ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 23/ मन्त्र 9
ऋषिः - वामदेवो गौतमः
देवता - इन्द्रऋतदेवो वा
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ऋ॒तस्य॑ दृ॒ळ्हा ध॒रुणा॑नि सन्ति पु॒रूणि॑ च॒न्द्रा वपु॑षे॒ वपूं॑षि। ऋ॒तेन॑ दी॒र्घमि॑षणन्त॒ पृक्ष॑ ऋ॒तेन॒ गाव॑ ऋ॒तमा वि॑वेशुः ॥९॥
स्वर सहित पद पाठऋ॒तस्य॑ । दृ॒ळ्हा । ध॒रुणा॑नि । स॒न्ति॒ । पु॒रूणि॑ । च॒न्द्रा । वपु॑षे । वपूं॑षि । ऋ॒तेन॑ । दी॒र्घम् । इ॒ष॒ण॒न्त॒ । पृक्षः॑ । ऋ॒तेन॑ । गावः॑ । ऋ॒तम् । आ । वि॒वे॒शुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
ऋतस्य दृळ्हा धरुणानि सन्ति पुरूणि चन्द्रा वपुषे वपूंषि। ऋतेन दीर्घमिषणन्त पृक्ष ऋतेन गाव ऋतमा विवेशुः ॥९॥
स्वर रहित पद पाठऋतस्य। दृळ्हा। धरुणानि। सन्ति। पुरूणि। चन्द्रा। वपुषे। वपूंषि। ऋतेन। दीर्घम्। इषणन्त। पृक्षः। ऋतेन। गावः। ऋतम्। आ। विवेशुः ॥९॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 23; मन्त्र » 9
अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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अष्टक » 3; अध्याय » 6; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे मनुष्या ! ऋतस्याचरणेनैव दृळ्हा धरुणानि पुरूणि चन्द्रा वपुषे वपूंषि प्राप्तानि सन्ति। ऋतेन पृक्षो दीर्घञ्चायुरिषणन्त ऋतेन गाव ऋतमाविवेशुरिति विजानीत ॥९॥
पदार्थः
(ऋतस्य) सत्यस्य धर्म्मस्य (दृळ्हा) दृढानि (धरुणानि) उदकानीव शान्तान्याचरणानि। धरुणमित्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (सन्ति) (पुरूणि) बहूनि (चन्द्रा) आह्लादकानि सुवर्णादीनि (वपुषे) सुरूपाय शरीराय (वपूंषि) रूपाणि (ऋतेन) सत्याचरणेन (दीर्घम्) चिरञ्जीविनम् (इषणन्त) प्राप्नुवन्ति (पृक्षः) संस्पृष्टव्यमन्नादिकम् (ऋतेन) सत्याचरणेन (गावः) धेनवो वत्सस्थानानीव सुशिक्षिता वाचः (ऋतम्) सत्यं ब्रह्म (आ) (विवेशुः) आविशन्ति ॥९॥
भावार्थः
हे मनुष्या ! यथा जलेन प्राणधारणमन्नाद्युत्पत्तिः सुरूपं दीर्घमायुश्च जायते तथैव सत्याचारेण सकलैश्वर्य्यं विद्या चिरञ्जीवनञ्च भवति यतः सततं सत्यमेवाऽऽचरत ॥९॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे मनुष्यो ! (ऋतस्य) सत्य धर्म्म के आचरण से ही (दृळ्हा) दृढ़ (धरुणानि) जलों के सदृश शान्त आचार (पुरूणि) बहुत (चन्द्रा) आनन्द देनेवाले सुवर्ण आदि (वपुषे) सुन्दर रूपयुक्त शरीर के लिये (वपूंषि) रूपों को प्राप्त (सन्ति) हैं और (ऋतेन) सत्य आचरण से (पृक्षः) उत्तम प्रकार स्पर्श होने योग्य अन्न आदिक (दीर्घम्) चिरकाल रहनेवाले आयु को (इषणन्त) प्राप्त होते हैं (ऋतेन) सत्य आचरण से (गावः) गौवें जैसे बछड़ों के स्थानों को वैसे उत्तम प्रकार शिक्षित वाणियाँ (ऋतम्) सत्य ब्रह्म को (आ, विवेशुः) प्राप्त होती हैं, ऐसा जानो ॥९॥
भावार्थ
हे मनुष्यो ! जैसे जल से प्राणधारण, अन्न आदि की उत्पत्ति और सुन्दर और दीर्घ अवस्था होती है, वैसे ही सत्य आचरण से सम्पूर्ण ऐश्वर्य्य, विद्या और बहुत काल पर्य्यन्त जीवन होता है, जिससे निरन्तर सत्य ही का आचरण करो ॥९॥
विषय
वेदज्ञान का जीवन पर यह पूर्ण प्रभाव
पदार्थ
[१] (ऋतस्य) = सत्य वेदज्ञान के (धरुणानि) = धारण (दृढा सन्ति) = बहुत दृढ़ हैं। वेदज्ञान से हमारा दृढ़ धारण होता है। इस वेदज्ञान द्वारा हम वासनाओं से अपने को बचा पाते हैं। ये वेदज्ञान के धरुण (पुरूणि) = हमारा पालन व पूरण करनेवाले हैं। (चन्द्रा) = ये धरुण हमारे लिए आह्लादजनक होते हैं। (वपुषे) = [वप् to sow] अपने अन्दर इस सत्य वेदज्ञान के बीज को बोनेवाले के लिए ये (वपूंषि) = [वप् to beget] सब अच्छाइयों को जन्म देनेवाले हैं। [२] (ऋतेन) = इस सत्य वेदज्ञान द्वारा (दीर्घं पृक्ष:) = सब अन्धकार का विदारण करनेवाले [पृच् संपर्के] प्रभु सम्पर्क को (इष्णन्त) = चाहते हैं । वेदज्ञान से प्रभु-सम्पर्क प्राप्त होता है, जो प्रभु-सम्पर्क सब अन्धकार का विदारण करनेवाला होता है। (ऋतेन) = इस सत्य वेदज्ञान से (गाव:) = इन्द्रियाँ (ऋतम्) = उस सत्यस्वरूप प्रभु में (आविवेशुः) = प्रवेश करती हैं। इन्द्रियाँ विषय-प्रवणता को छोड़कर प्रभु चर्चा व ध्यान में लगती हैं ।
