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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 6
    ऋषिः - वसुयव आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    अ॒ग्निर्द॑दाति॒ सत्प॑तिं सा॒साह॒ यो यु॒धा नृभिः॑। अ॒ग्निरत्यं॑ रघु॒ष्यदं॒ जेता॑र॒मप॑राजितम् ॥६॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निः । द॒दा॒ति॒ । सत्ऽप॑तिम् । स॒साह॑ । यः । यु॒धा । नृऽभिः॑ । अ॒ग्निः । अत्य॑म् । र॒घु॒ऽस्यद॑म् । जेता॑रम् । अप॑राऽजितम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निर्ददाति सत्पतिं सासाह यो युधा नृभिः। अग्निरत्यं रघुष्यदं जेतारमपराजितम् ॥६॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निः। ददाति। सत्ऽपतिम्। ससाह। यः। युधा। नृऽभिः। अग्निः। अत्यम्। रघुऽस्यदम्। जेतारम्। अपराऽजितम् ॥६॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 6
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 1
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे मनुष्याः ! सोऽग्निः सत्पतिं ददाति योऽग्निर्युधा नृभी रघुष्यदं जेतारमपराजितं राजानमत्यमिव सासाह ॥६॥

    पदार्थः

    (अग्निः) परमेश्वरो विद्वान् वा (ददाति) (सत्पतिम्) सतां पालकम् (सासाह) सहते। अत्र लडर्थे लिट्। तुजादीनामित्यभ्यासदैर्घ्यम्। (यः) (युधा) युध्यमानेन सैन्येन (नृभिः) नायकैर्मनुष्यैः (अग्निः) पावकः (अत्यम्) अतति व्याप्नोत्यध्वानमत्यमश्वम् (रघुष्यदम्) लघुगमनम् (जेतारम्) अपराजितम् ॥६॥

    भावार्थः

    हे विद्वांसो ! यथेश्वरो धर्मिष्ठेभ्यो धर्म्मात्मानं राजानं ददाति यथा सुसेना विद्वांसं शूरवीरं धर्म्मात्मानं सेनाध्यक्षं प्राप्य शत्रून् विजयते तथैव स सर्वैर्बहु मन्तव्यः ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे मनुष्यो ! वह (अग्निः) परमेश्वर वा विद्वान् (सत्पतिम्) श्रेष्ठों के पालन करनेवाले को (ददाति) देता है (यः) जो (अग्निः) अग्नि (युधा) युद्ध करती हुई सेना और (नृभिः) नायक अर्थात् अग्रणी मनुष्यों से (रघुष्यदम्) लघुगमनवान् (जेतारम्) जीतने और (अपराजितम्) नहीं हारनेवाले राजा को (अत्यम्) मार्ग को व्याप्त होते घोड़े को जैसे वैसे (सासाह) सहता है ॥६॥

    भावार्थ

    हे विद्वानो ! जैसे ईश्वर धर्मिष्ठ जनों के लिये धर्म्मात्मा राजा को देता है और जैसे उत्तम सेना विद्वान् शूरवीर और धर्म्मात्मा सेनाध्यक्ष को प्राप्त होकर शत्रुओं को जीतती है, वैसे ही वह सब लोगों को आदर करने योग्य है ॥६॥

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    विषय

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    भावार्थ

    भा० - (यः) जो (यु धा) युद्ध में शत्रुओं पर प्रहार करने वाले सैन्य वा शस्त्र बल से और (नृभिः ) वीर नायक पुरुषों सहित (स साह ) शत्रुओं को पराजित करता है ( अग्निः ) अग्रणी नायक राजा वा प्रभु, ऐसे ( सत्पतिम् ) सज्जनों का प्रतिपालक पुरुष ( ददाति ) प्रदान करे । वही ( अग्निः ) अग्र नायक राष्ट्र को ( रघु-स्यदं ) वेग से जाने वाला ( अत्यं ) सर्वातिशायी, वेगवान् अश्व सैन्य और ( अपराजितम् ) कभी न हारने वाला ( जेतारम् ) विजेता सेनापति दे ।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसूयव आत्रेया ऋषयः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १,८ निचृदनुष्टुप । २,५,६,९ अनुष्टुप्, । ३, ७ विराडनुष्टुप् । ४ भुरिगुष्णिक् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    कैसा पुत्र ?

    पदार्थ

    १. (अग्निः) = वे अग्रणी प्रभु (ददाति) = ऐसे पुत्र को देते हैं, जो कि (सत्पतिम्) = सत्कर्मों का रक्षक होता है। (यः) = जो (नृभिः) = मनुष्यों से (युधा) = युद्ध के द्वारा (सासाह) = शत्रुओं का पराभव करनेवाला होता है। २. (अग्निः) = ये अग्रणी प्रभु उस सन्तान को प्राप्त कराते हैं जो कि (अत्यम्) = सततगमनशील होता है, (रघुष्यदम्) = वेगयुक्त गतिवाला होता है - सब कार्यों को स्फूर्ति के साथ करता है, (जेतारम्) = सदा विजयी होता है, और (अपराजितम्) = कभी पराजित नहीं होता।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु कृपा से हमें ऐसा पुत्र प्राप्त हो जो कि सत्कर्मों का रक्षक हो । युद्ध में जीतनेवाला हो । क्रियाशील स्फूर्तिसम्पन्न - विजयी व अपराजित हो ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे विद्वानांनो! जसा ईश्वर धार्मिक लोकांसाठी धार्मिक राजा देतो व विद्वान शूरवीर धार्मिक सेनाध्यक्षामुळे उत्तम सेना शत्रूंना जिंकते. त्यामुळे सर्व लोकांनी त्याचा आदर केला पाहिजे. ॥ ६ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni, lord of light and ruler, gives us a leader, ruler, and progeny who protects and supports the good, who fights and wins over evil with arms and forces, and to this invincible victor he gives transport and communications of fastest efficiency.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of Agni enlightened person or God) is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! Agni (God or a highly learned leader) gives a good protector of the people with the help of his army and leading men and thus is capable to overcome even a king. Like a speedy horse he is very active (lit. swift), conqueror of all and is never defeated.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons! as God gives a righteous ruler, to the most righteous persons, and as a good army conquers the foes under the command of a highly learned, brave and righteous commander-in-chief, in the same manner, he should be revered much.

    Foot Notes

    (अत्यम् ) अतति व्याप्नोत्यध्वानमत्यश्वम् । अत्य इत्यश्वनाम (NG 1, 14 )। = Horse. (रघुष्यदम् ) लघुगमनम् । = Swift footed, active.

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