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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 23 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 23/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    क॒था शृ॑णोति हू॒यमा॑न॒मिन्द्रः॑ क॒था शृ॒ण्वन्नव॑सामस्य वेद। का अ॑स्य पू॒र्वीरुप॑मातयो ह क॒थैन॑माहुः॒ पपु॑रिं जरि॒त्रे ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    क॒था । शृ॒णो॒ति॒ । हू॒यमा॑नम् । इन्द्रः॑ । क॒था । शृ॒ण्वन् । अव॑साम् । अ॒स्य॒ । वे॒द॒ । काः । अ॒स्य॒ । पू॒र्वीः । उप॑ऽमातयः । ह॒ । क॒था । ए॒न॒म् । आहुः॑ । पपु॑रिम् । ज॒रि॒त्रे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कथा शृणोति हूयमानमिन्द्रः कथा शृण्वन्नवसामस्य वेद। का अस्य पूर्वीरुपमातयो ह कथैनमाहुः पपुरिं जरित्रे ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कथा। शृणोति। हूयमानम्। इन्द्रः। कथा। शृण्वन्। अवसाम्। अस्य। वेद। काः। अस्य। पूर्वीः। उपऽमातयः। ह। कथा। एनम्। आहुः। पपुरिम्। जरित्रे ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 23; मन्त्र » 3
    अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 9; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्या ! इन्द्रो हूयमानं कथा शृणोति शृण्वन्नस्याऽवसां हूयमानं कथा वेदाऽस्य पूर्वीरुपमातयो ह काः सन्ति। अथैनं जरित्रे पपुरिं कथाऽऽहुरिति प्रष्टव्यम् ॥३॥

    पदार्थः

    (कथा) केन प्रकारेण (शृणोति) (हूयमानम्) स्पर्द्धमानम् (इन्द्रः) अध्यापको राजा वा (कथा) (शृण्वन्) (अवसाम्) रक्षणादीनाम् (अस्य) (वेद) जानीयात् (काः) (अस्य) (पूर्वीः) प्राचीनाः (उपमातयः) उपमाः (ह) खलु (कथा) (एनम्) (आहुः) (पपुरिम्) पालकम् (जरित्रे) विदुषे ॥३॥

    भावार्थः

    ये विद्यार्थिनो राजजनाश्चाऽऽप्तानां वचांसि शास्त्राणि सम्यक्छ्रुत्वा मत्वा निश्चित्य पुनः कर्म्माऽऽरभन्ते त एव सर्वं वेदितव्यं विजानन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! (इन्द्रः) अध्यापक वा राजा (हूयमानम्) स्पर्द्धा करते हुए को (कथा) किस प्रकार (शृणोति) सुनता है और (शृण्वन्) सुनता हुआ (अस्य) इसके (अवसाम्) रक्षण आदिकों की स्पर्द्धा करते हुए को (कथा) किस प्रकार से (वेद) जाने (अस्य) इसकी (पूर्वीः) प्राचीन (उपमातयः) उपमा (ह) ही (काः) कौन हैं? अनन्तर (एनम्) इसको (जरित्रे) विद्वान् के लिये (पपुरिम्) पालन करनेवाला (कथा) किस प्रकार (आहुः) कहते हैं, ऐसा पूछना चाहिए ॥३॥

    भावार्थ

    जो विद्यार्थी और राजा के जन यथार्थवक्ता पुरुषों के वचनों के शास्त्रों को उत्तम प्रकार सुन, मान और निश्चय करके पुनः कर्मों का आरम्भ करते हैं, वे ही सम्पूर्ण जानने योग्य को जानते हैं ॥३॥