भावार्थ
भावार्थ - वेदज्ञान हमारा धारण करता है-हमारे में उत्तमताओं को विकसित करता है। इस वेदज्ञान से इन्द्रियाँ प्रभु में प्रवेश करती हैं।
विषय
सत्याचरण की महिमा ।
भावार्थ
(ऋतस्य) सत्य के (दृढ़ा) दृढ़ (धरुणानि) धारक आश्रय (सन्ति) हुआ करते हैं और (ऋतस्य वपुषे) सत्याचरण करने वाले शरीरधारी के (पुरूणि) बहुत से (चन्द्रा) आह्लादजनक (वपूंषि) नाना सहयोगी बन्धुजनों के शरीर भी उसे प्राप्त होते हैं। (ऋतेन) सत्याचरण द्वारा बुद्धिमान् लोग (दीर्घम् पृक्षः) जल से अन्न के तुल्य दीर्घकाल तक अन्नादि जीवन और शान्ति सुख (इषणन्त) प्राप्त करते हैं । (ऋतेन) सत्य ज्ञान वा सत्याचरण से (गावः) वाणियें भी (ऋतम्) सत्य स्वरूप परमेश्वर को (आ विवेशुः) प्राप्त करती हैं । इसी प्रकार न्यायाचारी के आश्रय दृढ़ और उसके नाना सुन्दर रूप लोक में प्रकट होते हैं, उसीसे लोग दीर्घ (पृक्षः) सत्संग चाहते हैं उसीसे (गावः) गतिशील जन या प्राणी, न्याय, अन्न और सत्य ज्ञान को प्राप्त करते हैं ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः ॥ १–७, ११ इन्द्रः । ८, १० इन्द्र ऋतदेवो वा देवता॥ छन्द:– १, २, ३, ७, ८, ६,२ त्रिष्टुप् । ४, १० निचृत्त्रिष्टुप् । ५, ६ भुरिक् पंक्ति: । ११ निचृत्पंक्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (1)
भावार्थ
हे माणसांनो! जशी जलाने प्राण धारणा, अन्न इत्यादीची उत्पत्ती व सुंदर दीर्घायुष्य प्राप्त होते तसेच सत्याचरणाने संपूर्ण ऐश्वर्य, विद्या व दीर्घायुष्य प्राप्त होते, त्यासाठी सतत सत्याचे आचरण करा. ॥ ९ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The foundations of Truth and Eternal Law are unshakable, boundless and beautiful, the very embodiments of truth, beauty and Dharma for life forms. By the Law of truth do people enjoy long life and showers of joy. By the Law of truth do our voice and senses follow truth and reach the very source of reality and the seat of the law of eternal truth.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The importance of truthful conduct is stressed.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The peaceful conduct of the true Dharma is manifold like water. There are many beautifying and gladdening ornamental golden things for the beautiful body of a truthful man. By the observance of truthful conduct, men obtain good food for sustenance and long life; and by truthful conduct, well balanced speeches. In fact, they are like the cows and worship True God.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
O men ! as by water a man can sustain life and produce grains etc. beauty and long life, in the same manner, by the observance of truthful conduct, a man acquires all prosperity and long life. Therefore, you should always observe truthfulness.
Foot Notes
(धरुणानीव ) उदकानीव शान्तान्माचरणानि । धरुणमित्युदकनाम (NG 1, 12)। = Peaceful conduct or dealings. (पृक्षः ) संस्पृष्टव्यमन्नादिकम् । पृक्ष इत्यन्ननाम (NG 2, 7)। = Food grains etc. (गावः ) धेनवो वत्सस्थानानीव सुशिक्षिता वाचः । गौरिति वाङ्नाम् (NG 1, 11) = Well trained speeches which are like the cows. (चन्द्रा) आह, लादकानि सुवर्णादीनि । चन्द्रमिति हिरण्यनाम (NG 1, 2) यदि आह, लादे (म्वा० ) । = Gladdening things like gold etc.
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