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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 25 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 25/ मन्त्र 8
    ऋषिः - वसुयव आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    तव॑ द्यु॒मन्तो॑ अ॒र्चयो॒ ग्रावे॑वोच्यते बृ॒हत्। उ॒तो ते॑ तन्य॒तुर्य॑था स्वा॒नो अ॑र्त॒ त्मना॑ दि॒वः ॥८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तव॑ । द्यु॒ऽमन्तः॑ । अ॒र्चयः॑ । ग्रावा॑ऽइव । उ॒च्य॒ते॒ । बृ॒हत् । उ॒तो इति॑ । ते॒ । त॒न्य॒तुः । य॒था॒ । स्वा॒नः । अ॒र्त॒ । त्मना॑ । दि॒वः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तव द्युमन्तो अर्चयो ग्रावेवोच्यते बृहत्। उतो ते तन्यतुर्यथा स्वानो अर्त त्मना दिवः ॥८॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तव। द्युऽमन्तः। अर्चयः। ग्रावाऽइव। उच्यते। बृहत्। उतो इति। ते। तन्यतुः। यथा। स्वानः। अर्त। त्मना। दिवः ॥८॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 25; मन्त्र » 8
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ मेघदृष्टान्तेन विद्वद्विषयमाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वँस्तव द्युमन्तो येऽर्चयः सन्ति ताभिर्यद् ग्रावेव बृहदुच्यते उतो ते यथा तन्यतुस्तथा स्वानो वर्त्तते ततस्त्मना दिवो यूयं सर्वेऽर्त्त ॥८॥

    पदार्थः

    (तव) (द्युमन्तः) बहुप्रकाशवन्तः (अर्चयः) किरणाः (ग्रावेव) मेघ इव (उच्यते) (बृहत्) महत्सत्यम् (उतो) अपि (ते) तव (तन्यतुः) विद्युत् (यथा) (स्वानः) शब्दः (अर्त्त) प्राप्नुत (त्मना) आत्मना (दिवः) कामयमानान् पदार्थान् ॥८॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः । ये मेघवद् गम्भीरशब्देन गूढार्थानुपविशन्ति विद्युद्वत्पुरुषार्थयन्ति ते सर्वाणि सुखानि लभन्ते ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब मेघदृष्टान्त से विद्वद्विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वन् ! (तव) आपके (द्युमन्तः) बहुत प्रकाशवाली (अर्चयः) किरणें हैं उनसे जो (ग्रावेव) मेघ के सदृश (बृहत्) बहुत सत्य (उच्यते) कहा जाता (उतो) और (ते) आपका (यथा) जैसे (तन्यतुः) बिजुली वैसे (स्वानः) शब्द वर्त्तमान है, इस कारण (त्मना) आत्मा से (दिवः) प्रकाशयुक्त पदार्थों को तुम सब लोग (अर्त्त) प्राप्त होओ ॥८॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो मेघ के सदृश गम्भीर शब्द से गूढ़ अर्थों के उपदेश देते और बिजुली के सदृश पुरुषार्थ करते हैं, वे सम्पूर्ण सुखों को प्राप्त होते हैं ॥८॥

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    विषय

    विद्युत् के तुल्य उसके कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    भा०—हे विद्वन् ! राजन् ! ( तव ) तेरे ( अर्चयः ) अग्नि वा सूर्य के से ज्वाला वा किरणें ( द्युमन्तः ) बहुत प्रकाश वाले हों । तेरा ( बृहत् ) बड़ा भारी यश, बल वा स्वरूप ( ग्रावा इव ) मेघ वा पर्वत के समान विशाल एवं शस्त्रास्त्रबल, शिलावत् शत्रुओं को चकनाचूर करने वाला (उच्यते ) कहा जाता है । ( उतो ) और ( यथा ) जिस प्रकार (दिवः ) बिजली का ( तन्यतुः ) गर्जन हो उसका ( ते स्वानः ) तेरा महान् शब्द या घोष, आज्ञा-वचन आदि ( अर्त्त ) उत्पन्न हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसूयव आत्रेया ऋषयः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १,८ निचृदनुष्टुप । २,५,६,९ अनुष्टुप्, । ३, ७ विराडनुष्टुप् । ४ भुरिगुष्णिक् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    उस महान् गुरु के शब्दों को सुनें

    पदार्थ

    १. हे प्रभो ! (तव) = आपकी (अर्चयः) = ज्ञान ज्वालाएँ (द्युमन्तः) = अत्यन्त ज्योतिर्मय है। आप (बृहत्) = सर्वमहान् (ग्रावा इव) = उपदेष्टा [गुरु] की तरह (उच्यते) = कहे जाते हैं 'स पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्' । आप ही गुरुओं के गुरु-सर्वप्रथम गुरु हैं। २. आपके ज्ञान को किसी और से प्राप्त नहीं करते। (उत) = और (त्मना दिवः) = स्वयं ज्योतिर्मय ने आपका (स्वानः) = शब्द इस प्रकार (अर्त) = उद्गत होता है (यथा) = जैसे (उ) = निश्चय से (तन्यतुः) = मेघध्वनि हो। मेघध्वनि के समान गर्जनावाले इन शब्दों को भी हम अज्ञानी नहीं सुन पाते ।

    भावार्थ

    भावार्थ- उस दीप्तिमय प्रभु के कल्याणकर शब्दों को हम सुननेवाले बनें ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे मेघाप्रमाणे गंभीर शब्दाने गूढ अर्थांचा उपदेश करतात व विद्युतप्रमाणे पुरुषार्थ करतात ते संपूर्ण सुखी होतात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Blazing are your flames of fire, radiant your rays of light. Your identity is proclaimed like rumble of the cloud, and your voice like thunder and lightning radiates from heavens by itself.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Duties of enlightened persons are told by the illustration of cloud.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned persons ! obtain by your efforts the desired goods with the help of your brilliant rays with which you utter great truth like that of a cloud and your sound like that of the lightning.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    There is a simile in the mantra. The persons enjoy all happiness who teach the hidden meanings of the mystic words and are industrious like the lightening or electricity, and also makes others so.

    Foot Notes

    (अर्चयः ) किरणा:। = Rays. (ग्रावाइव) मेघः इव ग्रावा इति मेघनाम (NG 1, 10)। = Like the cloud. (दिवः) कामयमानान् पदार्थान् । दिवधातोः कान्त्यर्थं मादाय व्याख्या कान्तिः कामना । = Desired objects. (स्वानः) शब्द: । स्वन शब्दे (भ्वा) । = Sound.

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