ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 58/ मन्त्र 5
ऋषिः - श्यावाश्व आत्रेयः
देवता - मरुतः
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
अ॒राइ॒वेदच॑रमा॒ अहे॑व॒ प्रप्र॑ जायन्ते॒ अक॑वा॒ महो॑भिः। पृश्नेः॑ पु॒त्रा उ॑प॒मासो॒ रभि॑ष्ठाः॒ स्वया॑ म॒त्या म॒रुतः॒ सं मि॑मिक्षुः ॥५॥
स्वर सहित पद पाठअ॒राःऽइ॑व । इत् । अच॑रमाः । अहा॑ऽइव । प्रऽप्र॑ । जा॒य॒न्ते॒ । अक॑वाः । महः॑ऽभिः । पृश्नेः॑ । पु॒त्राः । उ॒प॒ऽमासः॑ । रभि॑ष्ठाः । स्वया॑ । म॒त्या । म॒रुतः॑ । सम् । मि॒मि॒क्षुः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अराइवेदचरमा अहेव प्रप्र जायन्ते अकवा महोभिः। पृश्नेः पुत्रा उपमासो रभिष्ठाः स्वया मत्या मरुतः सं मिमिक्षुः ॥५॥
स्वर रहित पद पाठअराःऽइव। इत्। अचरमाः। अहाऽइव। प्रऽप्र। जायन्ते। अकवाः। महःऽभिः। पृश्नेः। पुत्राः। उपऽमासः। रभिष्ठाः। स्वया। मत्या। मरुतः। सम्। मिमिक्षुः ॥५॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 58; मन्त्र » 5
अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथ विद्वदुपदेशगुणानाह ॥
अन्वयः
हे विद्वांसो ! ये मरुतोऽराइवाऽचरमा अहेवाऽकवाः पृश्नेः पुत्रा महोभिरित् प्रप्र जायन्ते सं मिमिक्षुस्तथोपमासो रभिष्ठा यूयं स्वया मत्या प्रप्र जायध्वम् ॥५॥
पदार्थः
(अराइव) चक्रावयवा इव (इत्) एव (अचरमाः) नान्त्यावयवाः (अहेव) अहानीव (प्रप्र) (जायन्ते) (अकवाः) अशब्दायमानाः (महोभिः) महद्भिः (पृश्नेः) अन्तरिक्षस्य (पुत्राः) (उपमासः) (रभिष्ठाः) अतिशयेनाऽऽरब्धारः (स्वया) (मत्या) प्रज्ञया (मरुतः) वायवः (सम्) (मिमिक्षुः) सिञ्चन्ति ॥५॥
भावार्थः
अत्रोपमालङ्कारः । यथा रथचक्राङ्गानि दिनानि च क्रमेण वर्त्तन्ते यथा वायवो गत्वागत्य वर्षन्ति तथैव मनुष्यैः क्रमेण वर्त्तित्वा प्रज्ञया सुखवृष्टिः सर्वेषां सुखाय कर्त्तव्या ॥५॥
हिन्दी (3)
विषय
अब विद्वानों के उपदेशगुणों को कहते हैं ॥
पदार्थ
हे विद्वानो ! जो (मरुतः) पवन (अराइव) चक्रों के अवयवों के सदृश (अचरमाः) नहीं अन्त्यावयव जिनके वे (अहेव) दिनों के सदृश (अकवाः) नहीं शब्द करते हुए (पृश्नेः) अन्तरिक्ष के (पुत्राः) पुत्र (महोभिः, इत्) बड़ों के ही साथ (प्रप्र, जायन्ते) अत्यन्त उत्पन्न होते और (सम्, मिमिक्षुः) अच्छे प्रकार सिञ्चन करते हैं, वैसे (उपमासः) प्रत्येक के तुल्य (रभिष्ठाः) अत्यन्त आरम्भ करनेवाले आप लोग (स्वया) अपनी (मत्या) बुद्धि से अत्यन्त उत्पन्न होओ ॥५॥
भावार्थ
इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जैसे वाहन के चक्रों के अङ्ग और दिन, क्रम से वर्त्तमान हैं और जैसे पवन जा, आकर वर्षाते हैं, वैसे ही मनुष्यों को चाहिये कि क्रम से वर्त्ताव करके बुद्धि से सुख की वृष्टि सब के सुख के लिये करें ॥५॥
विषय
अरों के दृष्टान्त से उनको उपदेश ।
भावार्थ
भा०-जिस प्रकार ( मरुतः अचरमा ) वायु गण अनन्त, अकुत्सित विमल जल वाले, ( पृश्ने: पुत्राः ) सूर्य के पुत्र और पृथिवी के पुरुषों के पालक ( स्वया मत्या ) अपनी शक्ति से ( संमिमिक्षुः ) खूब वर्षा करते हैं उसी प्रकार हे ( मरुतः ) हे वीर मनुष्यो ! आप लोग ( अराः इव ) चक्र में लगे आरों या दण्डों के समान (अचरमाः ) एक दूसरे के ऐसे पीछे रहो कि कोई अन्तिम, अरक्षित प्रतीत न हो अर्थात् चक्रव्यूह बना कर रहो। और आप लोग ( महोभिः ) तेजों और महान् सामर्थ्यों से ( अहा इव) दिनों के समान प्रकाशित होकर ( अकवाः) परस्पर कभी कुत्सित वचन न कहते हुए, अनल्प सामर्थ्यवान होकर ( प्र प्र जायन्ते) बराबर एक दूसरे के पीछे आते जाया करो ऐसे आप लोग (पृश्नेः ) सूर्य के समान तेजस्वी राजा और अन्नदात्री भूमि और मेघवत् निष्पक्षपात गुरु और सेक्ता पिता के ( पुत्राः ) पुत्र होकर ( उपमासः ) सभी एक दूसरे के तुल्य एवं अन्यों के आगे उपमा या उत्तम दृष्टान्त होने योग्य, सर्वानुकरणीय, (रभिष्ठाः ) अति अधिक बल से कार्य प्रारम्भ करने वाले, वेगवान्, बलवान् होकर ( स्वया मत्या ) अपनी बुद्धि और शक्ति से ( सं मिमिक्षुः ) परस्पर मिल कर शत्रु पर शरवर्षण, गृहस्थ में निषेक, एवं राष्ट्र में राज्याभिषेक, और प्रजावर्ग में क्षेत्रादि सेक और परस्पर की वृद्धि किया करो ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