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    विषय

    प्रभु के अद्भुत दान व रक्षण

    पदार्थ

    [१] (इन्द्रः) = वह परमैश्वर्यशाली प्रभु (हूयमानम्) = [आह्वयमानम्] प्रार्थना करते हुए को (कथा) = किस अद्भुत प्रकार से (शृणोति) = सुनता है। उपासक की प्रार्थनाओं को पूर्ण करने का प्रभु का प्रकार अद्भुत ही है। (कथा) = किस प्रकार (शृण्वन्) = इसकी प्रार्थना को सुनता हुआ (अस्य) = इस उपासक के (अवसाम्) = रक्षणों को (वेद) = जानता है, प्रभु के रक्षण का प्रकार भी अद्भुत ही होता है। [२] (का:) = क्या ही अद्भुत (ह) = निश्चय से (अस्य) = इस परमात्मा के (पूर्वी:) = पालन व पूरण करनेवाले (उपमातयः) = दान हैं। (कथा) = किस प्रकार (एनम्) = इस परमात्मा को (जरित्रे) = स्तोता के लिए (पपुरि) = पालन व पूरण करनेवाला (आहुः) = कहते हैं ?

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु आराधक की प्रार्थना को सुनते हैं। उसका रक्षण करते हैं। उस प्रभु के दान अद्भुत हैं। स्तोता के प्रभु पालक होते हैं।

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    विषय

    राजा और आचार्य के सम्बन्ध में नाना ज्ञातव्य बातें प्रजा वा शिष्य को उपदेश ।

    भावार्थ

    (इन्द्र) ऐश्वर्यवान् शत्रु और अज्ञान का नाश करने वाला राजा और विद्वान् आचार्य, (हूयमानम्) अपने से स्पर्धा करने वाले शत्रु के वचन और अपने प्रति दिये या सौंपे जाने वाले शिष्य के प्रति (कथा शृणोति) किस प्रकार श्रवण करे । और (शृण्वन्) सुनने वाला पुरुष (अस्य) इस राजा और विद्वान के (अवसाम्) ज्ञानों और स्थादि सामर्थ्यों को (कथा वेद) किस प्रकार जाने । (अस्य) इसकी (पूर्वीः) ऐश्वर्यों से पूर्ण, बहुतसी, पूर्वतः विद्यमान (उपमातयः) समीपस्थ शत्रु हननकारिणी और उसका अपना मान उत्पन्न करने वाली और सम्मति अनुमति देने वाली (का) सेना, प्रजा, और समितियें क्या २ हों, और विद्वान् की ‘उपमाति’ अर्थात् ज्ञान शक्तियां मान पद आदि क्या २ हों और (एनम्) इसको (जरित्रे) विद्वान् स्तुतिकर्त्ता पुरुष वा प्रजाजन के हितार्थ (पपुरिम्) पालक और पूरक (कथा आहुः) किस प्रकार कहते हैं । यह सब जानने योग्य बातें हैं। उनको जानकर राजा प्रजा, गुरु शिष्य परस्पर यथोचित व्यवहार करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः ॥ १–७, ११ इन्द्रः । ८, १० इन्द्र ऋतदेवो वा देवता॥ छन्द:– १, २, ३, ७, ८, ६,२ त्रिष्टुप् । ४, १० निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ६ भुरिक् पंक्ति: । ११ निचृत्पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्यार्थी व राजा आप्त पुरुषाचे वचन ऐकून, शास्त्र उत्तम प्रकारे ऐकून, मानून व निश्चय करून नंतर कर्माचा आरंभ करतात; तेच संपूर्ण जाणण्यायोग्यांना जाणतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    When does Indra listen to the supplicant? And while he listens, when does he grant that the time for his liberation and ultimate protection is come? What are, for sure, the ultimate bounds (if any) of the lord’s gifts of grace? How do the celebrants sing of the gracious lord for the supplicant?

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    More questions crop up, as indicated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O man ! how should a teacher or ruler deal with an invited person? After hearing, how does he know the means of protecting or depending him? What are his long established similarities or illustrations? How do they call him the sustainer of a learned person.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those students and officers of the State, who commence work after listening well to the advice of the absolutely truthful learned persons and the Shastras, and take decisions after thorough consideration, know all that is worth-knowing,

    Foot Notes

    (इन्द्र:) अध्यापको राजा वा । = Teacher or king. (पपुरिम् ) पालकम् । = Sustainer.

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