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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 58 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 58/ मन्त्र 4
    ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः देवता - मरुतः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यू॒यं राजा॑न॒मिर्यं॒ जना॑य विभ्वत॒ष्टं ज॑नयथा यजत्राः। यु॒ष्मदे॑ति मुष्टि॒हा बा॒हुजू॑तो यु॒ष्मत्सद॑श्वो मरुतः सु॒वीरः॑ ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यू॒यम् । राजा॑नम् । इर्य॑म् । जना॑य । वि॒भ्व॒ऽत॒ष्टम् । ज॒न॒य॒थ॒ । य॒ज॒त्राः॒ । यु॒ष्मत् । ए॒ति॒ । मु॒ष्टि॒ऽहा । बा॒हुऽजू॑तः । यु॒ष्मत् । सत्ऽअ॑श्वः । म॒रु॒तः॒ । सु॒ऽवीरः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यूयं राजानमिर्यं जनाय विभ्वतष्टं जनयथा यजत्राः। युष्मदेति मुष्टिहा बाहुजूतो युष्मत्सदश्वो मरुतः सुवीरः ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यूयम्। राजानम्। इर्यम्। जनाय। विभ्वऽतष्टम्। जनयथ। यजत्राः। युष्मत्। एति। मुष्टिऽहा। बाहुऽजूतः। युष्मत्। सत्ऽअश्वः मरुतः। सुऽवीरः ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 58; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्मरुद्गुणानाह ॥

    अन्वयः

    हे यजत्रा मरुतो ! यो युष्मन्मुष्टिहा बाहुजूतो युष्मत्सदश्वः सुवीर एति तं जनायेर्यं विभ्वतष्टं राजानं यूयं जनयथा ॥४॥

    पदार्थः

    (यूयम्) (राजानम्) न्यायविनयाभ्यां प्रकाशमानम् (इर्यम्) प्रेरकम्। अत्र वर्णव्यत्ययेन दीर्घेकारस्य ह्रस्वः। (जनाय) मनुष्याय (विभ्वतष्टम्) विभूनां मेधाविनां मध्ये तष्टं तीव्रप्रज्ञम् (जनयथा) अत्र संहितायामिति दीर्घः। (यजत्राः) सङ्गन्तारः (युष्मत्) युष्माकं सकाशात् (एति) प्राप्नोति (मुष्टिहा) यो मुष्टिना हन्ति (बाहुजूतः) बाहुभ्यां बलवान् (युष्मत्) (सदश्वः) सन्तः समीचीना अश्वा यस्य सः (मरुतः) सुशिक्षिता मानवाः (सुवीरः) शोभनश्चासौ वीरश्च ॥४॥

    भावार्थः

    मनुष्याः सर्वैरुपायैर्धर्म्यगुणकर्मस्वभावं राजानं तादृशान् सहायाँश्च जनयेयुः ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर मरुद् के गुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (यजत्राः) मिलनेवाले (मरुतः) उत्तम प्रकार शिक्षित मनुष्यो ! जो (युष्मत्) आप लोगों के समीप (मुष्टिहा) मुष्टि से मारनेवाला (बाहुजूतः) बाहुओं से बलवान् वा (युष्मत्) आप लोगों के समीप (सदश्वः) अच्छे घोड़े जिसके ऐसा (सुवीरः) सुन्दर वीरजन (एति) प्राप्त होता है उसको (जनाय) मनुष्य के लिये (इर्यम्) प्रेरणा करनेवाले (विभ्वतष्टम्) बुद्धिमानों के मध्य में तीव्र बुद्धिवाले (राजानम्) न्याय और विनय से प्रकाशमान राजा को (यूयम्) आप (जनयथा) प्रकट कीजिये ॥४॥

    भावार्थ

    मनुष्य सम्पूर्ण उपायों से धर्मयुक्त गुण, कर्म और स्वभाववाले राजा और उसी प्रकार के सहायों को उत्पन्न करें ॥४॥

