Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 18 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 18/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्रादिती छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अ॒यं पन्था॒ अनु॑वित्तः पुरा॒णो यतो॑ दे॒वा उ॒दजा॑यन्त॒ विश्वे॑। अत॑श्चि॒दा ज॑निषीष्ट॒ प्रवृ॑द्धो॒ मा मा॒तर॑ममु॒या पत्त॑वे कः ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒यम् । पन्थाः॑ । अनु॑ऽवित्तः । पु॒रा॒णः । यतः॑ । दे॒वाः । उ॒त्ऽअजा॑यन्त । विश्वे॑ । अतः॑ । चि॒त् । आ । ज॒नि॒षी॒ष्ट॒ । प्रऽवृ॑द्धः । मा । मा॒तर॑म् । अ॒मु॒या । पत्त॑वे । क॒रिति॑ कः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं पन्था अनुवित्तः पुराणो यतो देवा उदजायन्त विश्वे। अतश्चिदा जनिषीष्ट प्रवृद्धो मा मातरममुया पत्तवे कः ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अयम्। पन्थाः। अनुऽवित्तः। पुराणः। यतः। देवाः। उत्ऽअजायन्त। विश्वे। अतः। चित्। आ। जनिषीष्ट। प्रऽवृद्धः। मा। मातरम्। अमुया। पत्तवे। करिति कः ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 18; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेन्द्राय मनुष्याय सन्मार्गोपदेशमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! यतो विश्वे देवा उदजायन्त सोऽयमनुवित्तः पुराणः पन्था अस्ति। यतोऽयं संसारः प्रवृद्धो जनिषीष्टाऽतश्चित्त्वममुया मातरं पत्तवे माऽकः ॥१॥

    पदार्थः

    (अयम्) (पन्थाः) मार्गः (अनुवित्तः) अनुलब्धः (पुराणः) सनातनः (यतः) यस्मात् (देवाः) विद्वांसः (उदजायन्त) उत्कृष्टा भवन्ति (विश्वे) सर्वे (अतः) अस्मात् (चित्) अपि (आ) (जनिषीष्ट) जायेत (प्रवृद्धः) (मा) निषेधे (मातरम्) जननीम् (अमुया) तया (पत्तवे) पत्तुं प्राप्तुम् (कः) कुर्याः ॥१॥

    भावार्थः

    हे मनुष्या ! येन मार्गेणाप्ता गच्छेयुस्तेनैव मार्गेण यूयमपि गच्छत। यदि महती वृद्धिरपि स्यात्तदपि माता केनापि नाऽवमन्तव्या ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (1)

    विषय

    अब तेरह ऋचावाले अठारहवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में उत्तम ऐश्वर्यवान् मनुष्य के लिये अच्छे मार्ग का उपदेश करते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (यतः) जिससे (विश्वे) सब (देवाः) विद्वान् लोग (उदजायन्त) उत्तम होते हैं, वह (अयम्) यह (अनुवित्तः) अनुकूल प्राप्त (पुराणः) अनादि काल से सिद्ध (पन्थाः) मार्ग है, जिससे यह संसार (प्रवृद्धः) बढ़ा (जनिषीष्ट) उत्पन्न होवे (अतः) इस कारण से (चित्) भी आप (अमुया) उस उत्पत्ति से (मातरम्) माता को (पत्तवे) प्राप्त होने को (मा) मत (आ, कः) करे ॥१॥

    भावार्थ

    हे मनुष्यो ! जिस मार्ग से यथार्थवक्ता पुरुष जावें, उसी मार्ग से आप लोग भी चलो, जो बड़ी वृद्धि भी होवे तो भी माता का अपमान किसी को न करना चाहिये ॥१॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    विषय

    या सूक्तात इंद्र, मेघ, राजा व विद्वान यांच्या कार्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

    भावार्थ

    हे माणसांनो ! ज्या मार्गाने आप्त (विद्वान) लोक जातात त्याच मार्गाने तुम्हीही चालाल तर महान उन्नती होईल; तरीही माता व पिता यांचा अपमानही कुणी करू नये. ॥ १ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    This is the path ancient and eternal, known and followed, by which all saints and sages and divine facts and forces are born to grow and rise, from which the whole world comes into being and evolves to greatness and grandeur. Therefore, do not do anything by that way to insult or desecrate the mother, nature, earth, human mother or animal, or any source of generation.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top