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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 58/ मन्त्र 3
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ वो॑ यन्तूदवा॒हासो॑ अ॒द्य वृ॒ष्टिं ये विश्वे॑ म॒रुतो॑ जु॒नन्ति॑। अ॒यं यो अ॒ग्निर्म॑रुतः॒ समि॑द्ध ए॒तं जु॑षध्वं कवयो युवानः ॥३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । वः॒ । य॒न्तु॒ । उद॒ऽवा॒हासः॑ । अ॒द्य । वृ॒ष्टिम् । ये । विश्वे॑ । म॒रुतः॑ । जु॒नन्ति॑ । अ॒यम् । यः । अ॒ग्निः । म॒रु॒तः॒ । सम्ऽइ॑द्धः । ए॒तम् । जु॒ष॒ध्व॒म् । क॒व॒यः॒ । यु॒वा॒नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ वो यन्तूदवाहासो अद्य वृष्टिं ये विश्वे मरुतो जुनन्ति। अयं यो अग्निर्मरुतः समिद्ध एतं जुषध्वं कवयो युवानः ॥३॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। वः। यन्तु। उदऽवाहासः। अद्य। वृष्टिम्। ये। विश्वे। मरुतः। जुनन्ति। अयम्। यः। अग्निः। मरुतः। सम्ऽइद्धः। एतम्। जुषध्वम्। कवयः। युवानः ॥३॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 58; मन्त्र » 3
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह ॥

    अन्वयः

    हे कवयो युवानो मरुतो मनुष्या ! ये विश्व उदवाहसो मरुतो वृष्टिं जुनन्ति तेऽद्य व आ यन्तु। योऽयं समिद्धोऽग्निरस्त्येतं यूयं जुषध्वम् ॥३॥

    पदार्थः

    (आ) समन्तात् (वः) युष्मान् (यन्तु) प्राप्नुवन्तु (उदवाहासः) य उदकं वहन्ति तानिव (अद्य) इदानीम् (वृष्टिम्) वर्षणम् (ये) (विश्वे) सर्वे (मरुतः) वायवः (जुनन्ति) प्रेरयन्ति (अयम्) (यः) (अग्निः) पावकः (मरुतः) मनुष्याः (समिद्धः) प्रदीप्तः (एतम्) (जुषध्वम्) (कवयः) मेधाविनः (युवानः) प्राप्तयौवनाः ॥३॥

    भावार्थः

    ये वृष्टिकरान् वाय्वग्न्यादीन् विजानन्ति त एतान् वृष्टये प्रेरयितुं शक्नुवन्ति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (कवयः) बुद्धिमान् (युवानः) युवावस्था को प्राप्त हुए (मरुतः) मनुष्यो ! (ये) जो (विश्वे) सम्पूर्ण (उदवाहासः) जल को जो धारण करते हैं उनके सदृश (मरुतः) पवन (वृष्टिम्) वृष्टि की (जुनन्ति) प्रेरणा करते हैं, वे (अद्य) इस समय (वः) आप लोगों को (आ, यन्तु) प्राप्त हों और (यः) जो (अयम्) यह (समिद्धः) प्रदीप्त (अग्निः) अग्नि है (एतम्) इसको आप लोग (जुषध्वम्) सेवन करो ॥३॥

    भावार्थ

    जो वृष्टि करनेवाले वायु और अग्नि आदि को विशेष करके जानते हैं, वे इनको वृष्टि करने के लिये प्रेरणा करने को समर्थ होते हैं ॥३॥

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    विषय

    जलवाही, वृष्टिप्राप्त वायुगणवत् उनका वर्णन ।

    भावार्थ

    भा०—हे प्रजाजनो ! ( ये ) जो ( विश्वे मरुतः ) सब मनुष्य वायु गण के समान ( वृष्टिं) वर्षा के तुल्य ऐश्वर्य, धन, सम्पदा का वर्षण (जुनन्ति ) करते हैं वे ( उद-वाहसः ) जलों को नाना स्थानों पर पहुंचाने वाले जल-विद्यावित, जल, नहर कृप आदि के शिल्पीजन (वः) तुम लोगों को ( आ यन्तु ) प्राप्त हों । हे (मस्तः) विज्ञानवान् पुरुषो ! ( यः अयं ) यह जो ( सम्-इद्धः ) खूब तेजस्वी ( अग्निः ) अग्नि के तुल्य, अग्रणी, ज्ञानप्रकाशक और प्रताप से युक्त वीर और विद्वान् पुरुष हैं वे आप (कवयः ) विद्वान् बुद्धिमान् (युवानाः ) युवा पुरुषो ! (एतं जुषध्वम् ) उसका नित्य सेवन किया करो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ३, ४, ६, ८ निचृत्-त्रिष्टुप । २, ५ त्रिष्टुप् । ७ भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    अग्निहोत्र व वृष्टि

    पदार्थ

    [१] (ये) = जो (विश्वे) = सब (मरुतः) = वृष्टि को लानेवाले वायु (वृष्टिं जुनन्ति) = वृष्टि को प्रेरित करते हैं, वे (उदवाहासः) = जलों को प्राप्त करानेवाले वायु (अद्य) = आज (वः) = तुम्हें आयन्तु प्राप्त हों । [२] (अयम्) = यह (यः) = जो (मरुतः) = वृष्टिवाहक वायु का (अग्निः) = अग्नि (समिद्धः) = अग्निहोत्र के लिये अग्निकुण्ड में प्रदीप्त किया गया है, (एतम्) = इसको हे (कवयः) = ज्ञानी (युवानः) = बुराइयों को दूर करके अच्छाइयों को अपने साथ संगत करनेवाले पुरुषो! तुम (जुषध्वम्) = प्रीतिपूर्वक सेवित करनेवाले होवो । अग्निहोत्र को करने से ही इन वृष्टियों का सम्भव होता है 'यज्ञाद् भवति पर्जन्य:' इसी उद्देश्य से यहाँ अग्नि को मरुतों का कहा है। यह अग्नि मरुतों का है, मरुतों को प्रेरित करनेवाला है 'अग्निहोत्रं सव्यं वर्षम्' ।

    भावार्थ

    भावार्थ- ज्ञानी पुरुषों को चाहिये कि घरों में नियमपूर्वक अग्निहोत्र करें। इसी से वृष्टि का नियमित ऋतु में होने का सम्भव होता है ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक वृष्टी करणारे वायू व अग्नी इत्यादींना विशेष करून जाणतात ते वृष्टीबाबत प्रेरणा देण्यास समर्थ असतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Maruts, eminent leaders and pioneers, may all those winds of the firmament come to you to-day in this yajna which bear the clouds and impel the rain showers. O leading scholars and scientists, poetic visionaries and youthful researchers, lighted is this fire, come and take it over for the rain yajna.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    What should men do is told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O young poets! let these Maruts (monsoon winds) came to you today who are water carriers and who stir up the rain. O brave men, use the fire properly for various purposes which has been lighted for you.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who know the air, Agni (fire or electricity) and other elements which cause rain can use them for siring up the rains.

    Translator's Notes

    The epithet used for the Maruts कवयो युवाणः has been rendered into English in Griffith's translation as 'youthful sages'. Prof. Wilson has translated it as 'wise and young' and yet all these erroneously think that the Maruts are the storm gods. It is strange.

    Foot Notes

    (उदवाहासः) य उदकं वहति तानिव । = Those who carry stir up or cause the rains. (जुनन्ति ) प्रेरयन्ति: जुन- गती (तुदा० ) गते स्त्रिष्वर्थेष्वत्रं गत्यर्थं ग्रहणम् । = Urge-stir up.

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