उ॒त । पू॒र्व॒ऽयावा॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
मखस्य ते तविषस्य प्र जूतिमियर्मि वाचममृताय भूषन्। इन्द्र क्षितीनामसि मानुषीणां विशां दैवीनामुत पूर्वयावा॥
स्वर रहित पद पाठमखस्य। ते। तविषस्य। प्र। जूतिम्। इयर्मि। वाचम्। अमृताय। भूषन्। इन्द्र। क्षितीनाम्। असि। मानुषीणाम्। विशाम्। दैवीनाम्। उत। पूर्वऽयावा॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 34; मन्त्र » 2
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 15; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ राजप्रजाविषयमाह।
अन्वयः
हे इन्द्र ! ते मखस्य तविषस्व जूतिममृताय वाचं भूषन्सन्प्रेयर्मि यतस्त्वं दैवीनां क्षितीनां मानुषीणां विशां पूर्वयावा असि उत वा स्वयं विद्याविनययुक्तोऽसि तस्माच्छ्रेष्ठैः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥२॥
पदार्थः
(मखस्य) प्राप्तस्य सङ्गतस्य व्यवहारस्य (ते) तव (तविषस्य) बलस्य (प्र) (जूतिम्) वेगम् (इयर्मि) प्राप्नोमि (वाचम्) सत्यामादिष्टां वाणीम् (अमृताय) अविनाशिसुखाय (भूषन्) अलङ्कुर्वन् (इन्द्र) परमैश्वर्य्यप्रद (क्षितीनाम्) स्वराज्ये निवसन्तीनाम् (असि) (मानुषीणाम्) मनुषसम्बन्धिनीम् (विशाम्) प्रजानाम् (दैवीनाम्) दिव्यगुणयुक्तानाम् (उत) (पूर्वयावा) प्राचीनराजनीतिं प्राप्तः ॥२॥
भावार्थः
सर्वैः प्रजाराजजनैः सर्वाधीशस्याऽऽज्ञा नैवोल्लङ्घनीया सर्वाधीशेन धर्म्येण कर्मणा सततं प्रजाः पालनीयाः ॥२॥
हिन्दी (3)
विषय
अब राजा प्रजा सम्बन्धी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
पदार्थ
हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के देनेवाले ! (ते) आपके (मखस्य) मेल करने रूप व्यवहार और (तविषस्य) बल के (जूतिम्) वेग और (अमृताय) अविनाशि सुख के लिये (वाचम्) कही हुई सत्य वाणी को (भूषन्) शोभित करता हुआ मैं (प्र, इयर्मि) प्राप्त होता हूँ, जिससे आप (दैवीनाम्) उत्तम गुणों से युक्त (क्षितीनाम्) अपने राज्य में बसनेवाली (मानुषीणाम्) मनुष्यरूप (विशाम्) प्रजाओं की (पूर्वयावा) प्राचीन राजनीति को प्राप्त (उत) अथवा अपने ही से विद्या और विनय से युक्त हो, इससे श्रेष्ठ पुरुषों से सत्कार करने योग्य (असि) हो ॥२॥
भावार्थ
सम्पूर्ण प्रजा और राजजनों को चाहिये कि सब लोगों के स्वामी की आज्ञा का उल्लङ्घन न करैं और सब लोगों के स्वामी को चाहिये कि धर्मयुक्त कर्मों से निरन्तर प्रजाओं का पालन करैं ॥२॥
विषय
जूति वाक्
पदार्थ
[१] (इन्द्र) = हे सर्वशक्तिमन् प्रभो ! (मखस्य) = यज्ञरूप (तविषस्य) = शक्ति के पुञ्ज [महान्] (ते) = आपकी (जूतिम्) = मन से प्रेरित (वाचम्) - वाणी को-हृदयदेश में प्रेरणा के रूप में उच्चारण की गयी वाणी को (प्र इयर्मिः) = मैं प्रकर्षेण प्राप्त होता हूँ । इस प्रेरणा को सुनता हुआ मैं (अमृताय भूषन्) = अमृतत्त्व के लिए अपने को अलंकृत करता हूँ। वस्तुतः यह प्रेरणा मुझे भी यज्ञमय जीवनवाला [मखस्य] तथा शक्तिशाली [तविष] बनाती है। ये यज्ञ व शक्ति मुझे नीरोग व अमर बनाते हैं। [२] हे इन्द्र! आप (मानुषीणां क्षितीनाम्) = विचारशील उत्तम निवास व गतिवाले लोगों को [क्षि निवासगत्योः] (पूर्वयावा) = आगे चलनेवाले असि हैं। आप उनके मार्गदर्शक हैं। (उत) = और (दैवीनां विशाम्) = दिव्यगुण सम्पन्न प्रजाओं के [पूर्वयावा असि] पथ प्रदर्शक हैं आपके पथप्रदर्शन से गति करते हुए ही वस्तुतः ये देव बन पाए हैं।
भावार्थ