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    विषय

    रक्षक होने योग्य पुरुषों के गुण ।

    भावार्थ

    भा०-हे ( यजत्राः ) यज्ञशील, पुरुषो ! परस्पर संगत स्त्री पुरुषो ! मैत्री और संघ बनाकर रहने वाले प्रजाजनो ! ( यूयम् ) आप लोग, (इर्यं) शत्रुओं को कंपाने और भृत्यों व अधीनों को सन्मार्ग में चलाने वाले (विभ्वतष्टं ) मेधावी ज्ञानवान् पुरुषों द्वारा उपदेश, ताड़ना, शिक्षा विषयादि द्वारा तैयार किये वा उनके बीच तीव्र प्रजायुक्त, पुरुष को ( जनाय ) प्रजाजन के हित के लिये ( राजानम् ) तेजस्वी ( जनयथाः) बनाओ। ऐसे को अपना रक्षक बनाओ । हे ( मरुतः ) मनुष्यो ! ( बाहु-जूतः ) बाहुबलशाली, ( मुष्टि-हा) मुक्कों से ही शत्रु को मार देने वाला, वा राष्ट्र में से मुष्टि अर्थात् चोरी आदि का नाश कर देने वाला, वा ( मुष्टिहा ) मूठ्ठी के समान संघ बना कर रहने वाले पांचों प्रजाओं द्वारा शत्रु को दण्डित करने वाला पुरुष ( युष्मत् एति ) तुम लोगों के बीच में से ही आता, प्रकट होता है और ( सद्-अश्वः ) उत्तम अश्वों का स्वामी, और जितेन्द्रिय (सु-वीरः) उत्तम वीर्यवान्, वीर सैन्य पुरुष भी ( युष्मत्-एति ) तुम में से ही उत्पन्न होता है ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ३, ४, ६, ८ निचृत्-त्रिष्टुप । २, ५ त्रिष्टुप् । ७ भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

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    विषय

    'मुष्टिहा बाहुजूत:' राजा

    पदार्थ

    [१] हे (यजत्राः) = यज्ञशील, परस्पर संगतिकरणवाले पुरुषो! (यूयम्) = तुम (जनाय) = प्रजाजन के लिये, लोकहित के लिये (राजानम्) = राजा को, राष्ट्रशासक पुरुष को जनयथा प्रादुर्भूत करो, चुनकर उसे सिंहासनारूढ़ करो, जो (इर्यम्) = शत्रुओं को कम्पित करनेवाला है तथा (विभ्वतष्टम्) = [विभ्वन्=supreme ruler] मुख्य शासक बनने के योग्य है । [२] हे (मरुत:) = परिमित बोलनेवाले वीर पुरुषो! (युष्मत्) = तुम्हारे में से ही यह (मुष्टिहा) = मुक्के से ही शत्रुओं का संहार करनेवाला, (बाहुजूत:) = भुजाओं से सदा वेगयुक्त, सतत क्रियाशील राजा एति प्राप्त होता है । (युष्मत्) = तुम्हारे में से ही यह (सदश्वः) = उत्तम इन्द्रियाश्वोंवाला (सुवीरः) = उत्तम वीर प्राप्त होता है।

    भावार्थ

    भावार्थ– राजसिंहासन पर उस व्यक्ति को बिठाया जाए जो 'शत्रुकम्पक, क्रियाशील, उत्तम इन्द्रियाश्वोंवाला व उत्तम वीर' हो ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी सर्व उपाय योजून धर्मयुक्त गुण कर्म स्वभावाचा राजा निवडावा व तशा प्रकारचे साहाय्य ही करावे. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Maruts, leading lights of the nation, holy performers meeting and working together for yajnic development, you create the inspiring ruler who is an architect of the nation. From you arises the administrator of strong hand and will. From you arise the warriors of strong arms, and from you arises the brave man, the hero who commands the army, the cavalry and the flying force for the people.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the Maruts (highly educated men) are told further.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O unifying highly education men! you create (elect) for men an active king who is wise among the wise; from you come the man who can fight with his fists, and is quick with his arm, and also from you come the men with good horses and good valiant hero.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should create (elect) by all fair means a king who is endowed with righteous merits, actions "and temperament, and also his assistant of the same nature.

    Foot Notes

    (विभ्वतष्टम्)विभुनां मेधाविनं मध्ये तष्टं तीव्र प्रज्ञंम् = Wise among the wise i.e. extra-ordinarily wise or (methodically taught ) by the masters ( मरुतः ) सुशिक्षिता मानवाः । = Highly educated or well-trained men.

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