ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 33/ मन्त्र 6
स॒त्यमू॑चु॒र्नर॑ ए॒वा हि च॒क्रुरनु॑ स्व॒धामृ॒भवो॑ जग्मुरे॒ताम्। वि॒भ्राज॑मानांश्चम॒साँ अहे॒वावे॑न॒त्त्वष्टा॑ च॒तुरो॑ ददृ॒श्वान् ॥६॥
स्वर सहित पद पाठस॒त्यम् । ऊ॒चुः॒ । नरः॑ । ए॒व । हि । च॒क्रुः । अनु॑ । स्व॒धाम् । ऋ॒भवः॑ । ज॒ग्मुः॒ । ए॒ताम् । वि॒ऽभ्राज॑मानान् । च॒म॒सान् । अहा॑ऽइव । अवे॑नत् । त्वष्टा॑ । च॒तुरः॑ । द॒दृ॒श्वान् ॥
स्वर रहित मन्त्र
सत्यमूचुर्नर एवा हि चक्रुरनु स्वधामृभवो जग्मुरेताम्। विभ्राजमानांश्चमसाँ अहेवावेनत्त्वष्टा चतुरो ददृश्वान् ॥६॥
स्वर रहित पद पाठसत्यम्। ऊचुः। नरः। एव। हि। चक्रुः। अनु। स्वधाम्। ऋभवः। जग्मुः। एताम्। विऽभ्राजमानान्। चमसान्। अहाऽइव। अवेनत्। त्वष्टा। चतुरः। ददृश्वान् ॥६॥
ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 6
अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
यथर्भव एतां स्वधां जग्मुराप्ताचरणमनुचक्रुस्तथैव नरः सत्यमूचुर्यो हि त्वष्टा चतुरो ददृश्वान् भवेत् स विभ्राजमानांश्चमसानहेव चतुरः पदार्थानवेनत् ॥६॥
पदार्थः
(सत्यम्) यथार्थम् (ऊचुः) वदन्तु (नरः) मनुष्याः (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (हि) यतः (चक्रुः) कुर्य्युः (अनु) (स्वधाम्) अन्नम् (ऋभवः) मेधाविनः (जग्मुः) प्राप्नुवन्ति (एताम्) एतत् (विभ्राजमानान्) प्रकाशमानान् (चमसान्) मेघान्। चमस इति मेघनामसु पठितम्। (निघं०१.१) (अहेव) अहानीव (अवेनत्) कामयते (त्वष्टा) ज्ञाता (चतुरः) (ददृश्वान्) दृष्टवान् ॥६॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । मनुष्यैरिहाप्तानुकरणं कृत्वा यथाक्रमेण वर्त्तित्वा दिनानि प्रावृडृतुं प्राप्नुवन्ति तथैव क्रमेण कर्मोपासनाज्ञानानि सत्यभाषणादीनि वर्द्धयित्वा धर्मार्थकाममोक्षान् साधयन्तीति विज्ञातव्यम् ॥६॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
पदार्थ
जैसे (ऋभवः) बुद्धिमान् जन (एताम्) इस (स्वधाम्) अन्न को (जग्मुः) प्राप्त होते हैं और यथार्थ वक्ताओं के आचरण को (अनु, चक्रुः) करें वैसे (एवा) ही (नरः) मनुष्य (सत्यम्) यथार्थ (ऊचुः) कहें और जो (हि) जिससे (त्वष्टा) जानने वाला (चतुरः) चार को (ददृश्वान्) देखनेवाला होवे वह (विभ्राजमानान्) प्रकाशित हुए (चमसान्) मेघों को (अहेव) दिनों के सदृश चार पदार्थों की (अवेनत्) कामना करता है ॥६॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । मनुष्यों को चाहिये कि इस संसार में यथार्थवक्ताओं का अनुकरण करके जैसे क्रम से वर्त्ताव कर दिन वर्षा ऋतु को प्राप्त होते हैं, वैसे ही क्रम से कर्म, उपासना और ज्ञान, सत्यभाषण आदि को बढ़ा के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध कराते हैं, यह जानें ॥६॥
विषय
सत्यवचन, सत्य कर्म
पदार्थ
[१] (नरः) = [नृ नये] आगे और आगे बढ़नेवाले ये ऋभु (सत्यं ऊचुः) = सदा सत्य ही बोलते हैं और (हि) = निश्चय से (एवा चक्रुः) = इस प्रकार सत्य के अनुसार ही करते हैं। (अनु) = सत्यवचन व सत्यकर्म के अनुसार (ऋभवः) = ये ऋभु (एतां स्वधाम्) = इस आत्मधारणशक्ति को (जग्मुः) = प्राप्त होते हैं। [२] (चमसान् ददृश्वान्) = हमारे इन शरीररूप पात्रों का ध्यान करनेवाला त्वष्टा वह सर्वनिर्माता प्रभु [त्वक्षतेर्वा नि०] (अह एव) = निश्चय से (चतुरः) = चारों को ही 'स्वाध्याय, यज्ञ, तप व दान' इन चारों धर्म के चरणों को (विभ्राजमानान्) = अत्यन्त चमकता हुआ (अवेनत्) = चाहता है। प्रभु की कामना यही है कि हम इन प्रभु से रक्षित किये जाते हुए चमसों (शरीरों) के द्वारा चतुष्पाद् धर्म का पालन करें।
भावार्थ