भावार्थ- हम हृदयदेश में उच्चरित प्रभु की प्रेरणात्मक वाणी को सुनें। उसके अनुसार हुए चलते हम उत्तम मनुष्य व देव बन पाएँगे।
विषय
प्रजा का राजा की शरण में जाना
भावार्थ
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! राजन् ! प्रभो ! मैं (अमृताय) अमृतत्व वा चिरस्थायी सुख को लाभ करने के लिये (मखस्य) पूजा करने योग्य (तविषस्य) बलवान्, सर्वशक्तिमान् (ते) तेरी (जूतिम्) प्रेरणा और (वाचम्) वाणी को (भूषन्) अलंकृत करता हुआ तुझ को (इयर्मि) प्राप्त होता हूं। हे प्रभो ! ( मानुषीणां) मननशील और (दैवीनां) दिव्य गुणों से युक्त (विशां) प्रजाओं और (क्षितीनाम्) राज्य में रहने वाली प्रजाओं के बीच में तू ही (पूर्वयावा) सबसे पूर्व आगे बढ़ने वाला पूर्वों के बनाये न्यायपथ पर चलने चलाने हारा है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः—१, २, ११ त्रिष्टुप्॥ ४, ५, ७ १० निचृत्त्रिष्टुप्। ९ विराट् त्रिष्टुप्। ३, ६, ८ भुरिक् पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
मराठी (1)
भावार्थ
संपूर्ण प्रजा व राजजनांनी सर्वाधीशाच्या आज्ञेचे उल्लंघन करू नये. सर्वाधीशाने धर्मयुक्त कर्मांनी निरंतर प्रजेचे पालन करावे. ॥ २ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Indra, lord of life and giver of light, I arise and receive the inspiration of the power and generosity of your yajna, glorifying the divine voice for the sake of immortality. Lord of power and ruler of the world, you are the leader and pioneer of the nations of the world, ordinary people, specialized groups and exceptional people of brilliance and generosity.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
Something important about the relation between the king and his subjects has been told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O Indra (giver of great wealth)! adoring my speech for the attainment of abiding happiness and joy, I praise the quickness or impetus of your coordinated joint and proper action and strength. You are the lord or ruler of your subjects consistent with the welfare policies of the common men as well as persons of divine nature. You are yourself blessed with good knowledge and humility. Therefore, you are to be honored by all gentlemen.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
The officers of the State and the people should not flout the righteous instructions of the duly elected representatives of the State. Moreover, the President should constantly protects by performing the right actions.
Foot Notes
(मखस्य ) प्राप्तस्य सङ्गतस्य व्यवहारस्य । मख इति यज्ञनाम (NG 3,17) Of coordinated, joint and proper action. = (क्षितीनाम) स्वराज्ये निवसन्तीनाम्। (क्षितीणाम्) क्षितयः इति मनुष्य नाम (NG 2,3) क्षितिरीति पृथ्वीनाम (NG 1,1) = Of the subjects living in one's State. (अमृताय ) अविना शिसुखाय । = For the attainment of abiding and eternal happiness. (पूर्वयावा ) प्राचीनराजनीति प्राप्तः । = Conversant with the consistent politics with the background of past links.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal