ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 33/ मन्त्र 11
इ॒दाह्नः॑ पी॒तिमु॒त वो॒ मदं॑ धु॒र्न ऋ॒ते श्रा॒न्तस्य॑ स॒ख्याय॑ दे॒वाः। ते नू॒नम॒स्मे ऋ॑भवो॒ वसू॑नि तृ॒तीये॑ अ॒स्मिन्त्सव॑ने दधात ॥११॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दा । अह्नः॑ पी॒तिम् । उ॒त । वः॒ । मद॑म् । धुः॒ । न । ऋ॒ते । श्रा॒न्तस्य॑ । स॒ख्याय॑ । दे॒वाः । ते । नू॒नम् । अ॒स्मे इति॑ । ऋ॒भ॒वः॒ । वसू॑नि । तृ॒तीये॑ । अ॒स्मिन् । सव॑ने । द॒धा॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इदाह्नः पीतिमुत वो मदं धुर्न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवाः। ते नूनमस्मे ऋभवो वसूनि तृतीये अस्मिन्त्सवने दधात ॥११॥
स्वर रहित पद पाठइदा। अह्नः। पीतिम्। उत। वः। मदम्। धुः। न। ऋते। श्रान्तस्य। सख्याय। देवाः। ते। नूनम्। अस्मे। इति। ऋभवः। वसूनि। तृतीये। अस्मिन्। सवने। दधात ॥११॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 11
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हे ऋभवो ! ये देवा वो युष्माकमह्नः पीतिमुत वो मदं धुस्त इदा श्रान्तस्य सेवया ऋते सख्याय न प्रभवन्ति तेऽस्मिँस्तृतीये सवनेऽस्मे नूनं दधात ॥११॥
पदार्थः
(इदा) इदानीम् (अह्नः) दिनस्य मध्ये (पीतिम्) पानम् (उत) अपि (वः) युष्माकम् (मदम्) आनन्दम् (धुः) दध्युः (न) (ऋते) विना (श्रान्तस्य) तपसा हतकिल्विषस्य (सख्याय) मित्रभावाय (देवाः) विद्वांसः (ते) (नूनम्) निश्चितम् (अस्मे) अस्मासु (ऋभवः) मेधाविनः (वसूनि) धनानि (तृतीये) अन्त्ये (अस्मिन्) (सवने) सत्कर्मणि (दधात) ॥११॥
भावार्थः
ये वर्त्तमाने समये यथार्थं पुरुषार्थं कुर्वन्ति ते धनपतयो भवन्ति ये च विद्वत्सङ्गं न कुर्वन्ति ते धनहीनाः सन्तो दारिद्र्यं भजन्ते ॥११॥ अत्र विद्वन्मातापितृमनुष्यगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिरस्तीति वेद्यम् ॥११॥ इति त्रयस्त्रिंशत्तमं सूक्तं द्वितीयो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (1)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
हे (ऋभवः) बुद्धिमानो ! जो (देवाः) विद्वान् जन (वः) आप लोगों में से (अह्नः) दिन के मध्य में (पीतिम्) पान को (उत) और आप लोगों के (मदम्) आनन्द को (धुः) धारण करें (ते) वे (इदा) इस समय (श्रान्तस्य) तप से नष्ट हुआ है पाप जिसका उसकी सेवा के (ऋते) विना (सख्याय) मित्रपने के लिये (न) नहीं समर्थ होते हैं वे (अस्मिन्) इस (तृतीये) अन्त्य (सवने) श्रेष्ठ कर्म के निमित्त (अस्मे) हम लोगों में (वसूनि) धनों को (नूनम्) निश्चय युक्त (दधात) धारण करो ॥११॥
भावार्थ
जो जन वर्त्तमान समय में यथार्थ पुरुषार्थ को करते हैं, वे धनपति होते हैं और जो विद्वानों के सङ्ग को नहीं करते हैं, वे धन से रहित हुए दारिद्र्य को भजते हैं ॥११॥ इस सूक्त में विद्वान् माता पिता और मनुष्यों के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की पिछिले सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति है, यह जानना चाहिये ॥११॥ यह तेतीसवाँ सूक्त और द्वितीय वर्ग समाप्त हुआ ॥
मराठी (1)
भावार्थ
जे लोक वर्तमानकाळी योग्य पुरुषार्थ करतात, ते श्रीमंत होतात व जे विद्वानांचा संग करीत नाहीत ते धनरहित बनून दारिद्र्य भोगतात. ॥ ११ ॥
English (1)
Meaning
O Rbhus, noble creators and makers, today the holy men bring you soma to celebrate and enjoy. The divines favour not the slothfuls, they extend no hand of friendship unless you are tested in the crucibles of hard work and self sacrifice. May the Rbhus bring us, in truth, the wealths of life in the third session of yajna.
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