ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 18/ मन्त्र 5
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्रादिती
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अ॒व॒द्यमि॑व॒ मन्य॑माना॒ गुहा॑क॒रिन्द्रं॑ मा॒ता वी॒र्ये॑णा॒ न्यृ॑ष्टम्। अथोद॑स्थात्स्व॒यमत्कं॒ वसा॑न॒ आ रोद॑सी अपृणा॒ज्जाय॑मानः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठअ॒व॒द्यम्ऽइ॑व । मन्य॑माना । गुहा॑ । अ॒कः॒ । इन्द्र॑म् । मा॒ता । वी॒र्ये॑ण । निऽऋ॑ष्टम् । अथ॑ । उत् । अ॒स्था॒त् । स्व॒यम् । अत्क॑म् । वसा॑नः । आ । रोद॑सी॒ इति॑ । अ॒पृ॒णा॒त् । जाय॑मानः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अवद्यमिव मन्यमाना गुहाकरिन्द्रं माता वीर्येणा न्यृष्टम्। अथोदस्थात्स्वयमत्कं वसान आ रोदसी अपृणाज्जायमानः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठअवद्यम्ऽइव। मन्यमाना। गुहा। अकः। इन्द्रम्। माता। वीर्येण। निऽऋष्टम्। अथ। उत्। अस्थात्। स्वयम्। अत्कम्। वसानः। आ। रोदसी इति। अपृणात्। जायमानः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 18; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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अष्टक » 3; अध्याय » 5; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ मानं कुर्वत्या मात्रेन्द्रपालनादिविषयमाह ॥
अन्वयः
यथा मन्यमाना माता गुहा वीर्येणा न्यृष्टमिन्द्रमवद्यमिवाऽकस्तथैव जायमानः सूर्यो रोदसी आपृणाद् यथात्कं वसानो जनस्स्वयमेवोपर्यागच्छेत्तथा य उदस्थात्सोऽथ सर्वं जगद्रक्षति ॥५॥
पदार्थः
(अवद्यमिव) निन्दनीयमिव (मन्यमाना) (गुहा) बुद्धौ (अकः) करोति (इन्द्रम्) राजानम् (माता) जननी (वीर्येणा) पराक्रमेण। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (न्यृष्टम्) नितरां प्राप्तम् (अथ) (उत्) (अस्थात्) उत्तिष्ठते (स्वयम्) (अत्कम्) कूपम् (वसानः) आच्छादयन् (आ) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अपृणात्) पृणाति पालयति (जायमानः) उत्पद्यमानः ॥५॥
भावार्थः
अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि माता सूर्यवद्यानि स्वापत्यानि बोधयति दुष्टाचारानपनीय शिक्षते तानि उत्तमानि भवन्ति ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब मान करनेवाली माता से उत्तम ऐश्वर्यवान् पुरुष के पालनादि विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जैसे (मन्यमाना) आदर की गई (माता) माता (गुहा) बुद्धि में (वीर्येणा) पराक्रम से (न्यृष्टम्) अत्यन्त प्राप्त (इन्द्रम्) राजा को (अवद्यमिव) निन्दनीय के सदृश (अकः) करती है, वैसे ही (जायमानः) उत्पन्न होनेवाला सूर्य (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथ्वी का (आ, अपृणात्) पालन करता है और जैसे (अत्कम्) कूप का (वसानः) आच्छादन करता हुआ जन (स्वयम्) आप ही ऊपर को प्राप्त होवे, वैसे जो (उत, अस्थात्) उठता है वह (अथ) अनन्तर सब जगत् की रक्षा करता है ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो माता सूर्य के सदृश जिन अपने सन्तानों को बोध कराती और दुष्ट आचरणों को दूर करके शिक्षा करती है, तो वे सन्तान उत्तम होते हैं ॥५॥
विषय
वेदमाता की गोद में
पदार्थ
[१] 'वेद' माता है। वह अपने सन्तान 'इन्द्र' का भला चाहती हुई उसे सुरक्षित करती है । (अवद्यम्) = पाप को (इव मन्यमाना) = समझती हुई, 'कहीं यह मेरा सन्तान अमंगल से अभिभूत न हो जाए' ऐसा सोचती हुई यह वेदमाता (इन्द्रम्) = इस जितेन्द्रिय पुरुष को (गुहा अकः) = अपनी गोद रूप गुफा में सुरक्षित करती है-अपने संवरण में [गुह संवरणे] रखती है। उस इन्द्र को, जो कि (वीर्येण न्यृष्टम्) = वीर्य से निश्चय पूर्वक संगत है। [२] (अथ) = अब, वेदमाता से सुरक्षित हुआहुआ यह इन्द्र (उद् अस्थात्) = ऊपर उठता है-संसार के विषयों में फँसता नहीं। यह संसार के विषयों में न फँसने से (स्वयम्) = अपने (अत्कम्) = सब को (वसानः) = धारण किये हुए होता है। संसार के विषयों से लिप्त न होने से अपने तेजस्वी रूपवाला होता है। यह (जायमानः) = शक्तियों का विकास करता हुआ (रोदसी) = द्यावापृथिवी को-मस्तिष्क व शरीर दोनों को (आ अपृणात्) = समन्तात् पूरित करता है। मस्तिष्क को ज्ञान ज्योति से भरता है, तो शरीर को शक्ति से पूर्ण करनेवाला होता है।
भावार्थ
भावार्थ- वेदमाता की गोद में सुरक्षित हुआ-हुआ व्यक्ति विषयाश्रान्त न होकर अपने तेजस्वी रूप को धारण करता है- दीप्त मस्तिष्क व तेजस्वी शरीरवाला होता है ।
विषय
प्रकृति परमेश्वर से जगत् की उत्पत्ति ।
भावार्थ
(माता) जगत् को निर्माण करने वाली प्रकृति (इन्द्रं) उस परम दर्शनीय महान् आत्मा को (अवद्यम् इव) वाणी से न कहने योग्य और (वीर्येण) समस्त संसार को विविध प्रकार से गति देने में समर्थ बल से (नि ऋष्टं) पूर्ण (मन्यमाना) मानती हुई (गुहाकः) उसके अपने भीतर अदृश्य रूप से धारण करती (अथ) और -अनन्तर वह परमेश्वर (स्वयं) स्व अपने ही महान् सामर्थ्य से (अत्कं वसानः) तेज को धारण करता हुआ, तेजःस्वरूप सूर्य के तुल्य (उत् अस्थात्) सबसे ऊपर विद्यमान रहता है । और विश्व रूप से (जायमानः) प्रकट होता हुआ (रोदसी आ अपृणात्) आकाश और भूमि दोनों को पूर्ण करता और पालता है । (२) मानकारिणी माता बल से युक्त पुत्र के तुल्य यह प्रजा भी (अवद्यं) प्रथम अवन्दनीय सा समझ कर उसको गर्भ के तुल्य अपने भीतर धारण किये रहती है । वह अपने ही तेज को धारण करता हुआ सूर्य के तुल्य उदय होता और (रोदसी) स्व और पर दोनों को पूर्ण करता है । इति पञ्चविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः । इन्द्रादिती देवत ॥ छन्द:– १, ८, १२ त्रिष्टुप । ५, ६, ७, ९, १०, ११ निचात्त्रष्टुप् । २ पक्तः । ३, ४ भुरिक् पंक्ति: । १३ स्वराट् पक्तिः। त्रयोदशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात वाचकलुप्तोमालंकार आहे. जी माता सूर्याप्रमाणे आपल्या संतानांना बोध करविते व दुष्ट आचरणापासून दूर करून शिक्षण देते तेव्हा ती संतती उत्तम होते. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (3)
Meaning
The mother, worthy of reverence and full of the pride and joy of motherhood, bears Indra, living foetus, in the womb as a silent secret nourished with her vital blood. This Indra, nestled by itself as a living form, nourished, growing and wearing its own form as a garment, abides, and when it is born it fulfils the purpose of heaven and earth (as it fulfils the purpose of father and mother).
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The way to bring up children is told to mothers.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The mother gave birth to an Indra (would-be king) with the desires of welfare. She nurtures great urge so that there may not be any un-desirable trait in him. As soon as he passed out of his seat of education like the sun, he filled earth and heaven with his splendor. It is like a well-dressed man, who comes out with his splendor and protects the world.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If a mother teaches her sons who are like the sun and instructs them to be away from evil conduct, they turn out to be very good.
Foot Notes
(अवद्य मिव ) निन्दनीयमिव । - Reprehensible. (अत्कम् ) कूपम् । अत्क इति वज्रनाम (NG 2, 20) = Well, (न्युष्टम् ) नितरां प्राप्तम् । = Got. ( वसानः ) आच्छादयन् । = Covering. It may mean besides the meaning of well, bearing powerful weapons like the thunderbolt. Swami Dayananda has explained अत्कम् in as व्याप्तिशीलं वस्त्रम् in his commentary. So it may mean wearing clothes or well-dressed.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The way to bring up children is told to mothers.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The mother gave birth to an Indra (would-be king) with the desires of welfare. She nurtures great urge so that there may not be any un-desirable trait in him. As soon as he passed out of his seat of education like the sun, he filled earth and heaven with his splendor. It is like a well-dressed man, who comes out with his splendor and protects the world.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
If a mother teaches her sons who are like the sun and instructs them to be away from evil conduct, they turn out to be very good.
Foot Notes
(अवद्य मिव ) निन्दनीयमिव । - Reprehensible. (अत्कम् ) कूपम् । अत्क इति वज्रनाम (NG 2, 20) = Well, (न्युष्टम् ) नितरां प्राप्तम् । = Got. ( वसानः ) आच्छादयन् । = Covering. It may mean besides the meaning of well, bearing powerful weapons like the thunderbolt. Swami Dayananda has explained अत्कम् in as व्याप्तिशीलं वस्त्रम् in his commentary. So it may mean wearing clothes or well-dressed.
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