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ऋग्वेद मण्डल - 4 के सूक्त 33 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 4/ सूक्त 33/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वामदेवो गौतमः देवता - ऋभवः छन्दः - भुरिक्पङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    रथं॒ ये च॒क्रुः सु॒वृतं॑ नरे॒ष्ठां ये धे॒नुं वि॑श्व॒जुवं॑ वि॒श्वरू॑पाम्। त आ त॑क्षन्त्वृ॒भवो॑ र॒यिं नः॒ स्वव॑सः॒ स्वप॑सः सु॒हस्ताः॑ ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    रथ॑म् । ये । च॒क्रुः । सु॒ऽवृत॑म् । न॒रे॒ऽस्थाम् । ये । धे॒नुम् । वि॒श्व॒ऽजुव॑म् । वि॒श्वऽरू॑पाम् । ते । आ । त॒क्ष॒न्तु॒ । ऋ॒भवः॑ । र॒यिम् । नः॒ । सु॒ऽअव॑सः । सु॒ऽअप॑सः । सु॒ऽहस्ताः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रथं ये चक्रुः सुवृतं नरेष्ठां ये धेनुं विश्वजुवं विश्वरूपाम्। त आ तक्षन्त्वृभवो रयिं नः स्ववसः स्वपसः सुहस्ताः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रथम्। ये। चक्रुः। सुऽवृतम्। नरेऽस्थाम्। ये। धेनुम्। विश्वऽजुवम्। विश्वऽरूपाम्। ते। आ। तक्षन्तु। ऋभवः। रयिम्। नः। सुऽअवसः। सुऽअपसः। सुऽहस्ताः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 4; सूक्त » 33; मन्त्र » 8
    अष्टक » 3; अध्याय » 7; वर्ग » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्यगुणानाह ॥

    अन्वयः

    य ऋभवः सुवृतं नरेष्ठां रथं चक्रुर्ये विश्वरूपां विश्वजुवं धेनुं प्राप्नुवन्ति ते स्ववसः स्वपसः सुहस्ता नो रयिमा तक्षन्तु ॥८॥

    पदार्थः

    (रथम्) विमानादियानम् (ये) (चक्रुः) कुर्वन्ति (सुवृतम्) सुष्ठु रचितं साङ्गोपाङ्गसहितम् (नरेष्ठाम्) नरास्तिष्ठन्ति यस्मिंस्तम् (ये) (धेनुम्) वाचम् (विश्वजुवम्) समग्रवेगाम् (विश्वरूपाम्) समग्रशास्त्रस्वरूपविदम् (ते) (आ) (तक्षन्तु) रचयन्तु (ऋभवः) मेधाविनः (रयिम्) धनम् (नः) अस्मभ्यम् (स्ववसः) शोभनमवी रक्षणादिकं कर्म येषान्ते (स्वपसः) सुष्ठु धर्म्याणि कर्म्माणि येषान्ते (सुहस्ताः) शोभनाः कर्मसाधका हस्ता येषान्ते ॥८॥

    भावार्थः

    ये मनुष्याः प्रथमतो विद्यां पुनर्हस्तक्रियां गृहीत्वा श्रेष्ठाचाराः सन्त आत्मीयं बाह्यञ्च विज्ञानं सुलक्षीकृत्य शिल्पकार्य्याणि कुर्वन्ति ते धीमन्तः सन्त ऐश्वर्य्यं प्राप्नुवन्ति ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्यगुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    (ये) जो (ऋभवः) बुद्धिमान् जन (सुवृतम्) उत्तम रचित और अङ्गों वा उपाङ्गों के सहित (नरेष्ठाम्) मनुष्य जिसमें स्थित होते हैं उस (रथम्) विमान आदि वाहन को (चक्रुः) करते हैं और (ये) जो (विश्वरूपाम्) सम्पूर्ण शास्त्रज्ञानवाली और (विश्वजुवम्) सम्पूर्ण वेगों से युक्त (धेनुम्) वाणी को प्राप्त होते हैं (ते) वे (स्ववसः) सुन्दर रक्षण आदि कर्म से और (स्वपसः) उत्तम प्रकार धर्मयुक्त कर्मों से युक्त (सुहस्ताः) सुन्दर कर्मसाधक हाथोंवाले (नः) हम लोगों के लिये (रयिम्) धन को (आ, तक्षन्तु) रखें ॥८॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य पहिले विद्या को और फिर हस्तक्रिया को ग्रहण करके उत्तम आचरणवाले होते हुए आत्मसम्बन्धी और बाहिर के विशेष ज्ञान को उत्तम प्रकार जाँच के शिल्पविद्यासम्बन्धी कार्य्यों को करते हैं, वे बुद्धिमान् होते हुए ऐश्वर्य्य को प्राप्त होते हैं ॥८॥

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    विषय

    'स्ववसः, स्वपसः, सुहस्ताः'

    पदार्थ

    [१] ऋभु वे हैं, (ये) = जो (रथम्) = इस शरीररूप रथ को (सुवृतम्) = उत्तम वर्तनवाला, अर्थात् उत्तमता से चलनेवाला तथा (नरेष्ठाम्) = उस संसार का प्रणयन करनेवाले प्रभु में स्थित चक्रुः करते हैं, अर्थात् इस शरीर-रथ को सदा उत्तम मार्ग में ले चलते हैं और प्रभु को वे कभी भूलते नहीं । [२] ऋभु वे हैं, (ये) = जो (धेनुम्) = इस वेदवाणीरूप गौ को करते हैं, अर्थात् अपनाते हैं, जो वेदवाणी रूप गौ (विश्वजुवम्) = सब यज्ञादि उत्तम कर्मों की प्रेरणा देती है और (विश्वरूपाम्) = सब सत्य विद्याओं का निरूपण करती है। कर्मेन्द्रियों के दृष्टिकोण से यह वेदवाणी 'विश्वजू' है, ज्ञानेन्द्रियों के दृष्टिकोण से 'विश्वरूपा'। [३] प्रभु कहते हैं कि (ते ऋभवः) = वे ऋभु (नः) = हमारे (रयिम्) = इस ज्ञानैश्वर्य को (आतक्षन्तु सर्वतः) = सम्पादित करनेवाले हों। ये (स्ववसः) = उत्तम सात्त्विक अन्नों का ही सेवन करें [अवस् Food] । सात्त्विक अन्न से सात्त्विक मनवाले होकर ये सदा (स्वपसः) = उत्तम कर्मों को करनेवाले हों और सुहस्ता: शोभन हाथोंवाले हों, अर्थात् सब कार्यों को सुन्दरता से करनेवाले बनें ।

    भावार्थ

    भावार्थ- अपने शरीर-रथ को उत्तम बनाकर हम 'वाज' बनें। ज्ञान की वाणी को अपनाकर हम 'ऋभु' बनें। सात्त्विक अन्न के सेवन से सात्त्विक मनवाले बनकर हम 'विभ्वा' हों ।

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    विषय

    उत्तम शिष्यों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    (ये) जो विद्वान् पुरुष (सुवृतं) सुख से चलने योग्य सुखपूर्वक वर्त्तने वाला, (नरेष्ठां) ले जाने वाले चक्र या अश्वादि तुल्य प्रधान नायक पुरुष पर आश्रित वा मनुष्यों के बैठने योग्य (रथं) रथ और उसके समान राष्ट्र को (चक्रुः) बनाते हैं । और (ये) जो (धेनुं) गौ के तुल्य कामदुधा, (विश्वजुवं) सब प्रकार के ज्ञानों से युक्त और (विश्वरूपाम्) सब प्रकार के पदार्थों का वर्णन करने वाली वाणी को (चक्रुः) प्रकट करते हैं (ते) वे (ऋभवः) सत्य ज्ञान से सुशोभित और सत्य ज्ञान के प्रकाशक विद्वान् लोग (सु-अवसः) उत्तम रक्षादि साधन से युक्त (सु-अपसः) उत्तम कर्म करने वाले, (सुहस्ताः) उत्तम हाथों वाले, सिद्धहस्त, कर्मकुशल होकर शिल्पियों के तुल्य (नः) हमारे लिये (रयिं) नाना ऐश्वर्य (आ तक्षन्तु) उत्पन्न करें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वामदेव ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्द:- १ भुरिक् त्रिष्टुप् । २, ४, ५, ११ त्रिष्टुप् । ३, ६, १० निचृत्त्रिष्टुप। ७, ८ भुरिक् पंक्तिः । ९ स्वराट् पंक्तिः॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे प्रथम विद्या व नंतर हस्तक्रिया ग्रहण करून श्रेष्ठाचार करतात व आत्म्यासंबंधीचे व बाह्य विज्ञानाचे परीक्षण करून शिल्पकार्य करतात ती बुद्धिमान असून ऐश्वर्य प्राप्त करतात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The Rbhus, who design and manufacture a strong built chariot for people to travel by, create a universal language of universal knowledge for the world prevailing all over the world. May they create universal wealth for us all — heroes of noble action, noble protection, and dexterous of hand as they are.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The qualities of the human beings are highlighted.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    The brilliant technologists manufacture a good aircraft fitted with necessary fine parts and aids, and it is utilized by the people. Such people achieve by a speech, full of authenticity and complete knowledge quick. Because of their fine performance and nice dealings, they achieve their accomplishments. Let them create or spin money for our sake.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The persons who first attain theory and then the practical knowledge and thereafter secure the spiritual and mundane know-how, with proper analysis they accomplish the technological assignments. Gifted with his wisdom, they secure eminence and prosperity.

    Foot Notes

    (रथम्) विमानादि यानम् । = Aircraft. (सुवृतम्) सुष्ठु रचितं साङ्गोपाङ्गसहितम् । = Equipment with parts and aids and manufactured nicely. (नेरेष्ठाम् ) नरास्तिष्ठन्ति यस्मिस्तम् । = Where people can stay comfortably. (धेनुम् ) वाचम् = Speech. (विश्वजुवम् ) समग्रवेगाम् । = Fast. (स्ववसः) शोभनमवो रक्षणादिकं कर्म येषान्ते । = Well guarded. (स्वपसः) सुष्ठु धर्म्याणि कर्माणि येषान्ते । = Those who have exact visualization and actions. (सुहस्ता:) शोभनाः कर्मसाधका हस्ता येषान्ते । = Capable to perform nice accomplishment.

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