श्यावाश्व आत्रेय ऋषिः ॥ मरुतो देवताः ॥ छन्द:- १, ३, ४, ६, ८ निचृत्-त्रिष्टुप । २, ५ त्रिष्टुप् । ७ भुरिक् पंक्तिः ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
विषय
'महोभिः अकवाः' मरुतः
पदार्थ
[१] गतमन्त्र में वर्णित राजा के साथ रहनेवाले (मरुतः) = मितरावी वीर पुरुष (इत्) = निश्चय से (अराः इव) = रथचक्र के अरों के समान (अचरमा:) = अगले व पिछले नहीं हैं। जैसे सभी अरों का समान महत्त्व है, इसी प्रकार इन सब मरुतों का समान महत्त्व है। ये सब मरुत् समानरूप से महिमावाले हैं। ये (महोभिः) = तेजस्विताओं से (अकवा:) = अनल्प प्र प्र जायन्ते होते हैं । अर्थात् खूब ही तेजस्वी होते हैं । [२] (पृश्नेः पुत्राः) = ये इस मातृभूमि के पुत्र हैं । (उपमासः) = परस्पर उपमा देने योग्य हैं, अर्थात् सभी वीर हैं। (रभिष्ठा:) = रभस्वाले, वेगयुक्त बलवाले हैं। ये (मरुतः) = मरुत् राष्ट्ररक्षा करनेवाले वीर सैनिक, (स्वया मत्या) = अपनी बुद्धि से, अर्थात् विचारपूर्वक (संमिमिक्षुः) = शत्रुओं पर शरवर्षण करते हैं। इस प्रकार शत्रुओं को शीर्ण करते हुए ये मातृभूमि की रक्षा करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- राष्ट्र के वीर क्षत्रिय छोटे-बड़े की भावना से रहित होकर खूब तेजस्विता के साथ बुद्धिपूर्वक शत्रुओं पर शरवर्षण करनेवाले हों।
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात उपमालंकार आहे. जशी वाहनांची चक्रे व दिवस क्रमपूर्वक चालतात व जसे वायू गमनागमन करून वृष्टी करवितात तसेच माणसांनी नियमपूर्वक वागून सर्वांच्या सुखासाठी बुद्धिपूर्वक सुखाची वृष्टी करावी. ॥ ५ ॥
इंग्लिश (2)
Meaning
Like the spokes of a wheel in motion, together, undivided, equal and integrated, whole, generative, the Maruts rise anew like days on and on with their power and forces. Children of mother earth, firmament and radiations of sunlight, strongest and most eminent, with their own perception, understanding, dedication and determination, they analyse, catalyse, integrate and generate new ideas, forces, institutions and traditions, all renewed and revitalised.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
The merits of the teachings of the enlightened persons are told.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O learned persons ! the wind which are sons of the firmament, like the spokes of the wheel, none of them is the last or like the days, which are born on and on without much sound with much might and sprinkle water (shower rain along with lightning and clouds ). In the same manner, you heroes, who are undertakers of mighty works with your intellect, manifest your power.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
N/A
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
There is upāmalankāra or simile used here. As the parts of the wheel of the chariot and days revolve turn by turn and as the winds come and go and cause rains, in the same manner, men should behave slowly and reciprocate by raining down happiness with their intellect for the delight of all.
Foot Notes
(अचरमाः ) नान्त्यावयवा:= Not the lastparts. (अकवा:) अशब्दायमानाः । कु शब्दे (अदा० ) = Not making much sound. (प्रश्ने: अन्तरिक्षस्य । पृथ्विरिति साधारणनाम (NG 1, 4) अन्तरिक्षाकाश साधारण मितिभावः = Of the firmament. (रभिष्ठा: अतिशयेन्त रन्धारः । रभ-राभस्ये (भ्वा० ) शीघ्रारम्भे इत्यर्थः । = Commencers or undertakers of mighty works.
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