भावार्थ- हम [क] सत्य बोलें, [ख] सत्य ही करें, [ग] आत्मधारण शक्तिवाले हों और [घ] 'स्वाध्याय, यज्ञ, तप व दान' रूप चतुष्पाद् धर्म का पालन करें।
विषय
चतुर्वर्ग साधना की विवेचना ।
भावार्थ
(नरः) मनुष्य (सत्यम् ऊचुः) सत्य बोलें (एव हि) उसी प्रकार वे (सत्यम् अनु चक्रुः) सत्य ज्ञान के अनुसार ही कर्म करें । (ऋभवः स्वधाम्) अति प्रकाशमान सूर्य के किरण जिस प्रकार जल को ग्रहण करते हैं उसी प्रकार (ऋभवः) ‘ऋत’ अर्थात् सत्य ज्ञान, तेज और ऐश्वर्य से प्रकाशित होने वाले विद्वान् जन (एताम् स्वधाम्) इस सत्यमयी ‘स्वधा’ आत्मा की धारण पोषण शक्ति को (जग्मुः) प्राप्त हों । (ददृश्वान्) सत्य का दर्शन करने वाला (त्वष्टा) सूर्यवत् तेजस्वी विद्वान् पुरुष (अह एव) निश्चय से, सदा ही (चतुरः चमसान्) भोग करने योग्य धर्म अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों को ही मेघ के तुल्य, भोग्य पदार्थों के दाता, अन्नवत् और (विभ्राजमानान्) विशेष कान्ति से चमकते हुए देखें और उनकी (अवेनत्) कामना करे ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्द:- १ भुरिक् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ११ त्रिष्टुप् । ३, ६, १० निचृत्त्रिष्टुप। ७, ८ भुरिक् पंक्तिः । ९ स्वराट् पंक्तिः॥
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. माणसांनी विद्वानांचे अनुकरण करून क्रमाने जसा वर्षा ऋतू येतो तसेच क्रमाने कर्म, उपासना, ज्ञान, सत्यभाषण इत्यादी वाढवून धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सिद्ध करता येते हे जाणावे. ॥ ६ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
The Rbhus, brave and blessed, speak true what they speak, then they accomplish what they say, and then they achieve this reward of their action. Tvashta, the divine maker, wise and all-seeing eye of the world, who sees the Rbhus’ cups of life shining as daylight sees them, loves them and blesses the makers. Thus should men do in life.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The qualities of good person are mentioned.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
The intelligent persons attain good food grains, and moreover follow on the footsteps of the sincere persons. Whatever a truthful man asked to comply, that should be implemented by the knowledgeable persons. Such men visualize thoroughly the coming events, like a weatherman forecasts the monsoon and the four large parts of the day and night.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Here is a simile. All should follow on the foot steps of the sincere persons and behave in accordance with their dictates. of conscience. As a weatherman forecasts the coming rains, similarly the visualizer persons are capable to attainment of Dharma (righteousness) Artha (wealth) Kama (desirous) and Moksha (Salvation) by the observance of Karma (action, Upasana, homage, knowledge truthfulness etc.)
Foot Notes
(सत्यम् ) यथार्थम् । = Truthfulness, (स्वधाम्) अन्नम् । = Food grains. (जग्मुः) प्राप्नुवन्ति । = Attains. (विभ्राजेमानान् ) प्रकाशमानांन् । = To the shining. (चमसान् ) मेघान् । चमस इति मेघनाम (NG 1, 10) = To the clouds. (अवेनत्) कामयते । = Desirous. (दूदश्वान्) दूरद्रष्टा-दृष्टवान् । = A good visualizer.
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