ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 58/ मन्त्र 8
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - मरुतः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
ह॒ये नरो॒ मरु॑तो मृ॒ळता॑ न॒स्तुवी॑मघासो॒ अमृ॑ता॒ ऋत॑ज्ञाः। सत्य॑श्रुतः॒ कव॑यो॒ युवा॑नो॒ बृह॑द्गिरयो बृ॒हदु॒क्षमा॑णाः ॥८॥
स्वर सहित पद पाठह॒ये । नरः॑ । मरु॑तः । मृ॒ळत॑ । नः॒ । तुवि॑ऽमघासः । अमृ॑ताः । ऋत॑ऽज्ञाः । सत्य॑ऽश्रुतः । कव॑यः । युवा॑नः । बृह॑त्ऽगिरयः । बृ॒हत् । उ॒क्षमा॑णाः ॥
स्वर रहित मन्त्र
हये नरो मरुतो मृळता नस्तुवीमघासो अमृता ऋतज्ञाः। सत्यश्रुतः कवयो युवानो बृहद्गिरयो बृहदुक्षमाणाः ॥८॥
स्वर रहित पद पाठहये। नरः। मरुतः। मृळत। नः। तुविऽमघासः। अमृताः। ऋतऽज्ञाः। सत्यऽश्रुतः। कवयः। युवानः। बृहत्ऽगिरयः। बृहत्। उक्षमाणाः ॥८॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 58; मन्त्र » 8
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 8
Acknowledgment
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 8
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
अन्वयः
हये नरो मरुतस्तुवीमघासोऽमृताः सत्यश्रुतः ऋतज्ञा युवानो बृहद्गिरयो बृहदुक्षमाणाः कवयो यूयं नो मृळता ॥८॥
पदार्थः
(हये) (नरः) नायकाः (मरुतः) मनुष्याः (मृळता) सुखयत। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (नः) अस्मान् (तुवीमघासः) बहुधनाः (अमृताः) प्राप्तमोक्षाः (ऋतज्ञाः) य ऋतं परमात्मानं प्रकृतिं वा जानन्ति (सत्यश्रुतः) ये सत्यं यथार्थं शृण्वन्ति ते (कवयः) पूर्णविद्याः (युवानः) प्राप्ताऽत्मशरीरयौवनाः (बृहद्गिरयः) बृहन्तो गिरयो मेघा इवोपकारका गुणा येषान्ते (बृहत्) महद् ब्रह्म (उक्षमाणाः) सेवमानाः ॥८॥
भावार्थः
ये मनुष्याः सर्वसत्यविद्याः प्राप्याप्तं परमात्मानं तदाज्ञां च सेवमाना महाशयाः पूर्णशरीरात्मबला अध्यापनोपदेशाभ्यामस्मानुन्नयन्ति त एव सर्वदाऽस्माभिः सत्कर्त्तव्याः ॥८॥ अत्र विद्वद्वायुगुणवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥ इत्यष्टपञ्चाशत्तमं सूक्तं त्रयोविंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
विषय
फिर उसी विषय को कहते हैं ॥
पदार्थ
(हये) हे (नरः) नायक (मरुतः) जनो ! (तुवीमघासः) बहुत धनवान् (अमृताः) मोक्ष को प्राप्त हुए (सत्यश्रुतः) सत्य को यथार्थ सुनने और (ऋतज्ञाः) परमात्मा वा प्रकृति को जाननेवाले (युवानः) प्राप्त हुई अपने शरीर को यौवन अवस्था जिनको (बृहद्गिरयः) जिनके बड़े मेघों के सदृश उपकार करनेवाले गुण वे (बृहत्) महत् ब्रह्म का (उक्षमाणाः) सेवन करते हुए (कवयः) पूर्णविद्यावाले आप लोग (नः) हम लोगों को (मृळता) सुखी करिये ॥८॥
भावार्थ
जो मनुष्य सम्पूर्ण सत्य विद्याओं को प्राप्त होकर यथार्थवक्ता, परमात्मा और उसकी आज्ञा का सेवन करते हुए महाशय पूर्ण शरीर और आत्मा के बल से युक्त अध्यापन और उपदेश से हम लोगों की वृद्धि करते हैं, वे ही सदा हम लोगों से सत्कार करने योग्य हैं ॥८॥ इस सूक्त में विद्वान् तथा वायु के गुण वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥ यह अट्ठावनवाँ सूक्त और तेईसवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
वायुवत् कर्त्तव्य ।
भावार्थ
भा०-हे ( मरुतः नरः ) वायुवत् बलवान्, प्राणवत् प्रिय, नायक पुरुषो ! आप लोग (तुवि-मघासः) बहुत से ऐश्वर्यों के स्वामी (अमृताः) दीर्घायु और (ऋत-ज्ञाः) सत्य ज्ञान के जानने वाले होकर ( नः मृडत ) हमें सदा सुखी करो। आप लोग ( सत्य-श्रुतः ) सत्य ज्ञान का श्रवण करने वाले, ( कवयः ) क्रान्तदर्शी, ( युवानः ) सदा जवान, शक्तिमान् (बृहद्-गिरयः ) गुणों में बड़े, पर्वत वा मेघ के तुल्य सुखों की धारा बहाने वाले और ( उक्षमाणाः ) वायुओं के तुल्य क्षेत्रों में जल वीर्यादि सेचन करते हुए (बृहत् ) बहुत सा धन धान्य, प्रजा, ऐश्वर्य भी प्राप्त करो। इति त्रयोविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ३, ४, ६, ८ निचृत्-त्रिष्टुप । २, ५ त्रिष्टुप् । ७ भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
शासकवर्ग कैसा ?
पदार्थ
मन्त्र संख्या ५७.८ पर अर्थ द्रष्टव्य है । अगला सूक्त भी मरुतों का ही वर्णन करता हैह॒ये नरो॒ मरु॑तो मृ॒ळता॑
मराठी (1)
भावार्थ
जी माणसे सर्व सत्यविद्या प्राप्त करून आप्त, विद्वान, परमेश्वराची आज्ञा पालन करतात ती पूर्ण शरीर व आत्मा यांच्या बलाने अध्यापन व उपदेश करून आमची उन्नती करतात. त्यांचा आम्ही सदैव सत्कार करावा. ॥ ८ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
O Maruts, leading lights of history, be kind and gracious and rejoice with us. You command the grandeur of life’s wealth, honour and excellence. You are the immortal spirit of humanity, observers of Law and Truth, renowned and blest with the Revelation of Truth, poetic visionaries, ever young and modern, masters of universal voice and blest with the spirit of renewal and regeneration.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The duties of the enlightened persons are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O ye heroes! you are endowed with great wealth (or wisdom), you have attained emancipation; you are knowers of the true eternal God or Matter and you always listen to truth. You are well-versed in all sciences; you are youthful (energetic) physically and spiritually; you are benevolent like the big clouds and you serve the Supreme Being (God). Listen to our words of prayer and make us happy by being gracious to us.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Only those persons should be respected by us who having acquired the knowledge of all sciences, while serving an absolutely truthful enlightened persons, God and His commands, because they are the men of liberal views, endowed with perfect physical and spiritual power. Uplift us by teaching and preaching.
Foot Notes
(ऋतज्ञा:) य ऋतं परमात्मानं प्रकृति वा जानन्ति ।ऋतमिति सत्यनाम (NG) 3, 10)। = Who are knowers of True God or matter. (बृहद्गिरय:) बृहन्तो गिरयो, मेघा इवोपकारका गुणा येषान्ते । अत्र सत्यं ब्रह्म, सत्या वा प्रकृतिः । गिरिरिति मेघनाम (NG 1, 10) Whose virtues are benevolent like the large clouds. (उक्षमाणाः) सेवमानाः। = Serving.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal